पोशाक

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रतन घर का सबसे बड़ा बेटा और घर-परिवार में सबका लाड़ला भी था। पिताजी गाँव के लम्बरदार थे, इसीलिए अपनी ज़मीनों के सिलसिले में वे अक्सर व्यस्त ही रहते। रुतबे पैसे के साथ-साथ आसपास के गाँव-गुहांड़ में खूब मान-सम्मान भी प्राप्त था। यह उस ज़माने की बात है जब द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था और देश में कपड़े की कमी के कारणवश ज़्यादातर कपड़ो पर भी राशनिंग हआ करती थी। कभी-कभार शहर से कोई कपड़े-लत्ते बेचने वाला गाँव में दस्तक देता तो उसकी पहली हाजिरी सीधे लम्बरदार साहब के घर पर ही होती। रतन को जो भी थान पसंद आते,