प्रकृति की संतान

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कूकी कोयल सारे रघुवन में बड़ी चिंता में यहाँ वहां घूम रही थी | कभी इस पेड़ तो कभी उस पेड़ पे उड़ती बैठती थी | फिर एक घने पीपल पे जाके बैठ गई | उधर एक सूंदर और मजबूत घोंसला था | उस घोंसले में पहले से ही दो अंडे थे | कुकी घोंसले के पास गई और एक अंडा नीचे गिरा दिया | फिर उसने उसी घोंसले में अपना एक अंडा दिया | फिर उस अंडे को बड़े प्रेम से देखने के बाद वो उड़ गई | यह सब घटनाक्रम बबली गिलहरी देख रही थी | किन्तु वो अचम्भे