डोर ज़िंदगी की

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दो आंखें लगातार छोटे से शीशे के दूसरी तरफ बेड पर पड़ी औरत को देख रही थी और मैं उन आंखों को देख रहा था आंखों में डर फिक्र चिंता वह सब कुछ था जो 15 साल के बच्चे की आंखों में नहीं होना चाहिए था बहती आंखों से उसने मेरी तरफ देखा आंखों से ही मैंने उसे तसल्ली दी और फिर उस बेड पर पड़ी औरत को देखने लगा पटी काटने के लिए जैसे ही अपना हाथ आगे बढ़ाया तभी मेरी नजर अपने हाथों पर गई,मेरे हाथ कांप रहे थे। 21 साल के करियर में कितने ही ऑपरेशन कितने