खुशनसीब

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“प्रिय रवि, सुना है,अभी तुम्हारा वहाँ मन नहीं लग रहा है। वापस घर आने का मन बना रहे हो, ऐसा कुविचार तुम्हारे मन में क्यूँ आया? बताओ ऐसी भी क्या वजह हो गयी, रजनी बता रही थी, भैया से बात हुई थीं बड़े उदास मन से उनकी बातों का ज़वाब दिया था तुमने बहुत फ़िक्र कर रहे हैं, सब तुम्हारी। तुम्हारी उदासी.........क्या इसकी वज़ह मैं हूँ ? या फ़िर कोई अन्य वजह है..... नहीं रवि , नहीं..... मैं तुमसे दूर थोड़े ही हूँ, तुम्हारे बिल्कुल क़रीब हूँ, सच, कहती हूँ तुम्हारे सीने पे हाथ रखकर देख लो, धड़कनों में महसूस