चन्द्र-प्रभा--भाग(२४)

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अपारशक्ति आज अपने परिवार के संग थे,उन्होंने जलकुम्भी की दशा देखी तो द्रवित हो उठे,उनकी जलकुम्भी कुम्हला गई थीं, जलकुम्भी ने अपारशक्ति के चरणस्पर्श किए और उन्होंने जलकुम्भी को शीघ्रता से अपने हृदय से लगा लिया और पिंजड़े को तोड़कर मैना बनी सूर्यप्रभा को अपनी हथेली में बैठाकर रो पड़े और बोले।। ब्यथित ना हो मेरी पुत्री! मैं राजकुमार को अवश्य मुक्त करा लूँगा और हम सब अम्बिका और अम्बालिका का आज रात्रि ही सर्वनाश कर देंगें।। मैं आज अत्यधिक प्रसन्न हूँ महाराज!कितने वर्षों से मै ये स्वप्न देख रही थीं कि आप अपने पूर्व रूप में आ