धारा - 2

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धारा ( भाग-2) दिनभर पेशेंट्स को देखने के बाद धारा फिर से देव के रूम में पहुंच गई..!! उसने बेड के नीचे से स्टूल खींचा और उसपर बैठ गयी। धारा ने देव का हाथ अपने हाथ मे लिया और उससे बातें करने लगी। "तुम मेरी ज़िंदगी के वो पहले व्यक्ति हो देव जिसे मैंने अपना दोस्त माना..! क्योंकि आजतक मेरी ज़िंदगी मे जो कुछ भी हुआ उस वजह से मैं किसी के साथ दोस्ती करना तो दूर बात करने से भी घबराती हूँ..!! बीते तीन-चार सालों में शायद हम दोनों की ज़िंदगी ही बदल गयी है..!! इन बीते सालों में