वो बारिशें...

  • 4.1k
  • 1.1k

मैं जब भी बारिश में निकलती हूँ बहाने से तेरे एहसासों की छतरी हमेशा साथ लिए मेरी आँखों से छलक जाते हो तुम लेकिन फिर छुपाती हूँ तुम्हें मैं बरसात के सहारे से "वाहह...वाहहहह...क्या बात है ! बहुत खूब...बहुत खूब !",हॉल में चारों ओर इन तारीफों के साथ ही साथ तालियों की गड़गड़ाहट भी गूंज उठी। तभी स्टेज के मध्य में बैठी हुई सपना जो कि एक प्रशिद्ध और सफल कवियित्रियों में आजकल शुमार की जाती हैं उनकी तरफ़ यकायक ही एक और नौजवान रिपोर्टर नें अपना एक और सवाल उछाल दिया....मैम सबसे पहले तो आपको आपके पिछले पाँच काव्य