विशाल छाया - 3

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(3) हमीद की आंख खुल गई ।  उसने चारों ओर आँखे फाड़ फाड़ कर देखा । यह एक बड़ा सुंदर कमरा था, जिसमें दीवारों पर राग रागनियों की तस्वीरें बनी हुई थीं । कमरे के चारों कोनों पर संगमरमर की प्रतिमाएं थीं । फर्श पर ईरानी कालीन बिछी हुई थी और हमीद उसी पर लेटा हुआ था ।  कमरे में इतने रंगों का प्रकाश था कि उनसे तबियत खुश होने के बजाय भारी मालूम होने लगी थी । रंगों वाले बल्ब जाल रहे थे । एक कोने पर स्टेंडर्ड लें था जिसके पीछे कटलाख के काम का प्रतिबिम्ब डालने वाले