बेपनाह - 23

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23 “क्या सोच रही हो शुभी? तुम्हें यहाँ अच्छा नहीं लग रहा है ?”ऋषभ ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा। “यह सोच रही हूँ कितना अच्छा है यहाँ सब कुछ, मानों कोई देवीय शक्ति मुझ में प्रवेश कर गयी है और मैं खुद को बहुत निर्मल पा रही हूँ !” “यही होता है जब मन खुशी से भर जाता है तब सब कुछ एकदम से निर्मल और पवित्र लगता है और इसे सिर्फ एक सच्चा मन ही महसूस कर सकता है !” “हाँ ऋषभ मैं खुद को किसी फूल की तरह से सुगंधित, हल्का-फुल्का और खिला हुआ महसूस