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बेपनाह - 23

23

“क्या सोच रही हो शुभी? तुम्हें यहाँ अच्छा नहीं लग रहा है ?”ऋषभ ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।

“यह सोच रही हूँ कितना अच्छा है यहाँ सब कुछ, मानों कोई देवीय शक्ति मुझ में प्रवेश कर गयी है और मैं खुद को बहुत निर्मल पा रही हूँ !”

“यही होता है जब मन खुशी से भर जाता है तब सब कुछ एकदम से निर्मल और पवित्र लगता है और इसे सिर्फ एक सच्चा मन ही महसूस कर सकता है !”

“हाँ ऋषभ मैं खुद को किसी फूल की तरह से सुगंधित, हल्का-फुल्का और खिला हुआ महसूस रही हूँ।“शुभी मुस्कुराई।

कोई पंछी की आवाज से बाग गूँजा तो शुभी उधर देखने लगी कितनी सुरीली आवाज है और कितना प्यारा पंछी और यह कितना खुशकिस्मत है कि इसे यह बाग और इस शीतल प्रदेश में आकर घूमने को मिला । इसका तो जब जहां मन होता होगा उडकर पहुँच जाता होगा, न कोई बंदिश, न कोई बंधन।

“अब क्या हुआ ? चलने का विचार नहीं है क्या ?”

“हाँ अभी चल रही हूँ ! वापस घर भी पहुँचना है ! ऋषभ हम यहाँ से सीधे अपने घर चलेंगे ! मेरी मम्मी की तबीयत भी ठीक नहीं चल रही है।”

“हाँ वहीं चलेंगे, मुझे याद है, तुमने बताया तो था।”

“ठीक है ! चलो फिर” शुभी ने बेमन से कहा ! बस माँ के कारण जल्दी से निकल जाने का मन हुआ।

“भईया जी माँ ने आप लोगों के लिए गरम कद्दू भेजा है ! आकर खा लेना ! मैं कमरे में रखकर जा रही हूँ !” सोनी ने दूर से ही आवाज लगाई!

“ठीक है सोनी ! मैं खाकर चला जाऊंगा।”

“जी ठीक है भईया ! अगली बार जब आना तब मम्मी से मिल कर जाना, अभी हम लोग मामा के घर जा रहे हैं ।”

“संभाल कर जाना ! मौसम थोड़ा खराब सा लग रहा है बहुत तेज बादल हो रहे हैं।”

“सही है जा रही हूँ ।” सोनी के पाँवों की पायल की आवाज से उसके वहाँ से जाने का पता चला ।

“ऋषभ सोनी कहाँ गयी है ?”

“पास के गाँव में ही उसके मामा रहते हैं वहीं पर गयी है ! आते जाते रहते हैं यह लोग आपस में एक दूसरे के घर।”

“ओहह ! वैसे गाँव अभी भी जीवंत हैं यहाँ पर लोग अपने जीवन को अच्छे से जीते हैं, शहरों में लोगों के पास जरा भी समय नहीं है !” शुभी के शब्दों में थोड़ी उदासी आ गयी थी।

“खैर यह सब छोड़ो और यह बताओ कितनी देर में चलने का विचार है ?”

“बस अभी ही चलते हैं ! दादी दादा जी को फोन करके कह दो कि हम यहाँ से सीधे घर की तरफ निकल रहे हैं।“

“ठीक है, वैसे उनको पता ही है।”

“फिर भी ठीक रहता है देर हो गयी तो रात तुम्हारे दोस्त के यहाँ गुजारनी होगी।“

“रात को रुकना ही पड़ेगा क्योंकि सफर लंबा है और कार से चलना है, चलो आओ देखे सोनी क्या खाने को रख कर गयी है ?”

मौसम अपना रंग दिखा रहा था अब ठंडी हवाएँ चलने लगी थी और हल्की हल्की सी बारिश की बूंदें गिरने लगी थी !

कमरे में सोनी उबाला हुआ पीला कद्दू रख कर गयी थी ! दो प्लेटों में कद्दू का एक एक टुकड़ा और दोनों में चम्मच रखे हुए थे ! ऋषभ ने चम्मच से कद्दू निकाला और शुभी को खिलाते हुए बोला, यह देखो उबला हुआ कद्दू है, न इसमें घी, न ही इसमें चीनी फिर भी स्वाद कितना अच्छा है।

“हाँ वाकई बहुत ही स्वादिष्ट है !” शुभी ने कद्दू खाते हुए कहा।

“क्या हुआ ऋषभ ? बाहर की तरफ क्या देख रहे हो ?”

“वो देखो शुभी, बाहर बारिश की बूंदों जैसी बर्फ गिर रही है।”

“क्या यह बारिश नहीं है ?”

“नहीं यह बर्फ है, आओ देखते हैं !” ऋषभ खुश होते हुए बोला !

“वाह कितना अच्छा लग रहा है !” आसमान से होम्योपैथिक की गोलियों जैसी बर्फ गिर रही थी ! उसने अपना मुंह ऊपर की तरफ करके दोनों हाथ फैला दिये और गोल गोल घूमते हुए शुभी खुशी से भर उठी ! मानों सागर में जब ज़ोर ज़ोर की लहरें आती है तब वह मदमस्त हो जाता है ठीक वैसे ही शुभी खुशी में बेहद डूब पागल सी हो गयी थी ! उसने पहली बार आसमान से बर्फ गिरते देखी थी, ऐसे में उसका खुशी से उछलना लाजिमी था ! बर्फ गिरती जा रही थी और वो खुशी में झूम रही थी। उसे खुशी से यूं थिरकते देख ऋषभ उसे एकटक देखे जा रहा था ! कितना सुंदर मन है इसका किसी मासूम बच्चे की तरह, चेहरे पर भोलापन भी देखो बिलकुल निश्चल बच्चे सी ही तो है यह शुभी।

काका ने आकर बोन फायर कर दिया और थोड़ी देर रुक कर चले गए लेकिन शुभी तो अपनी खुशी में डूबी हुई थी एक तरफ आग जल रही थी एक तरफ ऋषभ कुर्सी पर आराम से बैठा हुआ था और आसमान से बर्फ गिर रही थी ! रुई के फाये की तरह से हल्की फुल्की छोटे छोटे दाने की तरह से आसमान से लगातार गिरती जा रही थी ! कितनी देर हो गयी शुभी अभी तक उस गिरती हुई बर्फ के संग खुशी मना रही थी ! ऋषभ आराम से कुर्सी पर बैठा एकटक शुभी को देख रहा था ! मानों आसमा से गिरती बर्फ के साथ कोई श्वेत परी उतर के आ गयी हो !

“ऋषभ आओ न यहाँ मेरे साथ बर्फ से खेलो, उधर क्या आग के पास बैठे हो?” शुभी उसका हाथ पकड़ कर अपने साथ खींच कर ले गयी और गिरती हुई बर्फ के साथ खेलने लगी ! नीचे गिरी हुई बर्फ को उठाकर गोला बनाया और ऋषभ के ऊपर फेंक दिया ! किसी बच्चे की तरह बर्फ के साथ खेलती हुई शुभी उसे बहुत अच्छी लग रही थी ! शुभी यूं ही आजीवन खुश रहे और वो उसे यूं खुश देखकर खुशी का अनुभव करे ! अचानक से खेलती कूदती शुभी ऋषभ के गले से लग गयी, “ऋषभ तुम हमेशा मेरे साथ रहना कभी कहीं दूर मत जाना।“

“हाँ मैं हमेशा तेरे साथ हूँ और सिर्फ तेरा ही हूँ ! कोई भी मुझे तुमसे दूर करने की कोशिश नहीं कर पायेगा और अगर किसी ने ऐसा किया तो वो खुद ही मुझसे दूर चला जायेगा !”

“ऐसे कैसे ?”

“क्योंकि हमारा प्यार सच्चा है और सच्चे प्यार के साथ सदा ईश्वर का आशीर्वाद रहता है।”

“हाँ ऋषभ मैं सच में तुम्हें सच्चे मन से चाहती हूँ, मेरे मन में, जीवन में तुम्हारे सिवाय कोई भी नहीं है ! जब तुम दूर हो गए थे तब मैं जीते जी मर गई थी। मैं तुमसे पल भर को भी दूर जाने की सोच भी नहीं सकती हूँ ।”

“अब उन बातों को याद मत करो ! बीति ताहि बिसार दो !”

ऋषभ के दिल की धड़कने तेज होने लगी थी ! उसने शुभी का माथा चूमा और खुद से अलग करते हुए कहा, “चलो अब चले शुभी ?”

“थोड़ा और रुक जाओ न प्लीज फिर पता नहीं कब यह मंजर देखने को मिलेगा।”

“जल्दी ही मिलेगा और बार बार मिलेगा, मैं हूँ न तुम्हारे साथ, अपने जीते जी कभी तुम्हारे साथ कुछ गलत नहीं होने दूंगा,” बर्फ अब पहले से थोड़ा तेज गिरने लगी थी लेकिन शुभी अभी भी बर्फ से खेल रही थी ।

“मुझे लगता है उस दुकान वाले की बात एकदम से सच है ! उसने कहा था कि बहुत भारी बर्फवारी होने वाली है, करीब एक फुट बर्फ अभी ही गिर चुकी है।”

तभी ऋषभ के फोन की घंटी घनघना उठी ! देखा दादा जी का फोन है ! “हेलो दादा जी ! दादी को दिखा दिया कैसी है अब वो ?”

“ जी ! ठीक है !”

“क्या कह रहे हैं दादा जी ?” शुभी ने पूछा ।

दादा जी कह रहे हैं, तुम लोग जरा जल्दी से निकल जाओ, बहुत ज्यादा बर्फ वारी होने वाली है फिर किसी को भी सड़क पर गाड़ी चलाने के लिए मना किया गया है

“ओहह !!”

“हाँ शुभी !”

“ यह पहाड़ी इलाका है और यहाँ पर जीवन मैदान की तरह से सरल नहीं है।”

“अब क्या करें ऋषभ ?”

“कुछ नहीं, बस थोड़ी देर कमरे में बैठते हैं ।“

“चलो सोनी का घर देख कर आते हैं ।”

“सोनी और काकी घर में नहीं हैं ! वे मामा के घर गयी हैं और काका तो पीकर बेसुध पड़े होंगे।”

“वे दिन में भी पीते हैं ?”

“हाँ हर वक्त नशे में ही रहते हैं !”

“ओहह ! कितनी गंदी आदत होती है यह शराब पीने की ? हैं न ?”

“हाँ शुभी, लेकिन यह तो बचपन से ही पीते हैं !”

“ओहह बेचारे !”

“अरे तुझे दुख क्यों हो रहा है ?”

“दुख तो होता ही है न !” किसी की गलत आदतों की वजह से उनका परिवार सबसे ज्यादा दुख सहता है बस यह सोचकर ।“

“दादा जी बताते हैं कि जब यह दो साल के थे तब इनकी माँ मर गयी फिर पापा ने दूसरी शादी कर ली थी और जब यह रोते थे या परेशान करते थे तो दूसरी माँ इनको दूध की बोतल में शराब पिलाकर सुला देती थी, बस तभी से यह आदत पड़ गयी।”

“ओहह पता है ऐसे लोग मुझे स्वार्थी लगते हैं जो अपनी खुशी के लिए किसी को भी दुख देते हैं । उनको अहसास क्यों नहीं होता कि जो लोग उनके ही सहारे हैं, उन्हें कितनी तकलीफ होगी? कितना दर्द होगा ?जिसे कम करने के लिए वे आजीवन गम गलत करने का सहारा ढूंढते रहेंगे फिर चाहे वो किसी भी रूप में उसे कम करें ।“भगवान दूसरी माँ क्यों देते हैं और देते हैं तो माँ न कहलाए क्योंकि माँ बहुत प्यारी होती हैं ! वो कभी अपने सुख या सुविधा नहीं देखती उनको सिर्फ अपने बच्चों की परवाह होती है !”

“हाँ यार, माँ बहुत प्यारी होती हैं !”

“हाँ सच में ! मुझे माँ की याद आ रही है ऋषभ !”

“अब चल ही रहे हैं न ! यहाँ से सीधे घर की तरफ चलेंगे !”

“अच्छा फिर ठीक है !” वे बातें करते करते कमरे तक आ गए थे खुला खुला बड़ा सा कमरा, बड़ी बड़ी खिड़कियाँ सब शीशे से कवर की हुई ! वहीं पर एक तरफ को एक स्लप डली हुई थी उस पर गैस का चूल्हा रखा हुआ साइड में जरूरी बर्तन ! जैसे चाय का फ़ाइंग पैन, एक बड़ा भगौना, एक तवा, दो तीन प्लेट, गिलास, चम्मच और ट्रे !

ऋषभ वहाँ पर बड़े से डबल बैड के किनारे पर बैठ गया और शुभी से बोला तुम आराम से थोड़ी देर पाँव ऊपर करके बैठ जाओ फिर चलना भी है !”

“जब चलना ही है तो देर क्यों करना ?”

अरे यहाँ इस कमरे को भी तो एक कोमल और मधुर स्पर्श की अनुभूति होनी चाहिए न ?”

“ओहह तो तुम्हें इस कमरे का ख्याल है मेरी कोई फिक्र नहीं है ? करो अब तुम सबकी चिंता लेकिन जिसकी करनी चाहिए उसका नाम मात्र को ही ध्यान नहीं जाता है।“

“ऐसा कैसे कह सकती हो ? मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ और मेरे मन में तुम्हारे लिए क्या जगह है, यह तुम कभी समझ नहीं पाओगी ? तुम खुद ही अपनी कीमत नहीं जानती हो ?”

“भई मेरी ऐसी क्या कीमत है, जरा मुझे भी तो पता चले ?शुभी मुस्कुरा कर बोली।

“यार कुछ बातें बिना कहे समझ आनी चाहिए।”

“हाहाहा, आप तो मुझे सिरियस करने पर तुले हो न ?”

“सिरियस हुए बिना तुम्हें कुछ समझ नहीं आयेगा !”