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Bepanaah by Seema Saxena | Read Hindi Best Novels and Download PDF

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बेपनाह by Seema Saxena in Hindi
Novels

बेपनाह - Novels

by Seema Saxena Matrubharti Verified in Hindi Fiction Stories

(56)
  • 36.3k

  • 109k

  • 8

“शुभी सुनो, कहाँ हो तुम ? आओ यहाँ मेरे पास आकर बैठो ।” मम्मी की हल्की सी आवाज उसके कानों में पड़ी। हुंह ! बुलाने दो मम्मी को, मैं नहीं जा रही । शुभी मन ही मन बड़बड़ाई । “शुभी आओ ...Read More..........।“ मम्मी ने थोड़ा और ज़ोर से आवाज लगाई । उसने अपनी मम्मी की बात को फिर से अनसुना करते हुए तकिये में मुँह छिपाया और आँखें बंद कर ली, अब उसकी आँखों के सामने घूम रहे थे कालेज के वे प्यारे दिन, जब ऋषभ उसके साथ में थे। वो और ऋषभ एक दूसरे की जान की तरह, जहां ऋषभ वहाँ शुभी और जहां शुभी वहाँ ऋषभ .... लेकिन अब उसकी जिंदगी के बड़े अजीब से दिन थे, जब पल भर को भी मन में सकूँ नहीं था, न जाने क्यों, पर वो बहुत ज्यादा बेचैन थी। उसने जीवन के बेहद अच्छे दिन उसके साथ बिताए थे ! फिर उसकी ही एक फोन कॉल ने उसे एकदम से तोड़ कर रख दिया था! हालांकि वो उसको बहुत पहले से कुछ अलग सी बातें कर रहे थे लेकिन शुभी उसके प्रेम मे इतनी बुरी तरह से डूबी हुई थी कि उसकी कही हुई किसी भी बात पर उसे यकीन ही नहीं होता था और वो उसे पहले की ही तरह बेइंतिहा प्यार करती और सच्चे मन से रिश्ते को निभा रही थी ! मानों ऋषभ के प्यार में दीवानी सी हो गयी थी ! हालांकि शुभी समझ रही थी कि ऋषभ किसी तकलीफ या परेशानी में भी है तभी उसे फोन किया होगा लेकिन वे अच्छे इंसान होने के बाद भी कभी कभी न जाने कैसी बातें करने लगते हैं जिससे उसे दुख होता और वो उसकी बातों से रो पड़ती।

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बेपनाह - Novels

बेपनाह - 1
“शुभी सुनो, कहाँ हो तुम ? आओ यहाँ मेरे पास आकर बैठो ।” मम्मी की हल्की सी आवाज उसके कानों में पड़ी। हुंह ! बुलाने दो मम्मी को, मैं नहीं जा रही । शुभी मन ही मन बड़बड़ाई । “शुभी आओ ...Read More..........।“ मम्मी ने थोड़ा और ज़ोर से आवाज लगाई । उसने अपनी मम्मी की बात को फिर से अनसुना करते हुए तकिये में मुँह छिपाया और आँखें बंद कर ली, अब उसकी आँखों के सामने घूम रहे थे कालेज के वे प्यारे दिन, जब ऋषभ उसके साथ में थे। वो और ऋषभ एक दूसरे की जान की तरह, जहां ऋषभ वहाँ शुभी और जहां शुभी वहाँ ऋषभ ..
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बेपनाह - 2
2 वैसे इस थिएटर ने उसकी कुछ समय के लिए तकलीफ़ें कम की थी, वहाँ पर अपनी अपनी फील्ड के एक से बढ़कर एक बड़ा कलाकार, हर उम्र और हर रंग रूप के, कुछ दिनों में उसको बड़े मजे ...Read Moreलगे, सब उस से बातें करते । सबको वो न जाने क्यों इतनी प्यारी लगती । वो सुबह छह बजे घर से रिहर्सल के लिए निकल जाती । मम्मी भी खुश कि चलो ग्यारह बारह बजे तक सोने वाली लड़की अब सुबह पाँच बजे उठ जाती है और अच्छे से नहा धोकर तैयार हो कर जाती है और शुभी तो
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बेपनाह - 3
3 जिंदगी बेरौनक़ सी लगने लगी, किसी और काम में मन ही नहीं लगता । अब वो चाहती थी कि कोई ऐसा काम करे जिससे निरंतर व्यस्तता बनी रहे । वो एक क्षण को भी खाली नहीं रहना चाहती ...Read Moreक्योकि जरा सी देर भी खाली रहना मतलब खुद को दर्द के साये में धकेल देना और यह दर्द इतना असहनीय सा लगता कि जान निकलती, आँखों से आँसू बहते और लगता कि कोई जिस्म से जान खींचे लिए जा रहा है । उसके दिल में ऋषभ ने अपना कब्जा जमा लिया था जो बात बात पर उसकी याद दिलाता,
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बेपनाह - 4
4 उसकी सारी चिंताएँ लगभग खत्म सी हो गयी थी, अब वो बेफिक्र होकर प्ले में जाने की तैयारी कर रही थी । निश्चित दिन सब लोग निकल गए । उसके घर में सर ने अपनी एक सेविका भेज ...Read Moreजो उनके घर में हर समय रहती थी । अब वापस आने तक वो सेविका दिन रात उसके घर में मम्मी के साथ ही रहेगी । वो मम्मी की हमउम्र थी और मम्मी को उसके साथ अच्छा लगेगा यह सोचकर शुभी थोड़ा बेफिक्र और खुश थी क्योंकि अब कहीं भी जाने में कोई परेशानी नहीं थी । आज पहली बार
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बेपनाह - 5
5 अगले दिन प्ले था अतः सर ने सब लोगों कों कहा, :चलो पहले अपने होटल चलकर आराम करते हैं फिर कल प्ले करने के बाद दो दिन घूमने में लगा देंगे।“ शुभी बहुत खुश थी कि मजे करेंगे ...Read Moreऋषभ के कारण अब उसका मन सिर्फ उसमें ही अटक गया था । सभी लोगों के रुकने की जगह कोई ज्यादा ख़ास नहीं थी एक बड़ा सा रूम, अटैच वाथरूम । इसमें पाँच लड़कियों को एक साथ रहना था, लड़कों के लिए भी ऐसा ही एक कमरा था और वे छह लोग थे। खूब बड़ा सा होटल करीब 100 कमरों
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बेपनाह - 6
6 यूं ही तो कोई बेवफा नहीं होता कोई न कोई मजबूरिया रही होगी ! शुभी ने सोचा। “शुभी यार,मुझे माफ तो कर दो, तेरा गुनहगार हूँ मैं ! मैंने गलत किया था खुद को सजा देने के लिए ...Read Moreअनजाने में मैं तुम्हें ही सजा दे गया ।“ “चलो अभी हम इस बात को यहीं पर खत्म करें ! यह शाम जो इतने दिनों के बाद मिली है क्या उसे शिकवा शिकायतों में ही निकाल देंगे ? यूं ही तो कोई बेवफा नहीं होता कोई न कोई मजबूरियां रही होगी ! शुभी को यह शेर याद आया । “ओहह,,मैं
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बेपनाह - 7
7 करन और मनोज सबसे पीछे बैठे मूँगफली और चने के डिब्बे से चपके चुपके निकाल कर टूँग रहे थे ! खूब लंबा और बढ़िया पर्सनाल्टी का मालिक है करन डांस भी बहुत अच्छा करता है, न जाने अब ...Read Moreकितने देश घूम चुका और इतने अवार्ड जीते है ! मनोज पतला दुबला सा खूब अच्छा वायलिन बजाता है हर गाने को बखूबी बाजा लेता है ! दोनों ही अपने अपने काम में माहिर हैं और साथ ही बहुत अच्छे दोस्त भी, हर जगह साथ, खाना पीना भी साथ साथ । “अरे ओ चिपकू, लंबू इतने पीछे क्यों बैठे हो
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बेपनाह - 8
8 ऋषभ आ गया है यह खुशी उसके लिए बहुत मायने रखती है । उसके आने से जिस्म में जान लौट आई थी लेकिन ऋषभ तुम जरा सी बात के लिए दूर चले गये, कभी सोचा भी नहीं कि ...Read Moreयूं जाना, मौत के समान था। तुम वापस तो आ गए लेकिन यहाँ सबके सामने खुद को भाई बना कर पेश कर दिया। क्या भाई को कोई पति या बोयफ्रेंड बना सकता है ? ऋषभ यह इंडिया है और हम हिन्दू, यहाँ पर इंसान ही इंसान को जीने नहीं देता है वहाँ पर भाई को किसी भी कीमत पर पति
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बेपनाह - 9
9 यह सब क्या चल रहा है यहाँ ! उफ़्फ़ यह कैसे रिश्ते हैं ? क्या यही है एक औरत का जीवन ? क्या मर्द बिलकुल स्वतंत्र है किसी जानवर की तरह । जब उसका जो मन आए वही ...Read More? नहीं यह नहीं हो सकता । मेरे पापा भी तो मर्द थे वे बिलकुल भी ऐसे नहीं थे ! माँ का कितना ख्याल रखते थे । मैंने उनको कभी भी तेज आवाज में मम्मी से बात करते हुए नहीं सुना था ! कितने प्यार से, कितने धीरे धीरे समझा कर बात करते थे । क्या जमाना बादल गया है
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बेपनाह - 10
10 छोटा सा घर था उसकी चौखट पर ही बैठ कर वो बड़बड़ा रहा था और रोता जा रहा था । शुभी को लगा शायद इसकी पत्नी इसकी ज्यादती से तंग आकर इसे छोड़ कर चली गई है लेकिन ...Read Moreयह सोचना गलत निकला । एक औरत अंदर से पानी का भरा गिलास लेकर आई और उसके पास आकर बोली, लो पहले पानी पी लो ! वही रात वाली आवाज ! यही तो रात रो रही थी और यह चीख रहा था और अभी यह चीख तो नहीं रही पर वो पुरुष रो रहा था । अरे इतनी जल्दी तस्वीर
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बेपनाह - 11
11 नाश्ता करके ऋषभ से बात करनी है जल्दी से यह हलवा और पकौड़ी फिनिश कर दूँ ! उसने देखा नाजमा बड़े मजे में आराम से पैर फैलाये जमीन पर बिछी दरी पर बैठी है और सबके साथ गपियाते ...Read Moreखा पी रही है ! शुभी को इसकी यह आदत बिलकुल पसंद नहीं है, पता नहीं क्यों मुझे यह सब अच्छा नहीं लगता । जी करा कि एक बार इसे टोंक दूँ लेकिन फिर मन को समझाया । जाने दो, क्या करना यह उसकी लाइफ है, जीने दो जैसे उसे अच्छा लगे कोई हमारे हिसाब से वो अपना जीवन थोड़े
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बेपनाह - 12
12 कितने प्यारे लगते हैं मुस्कुराते हुए लोग ! शुभी ने उनके चेहरे को देखते हुए सोचा, ना जाने क्यों आँसू और दुख दर्द बना दिये ईश्वर ने सिर्फ मुस्कान ही बाँट देते जिससे सब लोग हमेशा हंसते और ...Read Moreरहते । आइस क्रीम खाकर सभी के चेहरे पर मुस्कान आ गयी थी ! वाकई बड़ी स्वादिष्ट थी ! अभी हम लोगों के पास टाइम है कहो तो सब लोग यहाँ के घूमने वाले जगहों पर घूम आये, कल मसूरी चले चलेंगे, शाम तक आ जाएंगे फिर यहाँ पर प्ले देख लेंगे ।“ सर ने अपनी बात रखी । “हाँ
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बेपनाह - 13
13 दोपहर के करीब दो बज रहे थे और सब लोग खूब मस्ती करके वापस लौट आए थे लेकिन शुभी के दिलो दिमाग में रात की वो घटना दिन भर उथल पुथल मचाए रही, अब तो उस स्त्री से ...Read Moreबात करके ही आऊँगी ! सब लोग थके हुए थे इसलिए खाना खाकर सो गये और शुभी चुपके से किसी से भी बिना कुछ कहे अकेले ही उसके घर की तरफ चल दी । अब जो होगा देखा जायेगा, किसी की परेशानी मेरी डांट से ज्यादा बड़ी है अगर सर डाँटेंगे तो सह लेंगे । शुभी के कदम बिना किसी
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बेपनाह - 14
14 वे अब चुप रही कुछ नहीं बोली ! “सुनो मैं आपसे बहुत छोटी हूँ लेकिन मैं अपने आपको आपसे ज्यादा समझदार समझ रही हूँ अगर मैं आपकी जगह होती तो कभी यूं बेबस नहीं होती ! आप कुछ ...Read Moreके लिए उनको उनके हाल पर छोड़िए फिर देखना सब सही हो जायेगा ! उनको सच समझ आयेगा ! मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि आपके बेपनाह प्यार की वजह से ही वे भटक गए हैं क्योंकि जिसे जो चीज ज्यादा मिलती है वो उसे और भी ज्यादा पाना चाहता है ! देखिये आपको ही सब कुछ सही करना
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बेपनाह - 15
15 उस ने अपना सामान ले जाकर गाड़ी की डिक्की में रखा और आगे वाली सीट पर बैठ गयी और ऋषभ ने ड्राइविंग सीट संभाल ली ! एक्सिलेटर पर अपने पैर का द्वाब बनाया और गाड़ी को हवा की ...Read Moreसे दौड़ा दिया । “ऋषभ कार इतनी तेज गाड़ी मत चलाओ, मेरा दिल पहले से ही घबरा रहा है !” “क्यों क्या हो गया ? यार मस्त रह, सब सही होगा और मैं हल्की गाड़ी नहीं चलाता ।“ ऋषभ मुस्कुरा कर बोले । “थोड़ा तो हल्का कर लो प्लीज ।” उस ने उससे मनुहार करते हुए कहा । “कितनी हल्की
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बेपनाह - 16
16 “क्यों रहने दो भला, एक बार तुम यहाँ पर मेरे साथ कुछ खा लो फिर बार बार आने का मन करेगा।” “इनकी बात मान लेने के अलावा और कोई तरीका ही नजर नहीं आया।” “फ्राइड राइस और मंचूरियन ...Read Moreलेते हैं।” “हाँ ठीक है !लेकिन एक प्लेट ही ऑर्डर करना मैं तुम्हारी प्लेट से ही शेयर कर लूँगी।“ “क्या यार, खाना तो सही से खा लिया करो।” “खाना वाकई बहुत कमाल का था ।” “ऋषभ सुनो, तुम अपने दोस्त के घर रुकोगे और खाना खाकर जा रहे हो तो वहाँ पर खाना नहीं खाओगे ? वो इंतजार कर रहा
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बेपनाह - 17
17 “चल ठीक है अभी खाना क्या खाएगा बता दे ?” “हम लोगों ने अभी ढाबे पर खाया है, शुभी को तेज भूख लग रही थी।“ “मतलब खाना नहीं खाना है ।” वो थोड़ा गुस्से से बोले । “कल ...Read Moreको बना कर रखना यही आकर खाऊँगा ।“ “चल कोई नहीं ! तुम दोनों के सोने का इंतजाम कर देते हैं ।” दोनों कमरों में बेड पड़े हुए थे ! एक में उसकी पत्नी, उसकी बेटी और शुभी सो गए दूसरे में ऋषभ और उसका दोस्त । सुबह जल्दी उठना था इसलिए शुभी तो लेटते ही सो गयी लेकिन ऋषभ
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बेपनाह - 18
18 “ओय कितती सोंढ़ी है ! तूने अपनी माँ से मिलाया ?” “नहीं दादी पहले तू बता तुझे पसंद आई कि नहीं ?” “बहुत सुंदर है ! क्या नाम है तेरा बेटा ?” वे शुभी की तरफ देखती हुई ...Read More। “शुभी !” उसने शर्माते हुए बड़ा संक्षिप्त सा उत्तर दिया । “नाम में भी शुभ ! सुंदर भी है !” दादी के चेहरे पर मुस्कान खिल आई थी । यह सुनते ही शुभी को ऋषभ ने अपनी आँख से कोई इशारा किया । शुभी ने जल्दी से आगे बढ़कर दादी के पाँव छु लिए ! “खूब खुश रहो। सदा
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बेपनाह - 19
19 “कितनी सुंदर हैं जी चाह रहा है कि सभी उठा कर ले जाऊँ।” शुभी ने कहा। “तो सब ले लो !” कहकर ऋषभ ने उसे सारी जैकेट उठाकर दे दी। “मुझे इतनी सारी नहीं चाहिए ! एक ही ...Read Moreही बहुत है ! मेरा मतलब है कि मेरे लिए सिर्फ एक, बाकी आपकी माँ और दीदी के लिए भी तो लेनी चाहिए।“ “हाँ हाँ उन लोगों के लिए भी लेनी है लेकिन तुम्हें एक नहीं लेनी, लो पकड़ो यह हैं तुम्हारे लिए।“ कहते हुए ऋषभ ने उसे दो जैकेट पकड़ा दी । वो कहते हैं न कि अपने आप
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बेपनाह - 20
20 “क्या हुआ तुम यहाँ ?” “हाँ मुझे नींद नहीं आ रही है।” “अरे ! जाओ सो जाओ जाकर।” “नहीं तुम भी मेरे साथ चलो वहाँ पर।” “पागल हुई है क्या ? यहाँ दादा जी क्या सोचेंगे?” “सोचने दो, ...Read Moreभी सोचना है ! मुझे किसी की परवाह नहीं है ! मैं तुमसे प्रेम करती हूँ कोई मज़ाक नहीं है प्रेम करना ! मेरी जान निकलती है तुमसे पल भर को भी अगर दूर जाती हूँ तो।” “हम हमेशा साथ हैं और साथ ही रहेंगे तुम मेरी हो।” “तुम भी सिर्फ मेरे हो ! समझे ऋषभ।” “हाँ भाई हाँ !
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बेपनाह - 21
21 आखिर किसी तरह से वो पराठा खत्म किया और आधा कप चाय पीकर वो जाने को तैयार हो गयी । “शुभी सारा सामान डिक्की में रख लेते हैं फिर बाग देखते हुए उधर से ही वापस घर निकल ...Read More“हाँ यह सही रहेगा ! वैसे भी दादी कह रही हैं कि बर्फ गिरने वाली है, कल वो चूड़ियों की दुकान वाले कह रहे थे कि आज बर्फ गिरेगी।” दादी दादा के पाँव छूकर उनका आशीर्वाद लिया और रूपोली को कुछ पैसे देकर उन लोगों ने वहाँ फिर आने का वादा कर के विदा ली । दादी जी ने उसे
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बेपनाह - 22
22 “ऋषभ यह कमरा कितना प्यारा है न।” “हाँ यह कमरा हनीमून के लिए सबसे अच्छा है, हम लोग भी यही हनीमून के लिए मनायेंगे।” “कैसी बात करते हो ऋषभ ? पहले शादी तो करो ?” “हाँ भाई शादी ...Read Moreबाद ही हनीमून मनाया जाता है।” ठीक है, चलो अब नीचे चले? “नहीं, थोड़ी देर यही पर बैठते हैं ! कितना सुंदर व्यू दिख रहा है यहाँ से ।” पहाड़ों की घनी श्रंखला, एक के पीछे एक करते हुए कितने ज्यादा पहाड़ ही पहाड़ नजर आ रहे हैं ! दूर से बीच में काली घुमाव दार सड़क किसी लग रही
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बेपनाह - 23
23 “क्या सोच रही हो शुभी? तुम्हें यहाँ अच्छा नहीं लग रहा है ?”ऋषभ ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा। “यह सोच रही हूँ कितना अच्छा है यहाँ सब कुछ, मानों कोई देवीय शक्ति मुझ में प्रवेश ...Read Moreगयी है और मैं खुद को बहुत निर्मल पा रही हूँ !” “यही होता है जब मन खुशी से भर जाता है तब सब कुछ एकदम से निर्मल और पवित्र लगता है और इसे सिर्फ एक सच्चा मन ही महसूस कर सकता है !” “हाँ ऋषभ मैं खुद को किसी फूल की तरह से सुगंधित, हल्का-फुल्का और खिला हुआ महसूस
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बेपनाह - 24
24 “हे भगवान ! फिर मेरा यहाँ तुम्हारे पास क्या काम रहेगा, मुझे हॉस्पिटल में शिफ्ट होना पड़ेगा ! सिरियस लोग वहीं अच्छे लगते हैं ।“ शुभी ऋषभ को छेड़ने में लगी हुई थी जबकि ऋषभ बहुत गंभीर होकर ...Read Moreकर रहे थे । “तुझे सुधरना ही नहीं है, चाहें कोई कुछ भी कहे या समझाये !” “सही कहा मुझे यूं ही रहने दो पागल मूर्ख और कमअक्ल ! दुनिया में समझदार लोग बहुत हैं कुछ हम जैसे भी होने चाहिए न और सुनो, मुझे संभालने के लिए आप तो हो ही फिर मैं नहीं होना चाहती समझदार ।” “चल
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बेपनाह - 25
25 “कितना प्यारा है ऋषभ, एकदम निश्चल मन का है न स्वार्थ है, न कोई लालच। कल से उसके साथ है पर एक बार भी उसने उसे गलत तरीके से टच नहीं किया। ऋषभ तुम मुझे सच में प्यार ...Read Moreहो, सच्चा और पवित्र प्यार। वैसे प्यार तो पवित्र ही होता है लोगों के मन में कलुषता होती है वे ही प्रेम के मुंह पर गंदगी फेंक देते हैं। “क्या सोचने लगी? सब अच्छा ही होगा और मेरे होते तुम्हें दुखी होने की जरूरत नहीं है ! आओ बर्फबारी में फोटो खींचते हैं !” किसी छोटे बच्चे की तरह से
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बेपनाह - 26
26 ऋषभ जल्दी से बिस्तर से उठा और गैस जला कर उस पर चाय का पानी चढ़ा दिया ! चाय मसाला, अदरक और गुड की बिना दूध वाली चाय उसके हाथ में पकडाता हुआ बोला, “अब बताओ कैसी बनी ...Read Moreचाय ?” “हाँ पीने तो दो फिर बताती हूँ जी !” शुभी ने जी पर ज़ोर देते हुए कहा ! “वाह ! क्या चाय बनी है, सच में बहुत अच्छी और बिना दूध की चाय होने के बाद भी निराला स्वाद है !” “सच कह रही है न ?” “हाँ ! तुम्हें लग रहा है कि मैं झूठ बोल रही
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बेपनाह - 27
27 वही कमरे के बाहर बर्फ की खूब मोटी परत जम गयी थी, उसे कलछी से खुरच कर उसने भगौने में डाला और गैस जलाकर उस भगौने को रख दिया । “यह क्या कर रहे हो गैस पर बर्फ ...Read More?” शुभी ऋषभ की हरकत देख कर ज़ोर से हंस दी। “शुभी तुम हँसती हुई कितनी प्यारी लगती हो ! बस हमेशा यूं ही खुश और मस्त रहा करो।” “हाँ सही कहा क्योंकि हँसना भगवान का प्रसाद मिलना होता है ! तुम भी हमेशा खुश रहना, कभी उदास मत होना ।” “जी देवी माँ, जो आपकी आज्ञा !” गैस की
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बेपनाह - 28
28 दोनों के तन और मन दोनों ही जल रहे थे अब ऐसा लग रहा था अगर इस प्रेम के उमड़ते सैलाब को नहीं रोका तो फिर न जाने क्या हो जायेगा, चाय के कप एक तरफ रखे हुए ...Read Moreऔर वे दोनों उस सैलाब में बहे जा रहे थे उन्हें कोई नहीं रोक सकता था, जब ईश्वर ने ही उनको इस अटूट बंधन में बांधने का फैसला ले लिया था। एक हो गए दो जिस्म, एक हो गयी दो जान, प्रेम ने उन्हें अपने आगोश में जकड़ लिया । दो पल में सब बदल गया एक नयी दुनिया बन
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बेपनाह - 29 - अंतिम भाग
29 दर्द से हाथ में बहुत तकलीफ हो रही थी लेकिन वो अपने दर्द को जाहिर नहीं करना चाहती थी ! वैसे कोई भी महिला अपने दर्द कभी किसी से नहीं कहेगी, भले ही वो उस दर्द को सहते ...Read Moreमर ही क्यों ना जाये लेकिन कहना नहीं है उन्हें लगता है कहने सुनने का कोई मतलब भी नहीं है सुनेगा कौन ? हम जिसे प्रेम करते हैं उससे हम यह चाहते हैं कि वो हमारे किसी भी तरह के दर्द, दुख या तकलीफ को बिना कहे समझ जाये और यह तो ऋषभ को पता था फिर क्या हुआ उसे
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