आखिरी प्यार

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उर में माखन चोर गड़े अब कैसेहु निकसत नहीं उधौ तिरिछे ह्वै जो अड़े| संकरी जगह पर कोई बड़ी चीज तिरछी होकर फंस जाए तो वह वहाँ से नहीं निकल सकती |निकालने से या तो वह चीज टूटेगी या फिर जगह |नए के आने की तो कोई गुंजाइश ही नहीं |त्रिभंगी कृष्ण भी गोपी के हृदय में तिरिछे होकर फंस गए हैं और जीते-जी निकाले नहीं जा सकते | विद्यार्थी जीवन में यह पद पढ़ते वक्त मैं प्रेम के उस मनो-जगत तक नहीं पहुंची थी,जहां आज पहुँच पा रही हूँ |आज महसूस कर पा रही हूँ कि अंधे सूरदास का