माचु बुआ और महेष्वरी

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तमिल कहानी लेखिका शांता बाल गोपाल अनुवाद एस.भाग्यम शर्मा जेठ का माह खतम हुआ। वरूण देवता ने पानी के छीटे मार उसे विदा कर दिया। फूल-पत्ते ठण्डक पाकर सिर हिला रहें थे। ऐसा लग रहा था कि पेड़-पत्त्ते नहा धोकर, सुन्दर, साफ व मौन नजर आ रहे थे। शारदा सत्तर साल की बुजुर्ग महिला है पर क्या इतनी रूचि लेकर प्रकृति को देखने का मन सभी को मिल सकता है? ‘‘अम्मा!’’ महेष्वरी आवाज देती हुई आई। ‘‘आज औरतो की उन्नति के बारें में एक विचार गोष्ठी का आयोजन है। दस बजे शुरू होगी। राजम मामी को मैंने खाना बनाने को