हमनशीं । - 6

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“एक दिन सुबह। आँखें खुलते ही रफ़ीक़ ने बुझे मन से सुहाना के मोबाइल पर फोन लगाया। इसबार, सुहाना का मोबाइल ऑन था और कॉल जा रहा था । जैसे शरीर को उसकी आत्मा मिल गई हो, बिस्तर पर लेटा हुआ रफीक फुर्ती से उठ बैठा। एक-दो रिंग के बाद सुहाना ने कॉल उठाया।...... ......कहाँ चली गई थी तुम, बिना बताए? कैसी हो? अम्मी कैसी हैं? तुम्हें थोड़ी भी समझ नहीं कि हमलोगों पर क्या गुजरेगी!” – बिना रुके रफ़ीक़ बोले ही जा रहा था। “हम्म... बताऊँगी, बाद में। अभी रखती हूँ।” – यह कहकर सुहाना ने फोन काट दिया।