प्रिय नारायणन ....

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उमा जानकीरामन के तमिल कहानी का अनुवाद एस. भाग्यम शर्मा नारायणन जल्दी दफ्तर जाने के लिये तैयार हो रहा था तब ही उसके अम्मा की चिट्टी आई। नीले रंग के इन्लैंड बहुत छाटे-छोटे अक्षरों में लिख कर पत्र पूरा भरा हुआ था। उसमें थोडी सी जगह भी खाली नहीं छूटी थी। जिसे देखकर उसका मन बेचैन हुआ। मीना ने खिचड़ी की थाली लाकर दी। उसे खाते हुए वह चिट्ठी पढ़ने लगा। “किसका पत्र है ? तिरूवैयार से है क्या ?’’ नारायणन बिना जवाब दिये खा रहा था। उसे चटनी परोस कर दुबारा जब मीना ने पूछा तो उसने हाँ में