पंखा

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दीपक शर्मा ’’कहो भई आलोक ?... कहो भई प्रकाश ? कहाँ हो ?’’ फूफाजी ने सीढ़ियों से हमें पुकारा है । बिजली की तार के थोकदार व्यापारी, हमारे बाबूजी की दुकान के ऐन ऊपर हमारा यह नया आवास है । माँ की मृत्यू के बाद बाबूजी हम दोनों जुड़वा भाइयों को हमारे पुराने मुहल्ले से निकाल लाए हैं । इन्हीं फूफाजी ने उन्हें रोकने की चेष्टा भी की ’दो मील दूर उधर इन लड़कों को ले जाने से पहले यह तो सोचो, भाई, देर-सवेर मौके बेमौके इन्हें कोई ज़रूरत आन पड़ी तो उधर बेगानों में से मदद को कौन आगे