कविता

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छुआ था। जब तुमने रूमानी होकर मुझे पहली बारसहम सी गई थी मैं, सिमट सी गई थी मैंछलक सी गई थी मैं, और एक जगह जड़ सी हो गई थी मैंवो अजीब सी छुअन, ना जाने कैसी छुअन थीपर पहले जैसे छूते थे। तुम, वैसी नहीं थी वोछुआ था जब रूमानी होकर, तुमने मुझे पहली बारबदन पर वस्त्रों का बोझ लग रहा था।, उन्हें खुद से अलग होने के इंतज़ार में थी। मैंगालों पर लाली उभर रही थी।, आखों में शरारत भरने को तैयार थी।, मैंमंद-मंद मुस्कान होटों पर बिखर रही थी, कानों में एक वाघ संगीत गूंज रहा था।सीने