बुआ--(विजय शर्मा की कहानी)

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विजय शर्मा याद नहीं पड़ता उसने कभी मुझे प्यार किया हो, कभी दुलारा हो, पुचकारा हो. हमेशा दुत्कारा था मुझे उसने. मैं उसकी झिड़कियों की आदी हो गई थी. दिन में कम-से-कम तीन-चार बार वह मेरे लिए अवश्य कहती `मर क्यों न गई पैदा होते ही?', `तू पैदा ही क्यों हुई?', `हे भगवान! क्या होगा इसका!' मैं इतनी ढ़ीठ, इतनी बेहया हो गई थी कि उसके कोसने का इंतजार करती. सूरज पश्चिम से निकल आए पर उसका कोसना नहीं रुक सकता था. उसका स्वभाव ही चिड़चिड़ा था, दिन भर भुनभुनाती रहती, दूसरों के काम में नुक्स निकालती रहती. कभी मेहतरानी