गोलू भागा घर से - 8

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8 पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर अब रात के साढ़े ग्यारह बजे हैं। गोलू कुछ-कुछ हक्का-बक्का सा, यहाँ से वहाँ, वहाँ से यहाँ धक्के खाता-सा घूम रहा है। उसका दिमाग जैसे ठीक-ठीक काम नहीं कर रहा। इतना बड़ा स्टेशन। इतनी बत्तियाँ...इतनी जगर-मगर। इतनी भीड़-भाड़। देखकर गोलू भौचक्का सा सोच रहा है—यहाँ भला सोने की जगह कहाँ मिलेगी?...और सोऊँगा नहीं, तो कल काम ढूँढ़ने कैसे निकल पाऊँगा? लेकिन धीरे-धीरे लोग कम होने लगे, तो एक बेंच पर उसे बैठने की जगह मिल गई। वह बैठे-बैठे ऊँघने लगा। थोड़ी देर बाद बेंच खाली हो गई तो वह पैर