अंकल का मज़ाक

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चेतन घर में घुसा तो कुछ मायूस था। मुझे अजीब सा लगा। क्या बात हो सकती है? अभी- अभी अपनी साइकिल उठा कर बाहर गया था तब तो बड़ा चहक रहा था। घड़ी भर में ही पस्त सा वापस लौटा है। होगा कुछ। अब छोटी- छोटी बातों पर क्या ध्यान देना। दरअसल हम बड़े, बच्चों का सही मूल्यांकन कर ही नहीं पाते। हम उन्हें बच्चे ही समझते हैं और ये मानकर चलते हैं कि इनके पास एक सपाट जेहन है। खाने- खेलने- पढ़ने के अलावा इनका कोई और न तो अनुभव है, न कोई भावना और न ही अपेक्षा। पर