अब भी देर थी

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सुनसान बियाबान था। सायं - सायं हो रही थी। सड़क के दोनों ओर बड़े- बड़े पेड़ों के तरह - तरह के छोटे - बड़े पत्ते खड़खड़ा रहे थे। कोई भय से, कोई उन्माद से तो कोई हताशा से। दूर - दूर तक कहीं बिजली की रोशनी का नामोनिशान नहीं था। थोड़ी देर पहले बारिश होकर चुकी थी। कोई जंगली जानवर भी सड़क पार करता तो डर से जान का जोखिम उठाकर ही भागता। किसी को किसी का भरोसा न था। घना जंगल ठहरा।कई किलोमीटर के ऊबड़- खाबड़ और टूटे- फूटे रास्ते में रोशनी के नाम पर एकमात्र उस मोपेड की