दर्पण

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शीर्षक_ "जीवन अंत कहां होगा!!" पल पल बढ़ते अनिश्चित पथ कापूर्ण विराम कहां होगा ..!,जीवन अथक कहानी है, तो,अंत भला कहां होगा !इस पार जीवन है,उस पार जीवन कहां होगा!पल पल घूमते जीवन चक्र में,अंत भला कहां होगा?संघर्ष इस पार जीवन में,क्या शांति उस पार मिलेगा?इस पार जीवन है,उस पार जीवन कहां होगा!पल पल बढ़ते अनिश्चित पथ पर,पूर्ण विराम कहां होगा!गायत्री ‌ठाकुर.''अन्नदाता ''कल हुई थी जंग..,भूख और मौत में,उसने मौत को चुना था.टकटकी लगाए..,आसमान में, खाट पर अन्नदाता का शव पड़ा था !लग रही है ठंड मूर्तियों को ,यह कहकर ..,दान वस्त्रों का मंदिरों में चढ़ा था,पर कफ़न के आस