नामालूम सी ख़ता

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गर्मी के दिन थे. बादशाह ने उसी फागुन में सलीमा से नई शादी की थी. सल्तनत के झंझटों से दूर रहकर नई दुल्हन के साथ प्रेम और आनंद की कलोल करने वे सलीमा को लेकर कश्मीर के दौलतख़ाने में चले आए थे. रात दूध में नहा रही थी. दूर के पहाड़ों की चोटियां बर्फ से सफ़ेद होकर चांदनी में बहार दिखा रही थीं. आरामबाग़ के महलों के नीचे पहाड़ी नदी बल खाकर बह रही थी. मोतीमहल के एक कमरे में शमादान जल रहा था और उसकी खुली खिड़की के पास बैठी सलीमा रात का सौंदर्य निहार रही थी. खुले हुए