खौफ की रातें - 5

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5) भूतिया स्टेशनसुबह टेलीफोन की घंटी बज उठी , उस वक्त मैं आंख बंद कर आधे नींद में था। शायद सुबह के 10 बजने वाले थे । रात को कुछ ज्यादा ही समय तक एक लेखन पर जुटा हुआ था इसलिए अब तक सो रहा था । फोन उठाया उधर पत्रिका सम्पादक दिवाकर चटर्जी जी थे बोले , " प्रशांत जल्दी से ऑफिस आ जाओ एक जरूरी काम करना है । " " ओके सर " यह कहकर फोन रख दिया । अब क्या हुआ कौन सा बादल फट गया । मैंने आंख मलते हुए बड़बड़ाया । वैसे भी पत्रिका