चरित्रहीन - (भाग-12)

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चरित्रहीन.....(भाग-12)विद्या को मैं नहीं पहचान पायी थी, थोड़ा शरीर पहले से ज्यादा भर गया था, पहले से ज्यादा सुंदर भी हो गयी थी। उसनै मुझे पहचान लिया, अपने पुराने अँदाज में गले मिलते हुए बोली, "हाय वसुधा तू बिल्कुल नहीं बदली, वैसी की वैसी ही है, क्या है तेरी खूबसूरती का राज"! मैं मुस्करा कर रह गयी। मुझे तो ज्यादा काम था नहीं तो मैंने पूछा, "अगर बिजी नहीं हो तो चलो कॉफी पीते हैं"! वो झट से साथ हो ली और बोली, " नहीं यार कोई बिजी नहीं हूँ, चल बहुत दिनों बाद मिले हैं, कॉफी पीते हैं"! एक