सौगन्ध--भाग(५)

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मनोज्ञा ने भी जैसे ही लाभशंकर को देखा तो बोल पड़ी.... तुम वही हो ना!जिसने उस मृग को मूर्छित कर दिया था, जी!वो तो भूलवश हुआ था मुझसे,मैं तो केवल लक्ष्य साधकर ये ज्ञात करना चाहता था कि मैं इस योग्य हूँ या नहीं,लाभशंकर बोला।। मुझे तुम पर विश्वास नहीं है,मनोज्ञा बोली।। पुत्री मनोज्ञा!तुम्हें इसे जानने में कोई भूल हुई है,देवव्रत बोला।। अच्छा!तो आपका नाम मनोज्ञा है,लाभशंकर बोला।। नहीं!रक्त पीने वाली पिशाचिनी नाम है मेरा,मनोज्ञा बोली।। पुत्री!इस पर इतना क्रोध मत करो?देवव्रत बोला।। परन्तु!काका श्री!आप इसे नहीं जानते,ये अत्यधिक निर्दयी व्यक्ति है,इसने मृग को मूर्छित किया था,मनोज्ञा बोली।। पुत्री!मैं इसे