सौगन्ध--भाग(८)

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देवव्रत निरन्तर ही वसुन्धरा के मुँख की ओर निहारे जा रहा था किन्तु उसे कुछ याद नहीं आ रहा था कि उसने पहले उन्हें कहाँ देखा है,वो इसी अन्तर्द्वन्द्व में उलझा हुआ आगें बढ़ गया,जब धर्मशाला पहुँचा तो वो अत्यधिक चिन्तित था,उसने जैसे ही धर्मशाला के कक्ष में प्रवेश किया तो उसके विचारमग्न मुँख को देखकर लाभशंकर ने पूछा.... क्या हुआ मामाश्री! माँ ने कुछ कहा है क्या है जो आप इतने चिन्तित प्रतीत हो रहे हैं? ना पुत्र!ऐसा कुछ भी नहीं है,देवव्रत बोला।। तो आप इतने गम्भीर क्यों दिख रहे हैं?लाभशंकर बोला।। ना जाने क्यों मार्ग में राजमाता वसुन्धरा