तेरी दहलीज़ तक

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तेरी दहलीज़ तक कहानी / शरोवन *** ‘जिस निष्ठुर इंसान ने मेरे कोमल बदन की तमाम नाज़ुक भावनाओं और संवेदनाओं को बे­दर्दी से खुरच­-खुरचकर उतार दिया हो, उसके घावों के निशान मेरे जीवन से आज भी बरामद किये जा सकते हैं। कैसे भूल सकती हूं?’ कहते हुये मुक्ति उलटे कदम पीछे लौटने लगी तो रोहिम ने उसे रोका।*** दूर क्षितिज में जब सूर्य की अंतिम लाली भी नदी की थिरकती लहरों पर अपना सोना बिख़ेरकर लुप्त हो गई तो डूबती हुई सांझ के साये में वृक्षों की शांत पत्तियों ने भी चुपचाप सोने की तैयारी कर दी। दूर आकाश में