जीना यहां मरना यहां....

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जीना यहां मरना यहां…..!  शैलेश अरोराजी की याद आते ही कैफ़े आज़मी का गीत -'तुम इतना जो मुस्करा रहे हो,क्या ग़म है जो छुपा रहे हो' जेहन में गूंजने लगता है l वे अक्सर एक जुमला सुनाया करते थे- शर्त लगी थी खुशी को एक अल्फाज़ में लिखने की, लोग किताबें ढूँढते रह गए और हमने दोस्त लिख दिया…l अस्सी साल के शैलेशजी की जब अर्थी उठ रही थी तो हज़ारों आंखें भीतर से नम मगर चेहरे पर मुस्कान लिए उन्हें अंतिम बिदाई दे रही थींl वे गुनगुनाते थे- 'जीना यहां मरना यहां, इसके सिवाय जाना कहां!' तीस साल पहले