सत्यजीत सेन (एक सत्यान्वेषक) - 5

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घर के पास ही एक भोजनालय था जहां से रोटी सब्जी बंधवा कर मैं लॉज की घर की सीढ़ियां चढ़ने लगा। रात का खाना बनाने की तो झंझट ही खत्मवरना सत्यजीत की हाथों की फुल्की रोटियां खा कर तो पेट ही फूल गया है।घर की दहलीज पर पहुंचकर जैसे ही दरवाज़ा खटखटाया क्या देखता हूं इंस्पेक्टर साहब ने दरवाजा खोलाआइए आईए अरूप जी अंदर आइए।आपका ही इंतजार था सत्यजीत भी कुर्सी पर बैठा हुआ था।मेरे अंदर घुसते ही इंस्पेक्टर बोलाअरे अरूप बाबू चाय पिलाएंगेमन तो किया साफ ना बोल दूं पर सर हिलाते हुए में रसोई में चला गया।एक कप