जीवन ध्येय उतर ना

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यह विचित्र है परंतु विस्तृत है। आप उसी नदी में दुबारा नहीं उतर सकते जिसमे कभी डुबकी लगाया करते थे। जिसकी कल्लोल करती धार में गोते लगाया करते थे वह एक समय था जब तुम्हारा यौवन नभ पर था। और तुम्हारा बल पर्वत सा अडिग और अथाह था। परंतु समय के साथ सब परिवर्तित हो जाता है। यह भी एक कटु सत्य है। चाहे वह यौवन ही या स्वर्ण मुद्रा। क्योंकि आपको जिस दिन यह पता चलता है। की इसका परिणाम यह आएगा। तब तक आप एक डुबकी लगा चुके होते है। और आगे उपाय खोजते है। की अब इस