सबक

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  सुबह की गुनगुनी धुप अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुकी थी। सुर्य की सुनहरी किरणें पत्तों के बीच से झांकती हुई सीधी आँखों में पड़ रही थी। मौसम सुहाना बना हुआ था। फिर भी धुप की चादर लपेटे रहने के बाद उब का एहसास हुआ और करमा ने धुप की चादर उतार फेंकी और चला गया चुल्हा के पास। हालांकि चुल्हे के चारो ओर कुछ इंच तक बला की गर्मी थी और उस गर्मी को झेलना उसकी मजबूरी थी।करमा ने अपनी माँ से कहा ’’ जल्दी चाय मिले तो चारागाह तक जाउं। ’’ उसकी माँ सोच की सागर से बाहर