अंतर्मन

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मुझसे कही अच्छी जिंदगी तो इन मक्का बेचने वालो की है। कम से कम इन्हें इज्जत, प्यार तो अपने घर मिलता है। दिनभर कड़ी धूप में यहां मक्का भुनते रहते हैं, पर घर जाकर जो दुलार इन्हें मिलता होगा, उससे सारी थकान यु खत्म हो जाती होगी। अपना क्या है वहीं घर आकर डांट खानी है, ट्यूशन से लेट क्यों हो गई, पढ़ाई में इतनी कमजोर क्यो हो, कुछ घर का काम भी कर लो। समय में जिंदगी गुजारनी है। अरे-अरे डार्लिंग, कहां जा रहे हो। बाजार में लड़कियां ताड़ने का समय हो गया होगा तुम्हारा, वहां क्यु समय खपाना,