प्रेम के रंग

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  तुफान थम चूका था और बरसात के बाद आकाश साफ हो चुका था। मौसम सुहाना हो गया था। पत्तों पर जमी जल की बुंदें, नीचले पत्तों पर गिर कर टप-टप की आवाज पैदा कर रही थी।बरसात के कारण पेड़ के नीचे जमा लोग अपने-अपने रास्ते हो चले थे। पेड़ के नीचे अब भी मौजूद थे दो लोग, केशव और कजरी।केशव सिर पर जमा हो चुकी बुदों को झटक रहा था और कजरी सिर पे रखा भींगा आंचल हाथ में लेकर निचोड़ रही थी। केशव भी चुपचाप और कजरी भी बेआवाज, मगर दोनों एक दुसरे से आँखों ही आँखों में