स्नेह की छाया

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दीना स्कूल से घर आया। देखा घर में नौकर को छोड़कर और कोई नहीं था। भूख से पेट जल रहा था। उसकी मां थी तो शाम को सदा दरवाजे पर उसकी प्रतीक्षा करती मिलती थी। प्यार से गोद में उठाकर मुँह-हाथ धोकर स्वयं खाना खिलाती। चाचा-चाची सभी प्यार की वर्षा करते रहते। चाचा जी घर में घुसते ही पूछते-"दीना कहाँ है ?" लेकिन अब न कोई पूछता है, न दरवाजे पर खड़ा कोई इंतजार ही करता है। भूखे दीना का मन रो पड़ा। किताबें रखकर वह रसोईघर में घुसा तो बर्तन खाली पड़े थे-खाने के नाम पर वहां कुछ नहीं