इसी को प्यार कहते हैं ?

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  दिल में कसक उठते ही यादोें की एक किताब खुल जाती और किताब का एक-एक पन्ना मानस पटल पर पारदर्शी हो जाता और उस पन्ना पर लिखा एक-एक वाक्य, एक-एक शब्द जीवंत होकर खलबली मचा देते जैसे कि सदियों से मृत ज्वालामूखी का लावा बरस का कहर का सैलाव में परिणत हो जाता है।खट्टी यादें तो डकार के रूप में बाहर निकल जाती है, कड़वी यादों से भी कुछ खासा खतरा नहीं होता है। उस बात को तो दिमाग में उमड़ते-घुमड़ते ही इतना समय लग जाता है कि उसकी शक्ति क्षीण होने लगती है और दिल तक आते-आते मृतप्राय