गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 38

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भाग 37:जीवन सूत्र 42-43 42 मुख्य कार्य में भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है: - विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः। रसवर्जं रसोऽप्यस्य परं दृष्ट्वा निवर्तते।।2/59।। इसका अर्थ है,इन्द्रियों को विषयों से दूर रखने वाले मनुष्य के विषय तो निवृत्त हो जाते हैं,पर उनमें आसक्ति निवृत्त नहीं होती है।इस स्थितप्रज्ञ मनुष्य की तो आसक्ति भी परमात्मतत्त्व का अनुभव होने से निवृत्त हो जाती है। पिछले श्लोक में श्रीकृष्ण ने विषयों की आसक्ति को त्यागने की बात की है। इस श्लोक में इसे और स्पष्ट करते हुए वे कहते हैं कि इंद्रियों को बलपूर्वक विषय से हटाने के बाद भी मनुष्य