दस्तक दिल पर - भाग 8

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"दस्तक दिल पर" किश्त-8 ऑफ़िस में उस दिन काम ज़्यादा रहा, मुझे फुरसत ही नहीं मिल रही थी.... मैं उसे बहुत से मैसेज भेजना चाहता था, माफ़ी माँगना चाहता था। कहीं न कहीं उसके सम्मानित नारीत्व को मैंने ठेस पहुंचाई थी। क्या किसी औरत का पुरुष को चाहना इतना ही है कि जब भी वो अकेले में आधी रात को हमारे साथ हो और हम पर पूर्ण विश्वास कर, हमें घर बुला ले तो इसका मतलब यही है कि हम उसे पाना चाहें या यह समझ लें कि वो समर्पण कर रही है....? शायद उसके विश्वास को तोड़ दिया था