चिलक

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अस्पताल में अरूण साहब मुझे वार्ड के बाहर ही मिल गए। ’’तुम्हें किसने बताया ?’’ अरूण साहब इधर-उधर देखने लगे, ’’किसी ने तुम्हें देखा तो नहीं है ?’’ ’’आप बहुत डरते हैं,’’ मैंने अरूण साहब के संग चुहल की, ’’कोई देख भी लेगा तो कौन जानेगा, हम दोनों एक-दूसरे से प्रेम करते हैं ?’’ ’’नहीं,’’ उनके स्वर में रूखाई चली आई, ’’तुम्हें यहाँ नहीं दिखाई देना चाहिए। तुम जाओ, मैं ही उधर लखनऊ तुम्हें मिलने आऊँगा......’’ ’’अभी कितनी साँसें बाकी हैं ?’’ हँसकर मैंने वार्ड की तरफ इशारा किया। ’’कैसी बात करती हो ?’’ वे भी हँस पड़े, ’’जाओं अब......’’