भूख की ताब

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’’कुछ खाने को बना लाऊँ क्या?’’ अपनी शादी के बाद साधना मुझे पहली बार मिल रही थी। ’’क्यों नहीं?’’ मैं उस पर रीझ ली, ’’बल्कि मैं तो कहती हूँ तुम रोज़ एकाध घंटे के लिए हमारे यहाँ आकर खाना बना जाया करो।’’ अभी चार महीने पहले तक साधना मेरे घर की रसोई का काम करती रही थी। ’’यही तो मुश्किल है,’’ अपनी लार सँभालने में उसे प्रयास करना पड़ा, ’’मेरी सास कहती है घर में प्रैस का ही इतना तमाम काम है, बाहर जाने की तुम्हें फ़ुरसत कहाँ,?’’ उसके मायके वालों की तरह उसके ससुराल वाले भी कपड़ों की इस्तिरी