चुड़ैल की दुखभरी कहानी, आ गया मेरे आँखों में भी पानी

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रमेसर बाबू अपने कार्यालय में अपनी सीट पर बैठकर फाइलों को उलट-पलट रहे थे। उनका कार्यालय ग्रामीण क्षेत्र में था जहाँ जाने के लिए कच्ची सड़कों से होकर जाना पड़ता था। अरे इतना ही नहीं, कार्यालय के आस-पास में जंगली पौधों की अधिकता थी, कहीं कहीं तो ये जंगली पौधे इतने सघन थे कि एक घने जंगल के रूप में दिखते थे। कार्यालय के मुख्य दरवाजे को छोड़ दें तो बाकी हिस्से पूरी तरह से घाँस-फूँस आदि से ढंके लगते थे। कार्यालय के कमरों की खिड़कियों आदि पर लंबे-लंबे घास-फूँसों का साम्राज्य था। दिन में भी कार्यालय में एक हल्का