में और मेरे अहसास - 81

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सोच रहा हूँ किस और जिन्दगी ले जा रही हैक्या चैन और सुकून की साँस भी पा रहीं हैं चले जाने वाले मुड़कर कभी भी नहीं लौटातेउदासी रात और दिनों की नींदे खा रहीं हैं तन्हाइयों में इस लिए नहीं रहना चाहते किसखी साथ अपने यादों के बवंडर ला रहीं हैं सब को खबर हो गई है वीरानियों की तोदिल बहलाने हवाएं  मधुर नगमें गा रहीं हैं आजकल तबियत खास्ता रहने लगी हैमहफ़िलों में रातभर जागने की ना रहीं हैं१६-६-२०२३ खुली फिज़ाओ में क्या हम मिलेगे कभी ?अपने प्यार के क्या गुल खिलेंगे कभी ? दिल की कश्ती डूब चुकी