हेलो, मैं रावण बोल रहा हूं।

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नमस्ते भारत, और भारत के तथाकथित सामाजिक विद्वत जनों। आज न जानें क्यों मेरे मन बड़े प्रश्न और उनके उत्तर खोजने की लालसा से और उससे उत्पन्न दुख ने मुझे आप सबसे बात करने पर विवश कर दिया। मेरे सभी प्रश्नों में से एक प्रश्न यह है की मैं कितना गलत हूं ? क्युकी जब मैं धरतीवासी लोगो को देखता हूं। की किस प्रकार से वह मेरे पुतलो को जलाकर उल्लासित और हर्षित होते हैं। किस प्रकार से मेरे परिहास होने पर बहुत प्रसन्न होते हैं। मैं सोचता हूं और विकल होता हूं की क्या मैं सच में इतना बुरा