में और मेरे अहसास - 85

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रेत का महल बसाया था l खूबसूरत आशियाना था ll   साथ साथ जीने के लिए l अरमानो से सजाया था ll   देखने वाले भी रश्क करे l बड़े चाव से सँवारा था ll   मुहब्बत की निशानी में l संगेमरमर लगाया था ll   फरिश्तों ने आकर सखी l पाकीज़गी से बनाया था ll  १६-८-२०२३      बचपन के दिन सुहाने थे l वो सच्चे और रूहाने थे ll     चाहत चांद को पाने की l हसी परियों के ज़माने थे ll   बारिस में काग़ज़ की नाव l खिलोने को गले लगाते थे ll   हसीं