प्रफुल्ल कथा - 4

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तह पर तह लगाकर जम चुकी हैं मेरी ज़िन्दगी की यादें ......यादें कुछ खट्टी , कुछ मीठीं | एक दिन ख़याल आया कि क्यों ना इन यादों से भरी संदूक की धूल हटाकर देखी जाय जिसमें बचपन की शरारतें हैं , युवावस्था के सपने हैं , गृहस्थ जीवन का ताना बाना है , नौकरी की धूप - छाँव और सम्बन्धों का बनता - बिगड़ता गणित , इतना ही नहीं कडवाहटें - टीस - चुभन भी है , ढेर सारे लोगों का मिलना- बिछड़ना है .. हाँ , वही सब कुछ जो आपकी ज़िंदगी में भी होता रहता है ...तो इन