Prafull Katha book and story is written by Prafulla Kumar Tripathi in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Prafull Katha is also popular in Biography in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
प्रफुल्ल कथा - Novels
by Prafulla Kumar Tripathi
in
Hindi Biography
मेरा जन्म गोरखपुर से लगभग 20 कि.मी.दूर खजनी के एक गाँव विश्वनाथपुर में को हुआ था | यह गाँव सरयूपारीण ब्राम्हणों के सुप्रसिध्ध गाँव सराय तिवारी का ही एक हिस्सा था | मेरे गाँव से लगभग एक कि.मी.की दूरी पर आमी नदी बहा करती थी जो अब लुप्तप्राय हो चली है | उस आमी नदी और उसके ठीक किनारे स्थित कपूरी (मलदहिया) आम के बहुत बड़े बागीचे { जिसे हमलोग बडकी बगिया कहा करते थे } को मैं अब भी भूल नहीं पा रहा हूँ क्योंकि उससे जुड़ी ढेर सारी स्मृतियाँ हैं | आप कल्पना कीजिए कि बचपन में आप किसी ऐसे ही बागीचे में पहुंचे हों ,उन्मुक्त रूप से नदी में नहा रहे हों , डाल पर चढ़ कर आम तोड़ चुके हों और अब आम खाए जा रहे हों ... सच एकदम सच और विश्वास मानिए ऐसा भी हुआ है कि तैयारी के साथ तो बागीचा हम पहुंचे ना हों और नदी देखकर नहाने के लिए मन मचल उठा हो तो... तो बस कपड़ा फेंका और कूद गए नदी में .. और जब तक आम की दावत समाप्त हुई कपडे भी सूख जाया करते थे |
मेरा जन्म गोरखपुर से लगभग 20 कि.मी.दूर खजनी के एक गाँव विश्वनाथपुर में को हुआ था | यह गाँव सरयूपारीण ब्राम्हणों के सुप्रसिध्ध गाँव सराय तिवारी का ही एक हिस्सा था | मेरे गाँव से लगभग एक कि.मी.की दूरी ...Read Moreआमी नदी बहा करती थी जो अब लुप्तप्राय हो चली है | उस आमी नदी और उसके ठीक किनारे स्थित कपूरी (मलदहिया) आम के बहुत बड़े बागीचे { जिसे हमलोग बडकी बगिया कहा करते थे } को मैं अब भी भूल नहीं पा रहा हूँ क्योंकि उससे जुड़ी ढेर सारी स्मृतियाँ हैं | आप कल्पना कीजिए कि बचपन में आप
मैं एक अदना लेखक , जब कभी कुछ लिखता हूँ तो मेरे मन में इस बात की धुकधुकी लगातार बनी ही रहती है कि मेरा लिखा पाठकों के मन को छू सकेगा या नहीं ? यदि छू जाता है ...Read Moreउसका ‘फीडबैक’ मिल जाता है और यदि नकार दिया जाता है तो उसका ‘फीडबैक’ भी निश्चित ही मिलता है | इस ‘फीडबैक’ का मुझ पर ,मेरे लेखन पर भी असर पड़ता है और मैं पाठकों के मनोनुकूल अगला आलेख लिखने की फिर- फिर कोशिश में जुट जाता हूँ ..और आप तो जानते ही हैं कि “कोशिश करने वालों की हार
जीवन समय - समय पर रंग बदलता रहता है और आप उसी रंग में रंगते चले जाते हैं | मैं अब कैशौर्य से युवा हो रहा था | वर्ष 1969 में अब इंटरमीडिएट का छात्र था | हाई स्कूल ...Read Moreशैक्षणिक संस्थान से किया तो अब मैं आर्य समाज संगठन के एक विद्यालय में पढने लगा था | दोनों एक दूसरे के सर्वथा विपरीत | वहां मसीही प्रार्थना हुआ करती थी और यहाँ वैदिक | गोरखपुर उन दिनों जातिवाद के भरपूर प्रभाव में था और शैक्षणिक संस्थान भी इससे अछूते नहीं थे | तुलसीदास इंटर कालेज ब्राम्हण समुदाय का था
तह पर तह लगाकर जम चुकी हैं मेरी ज़िन्दगी की यादें ......यादें कुछ खट्टी , कुछ मीठीं | एक दिन ख़याल आया कि क्यों ना इन यादों से भरी संदूक की धूल हटाकर देखी जाय जिसमें बचपन की शरारतें ...Read More, युवावस्था के सपने हैं , गृहस्थ जीवन का ताना बाना है , नौकरी की धूप - छाँव और सम्बन्धों का बनता - बिगड़ता गणित , इतना ही नहीं कडवाहटें - टीस - चुभन भी है , ढेर सारे लोगों का मिलना- बिछड़ना है .. हाँ , वही सब कुछ जो आपकी ज़िंदगी में भी होता रहता है ...तो इन
किसी ने क्या खूब लिखा है –‘जीवन में यह अमर कहानी , अक्षर अक्षर गढ़ लेना , शौर्य कभी सो जाए तो सैनिक का जीवन पढ़ लेना ! ‘ शायद नियति मेरे साथ भी यही किस्सा रचती जा रही ...Read More| आठवीं या नौवीं कक्षा से अपने पिताजी के सानिध्य में साहित्य और लेखन से मेरा जुड़ाव हो चला था | उनके रफ़ लेखों को मैं अपनी अच्छी हस्तलिपि देता था और उसे पत्र- पत्रिकाओं में भेजने ,छपने के बाद उसका संग्रह करने का काम बखूबी करने लगा था | जब पारिश्रमिक आता तो मुझे भी पिताजी इनाम देते ..और