प्रफुल्ल कथा - 6

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किसी ने क्या खूब कहा है ; “ आत्मकथा लिखते समय लेखक को अपनी आलोचनाओं की परवाह नहीं करनी चाहिए चाहे क्यों ना ज़माना बैरी हो जाय !” सचमुच आत्म की कथा लिखते समय लेखक स्वयम इतना सतर्क और पारदर्शी होता है कि मानो वह आइने के सामने खड़े होकर अपने एक -एक वस्त्र उतार रहा होता है और निर्वस्त्र होकर भी संतुष्ट नहीं हो पाता है | वह स्वयं सतर्क रहता है कि उसकी लेखनी पर कोई उंगली ना उठाये ! कहा जाता है कि महिलाएं आँखें देखकर किसी पुरुष का मन पढ़ने में सिद्धहस्त होती हैं | एक