श्री गरुड़जी

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प्रजापति दक्षकी तेरह कन्याएँ महर्षि कश्यपसे ब्याही गयी थीं, इनमेंसे कद्रू और विनता पुत्र-कामनासे बड़े अनुरागपूर्वक पतिकी सेवा करने लगीं। सेवासे सन्तुष्ट महर्षि कश्यपने जब दोनोंको मनभावता वर माँगनेको कहा तो कद्रूने समान शक्तिवाले एक हजार नागोंको पुत्ररूपमें पानेका वर माँगा। विनताने कद्रूके पुत्रों से सभी गुणोंमें श्रेष्ठ केवल दो पुत्रों का वर माँगा। ऋषिने एवमस्तु कहा। फलस्वरूप कालान्तरमें कद्रूने एक हजार और विनताने दो अण्डे दिये। पाँच सौ वर्षतक अण्डोंके सेवन करनेके अनन्तर कद्रूके हजार नागपुत्र तो अण्डोंसे बाहर आ गये, परंतु विनताके अण्डे ज्यों-के-त्यों रहे। अधीर होकर विनताने एक अण्डा स्वयं फोड़ डाला तो देखा कि पुत्रके शरीरका