उजाले की ओर –संस्मरण

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================== स्नेहिल सुभोर मित्रो पड़ौसी के घर से वैसे तो हर दिन शोर आता ही था, नहीं, नहीं बच्चों की बात नहीं कर रही हूँ | उन बड़ों की बात कर रही हूँ जो बड़े तो हैं ही, अपने माथे पर समझदारी का बड़ा स लेबल चिपकाए घूमते रहते हैं | "भैया, ते तमगा क्यों?" "क्यों? तुमै क्या परेशानी हैगी जी ? माथा हमारा, तमगा हमारा अर चिपकने की गोंद भी किसी से मांग कै न लाए हैंगे जी फिर ----??" "नहीं,नहीं ---हमने तो यूँ ही पूछ लिया था --इतना बुरा न मानो भाई |" अपने कानों को पकड़कर उन्हें