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UJALE KI OR by Pranava Bharti | Read Hindi Best Novels and Download PDF

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उजाले की ओर by Pranava Bharti in Hindi
Novels

उजाले की ओर - Novels

by Pranava Bharti Matrubharti Verified in Hindi Motivational Stories

(300)
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  • 53

मित्रों ! प्रणाम जीवन की गति बहुत अदभुत है | कोई नहीं जानता कब? कहाँ?क्यों? हमारा जीवन अचानक ही बदल जाता है ,कुछ खो जाता है ,कुछ तिरोहित हो जाता है |हम एक आशा की प्रतीक्षा में खड़े ...Read Moreजाते हैं और हाथ मलते रह जाते हैं | ईश्वर प्रत्येक मन में विराजता है ,उसने सबको एक सी ही संवेदनाएँ प्रदान की हैं |प्रत्येक प्राणी के मन में प्रेम,ईर्ष्या,अहंकार करुणा जैसी संवेदनाओं को प्रतिष्ठित किया है |वह चाहे कोई भी जीव-जन्तु हो अथवा मनुष्य ईश्वर ने तो सबको एक समान ही निर्मित किया है | उसने

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उजाले की ओर - Novels

उजाले की ओर ---संस्मरण - मैं कहाँ कवि हूँ ?(SANSMARAN)
मैं कहाँ कवि हूँ ? --------------------- उम्र के ऊपर-नीचे गुज़रते मोड़ों पर कब ? किसने ?रोक लगा दी है साहब ! वो तो बस जैसे समय आता है ,गुज़र ही तो जाती ...Read More न कोई पता,न ठिकाना --बस जो ,जैसा आए उसमें से गुज़रते रहना अक़्सर सोचा हुआ होता कहाँ है इंसान का ,बस उसे उस रास्ते से गुज़र जाना ही होता है जो उसके सामने आता है विवाह के चौदह वर्ष बाद दुबारा पढ़ने का भूत सवार हुआ दो छोटे बच्चों व घर-गृहस्थी के साथ पढ़ने का एक अलग ही अनुभव !
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उजाले की ओर
1-उजाले की ओर ----------------- मित्रों ! प्रणाम जीवन की गति बहुत अदभुत है | कोई नहीं जानता कब? कहाँ?क्यों? हमारा जीवन अचानक ही बदल जाता है ,कुछ खो जाता है ,कुछ तिरोहित हो जाता है |हम ...Read Moreआशा की प्रतीक्षा में खड़े रह जाते हैं और हाथ मलते रह जाते हैं | ईश्वर प्रत्येक मन में विराजता है ,उसने सबको एक सी ही संवेदनाएँ प्रदान की हैं |प्रत्येक प्राणी के मन में प्रेम,ईर्ष्या,अहंकार करुणा जैसी संवेदनाओं को प्रतिष्ठित किया है |वह चाहे कोई भी जीव-जन्तु हो अथवा मनुष्य ईश्वर ने तो सबको एक समान ही निर्मित किया है | उसने
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उजाले की ओर - 2
उजाले की ओर-2 ----------------- बात शुरू करती हूँ इस अजीबोग़रीब समय से जिसे न किसी ने आज तक देखा ,न सुना ,न जाना ,न पहचाना --बस ,एक साथ ही जैसे प्रकृति का ...Read Moreपूरे विश्व पर आ पड़ा | गाज गिर गई जैसे --- आज प्रकृति ने सोचने को विवश कर दिया कि भाई ,मत इतराओ ,मत एक-दूसरे पर लांछन लगाओ | मैं पूरी सृष्टि की माँ हूँ ,यदि सम्मान नहीं करोगे तो कभी न कभी ,किसी न किसी रूप में मैं तुम्हें सिखाऊंगी तो हूँ ही कि सम्मान किसे कहते हैं ? और यह कितना ज़रूरी है |
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उजाले की ओर - 3
उजाले की ओर -- 3 ------------------ स्नेही एवं प्रिय मित्रों सभीको मेरा नमन यह संसार एक बहती नदिया है जिसमें सभीको हिचकोले खाने हैं ,कोई तैर ...Read Moreहै तो कोई लहरों से टकराता रहता है ,कोई डूब भी जाता है |किन्तु डूबने के भय से हम तैरना तो नहीं छोड़ सकते ! हमें अपने –अपने कर्मों के अनुसार कार्यरत रहना ही होता है,जीवन के समुद्र में तैरना ही होता है | जीवन की इस यात्रा में न जाने कितने ऊबड़-खाबड़ मार्ग आते हैं ,सदा सीधा ही मार्ग हो ऐसा जीवन में कहाँ होता है? जब हम
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उजाले की ओर - 4
उजाले की ओर--4 ------------------ आ. स्नेही व प्रिय मित्रों नमस्कार हम मनुष्य हैं ,एक समाज में रहने वाले वे चिन्तनशील प्राणी जिनको ईश्वर ने ...Read Moreजाने कितने-कितने शुभाशीषों से नवाज़ा है ! इस विशाल विश्व में न जाने कितने समाज हैं जिनकी अपनी-अपनी परंपराएँ,रीति-रिवाज़,बोलियाँ,वे श-भूषा हैं किन्तु फिर भी एक चीज़ ऎसी है जिससे सभी एक-दूसरे से जुड़े हैं और वह है संवेदना ! कभी-कभी हम न एक-दूसरे से परिचित होते हैं ,न ही हमने एक–दूसरे को कभी देखा होता है किन्तु ऐसा लगता है कि हम एक-दूसरे से वर्षों से परिचित हैं|यही संवेदनशीलता हमें मनुष्य
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उजाले की ओर - 5
उजाले की ओर-5 ---------------- आ.व स्नेही मित्रो नमस्कार बहुत सी बार लोगों को लगता है कि अधिक बहस न करने वाला तथा बात को चुप्पी में दबाकर ...Read Moreवाला मनुष्य सरल,सहज नहीं मूर्ख होता है | मित्रो !यह बात सही है क्या?मुझे लगता है कि वह सरल,सहज होता है किन्तु संवेदनशील होने के कारण किसीको ग़लत बातों से नहीं नवाज़ता | वह सब समझते हुए भी चुप्पी को ही ढाल बना लेता है | वह सोचता है कि यदि मूर्ख बने रहना शांति बनाए रखने में सहायक होता है तो मूर्ख बने रहने में ही सबका लाभ
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उजाले की ओर - 6
उजाले की ओर--6 ----------------- प्रिय एवं स्नेही मित्रों सस्नेह नमस्कार मनुष्य के स्वभाव में अन्य अनेक शक्तियों के साथ ही एक भरोसा करने की शक्ति भी निहित है |वह कई बार अपने से जुड़े ...Read Moreपर बहुत अधिक भरोसा कर बैठता है ,विश्वास कर बैठता है किन्तु जब कभी उसके विश्वास को ठेस लगती है तब वह बिखरने की स्थिति में हो जाता है और इसीलिए जब कभी उसे काँटा चुभता है और वह बेदम होने लगता है तब दूसरी बार वह भरोसा करने से भयभीत होने लगता है ,हिचकिचाने लगता है |जब मनुष्य किसी व्यक्ति अथवा वस्तु को
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उजाले की ओर - 7
उजाले की ओर--7 --------------- आ. स्नेही व प्रिय मित्रों नमस्कार इस छोटी सी ज़िंदगी में न जाने कितने किरदार ऐसे मिल जाते ...Read Moreजो हमारी ज़िंदगी का भाग बन जाते हैं| कुछ ऐसे लोग होते हैं जो अपने गुणों के कारण हमारे मनो-मस्तिष्क पर एक सकारात्मक गहरी छाप छोड़ जाते हैं तो कुछ ऐसे भी होते हैं जो अपने ग़लत व्यवहार के कारण एक नकारात्मक छाप छोड़कर जाते हैं और हमारे जीवन में सदा के लिए एक नकारात्मकता को जन्म दे जाते हैं | यह बिलकुल सत्य है कि मनुष्य के ऊपर अच्छी चीजों
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उजाले की ओर - 8
उजाले की ओर--8 --------------------- आ. स्नेही एवं प्रिय मित्रों नमन ज़िंदगी की राहों में अनगिनत फूल खिलते हैं ,साथ ही काँटे भी |हम ...Read Moreबहुधा इस गफलत में फँस जाते हैं | हम फूल तो चुन लेते हैं किन्तु काँटों की चुभन को सह पाना हमारे लिए कठिन हो जाता है | जिस प्रकार से रात-दिन,अँधियारा-उजियारा है उसी प्रकार से यह प्रसन्नता व पीड़ा भी है |इससे कोई भी नहीं बच सका है |किसी भी मनुष्य का जीवन एक सपाट मार्ग पर नहीं चल सकता ,उसे सपाट मार्ग के साथ ऊबड़-खाबड़ मार्ग पर भी चलना ही होता है | प्रश्न यह उठता
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उजाले की ओर - 9
उजाले की ओर--9 ------------------ स्नेही मित्रो भाषण देना जितना सरल है उसका निर्वाह करना उतना ही कठिन ! ज़िन्दगी हिचकोलों में डूबती-उतरती हुई हमें अपनी ही सोच पर चिंतन करने के ...Read Moreबाध्य करती है | वास्तव में ज़िंदगी है क्या? चार दिन की चाँदनी ? सत्य है न ?लेकिन इसी चाँदनी को पीना पड़ता है,इसीमें नहाना पड़ता है ,इसीके साथ जीना पड़ता है |फिर चाँदनी सूर्य के तेज़ में परिवर्तित हो जाती है इसमें भी मनुष्य को रहना पड़ता है,जीना पड़ता है |तात्पर्य है कि कोई भी परिस्थिति क्यों न हो ,दिन हो अथवा रात हो ,मनुष्य
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उजाले की ओर - 10
उजाले की ओर --10 ------------------------ आ.एवं स्नेही मित्रो नमस्कार एक नवीन दिवस का आरंभ ,एक नवीन चिंतन का उदय हमें परमपिता को प्रत्येक पल धन्यवाद अर्पित करने का ...Read Moreप्रदान करता है |हम करते भी हैं ,कितना कुछ प्रदान किया है उसने जिसने ज़िन्दगी जैसी अनमोल यात्रा का अनुभव कराया है |लेकिन हम कहीं न कहीं चूक जाते हैं ,हम अपने वर्तमान में रहकर भी वर्तमान में नहीं रह पाते |हम वर्तमान में रहकर भी न जाने कहाँ कहाँ भटकते रहते हैं |यह मस्तिष्क का स्वभाव है ,वह कभी शांत तथा स्थिर नहीं रह पाता | जीवन में
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उजाले की ओर - 11
उजाले की ओर--11 --------------------------- स्नेही मित्रो आप सबको नमन जीवन की आपाधापी कभी कभी हमें इतना निराश कर देती ...Read Moreकि हम उसमें उलझकर रह जाते हैं हम ईश्वर के द्वारा प्रदत्त सुंदर शुभाशीषों को भी अनुभव नहीं कर पाते त्रुटियाँ मनुष्य से होना स्वाभाविक है जिनके लिए ईश्वर हमें अवसर भी प्रदान करता है कि हम उनमें सुधार कर सकें किन्तु हम उन्हें सुधारने की अपेक्षा उन्हें और भी अधिक जटिल बना देते हैं एवं अनेकों उतार-चढावों में भटकते रह जाते हैं जीवन के ये उतार-चढ़ाव हमें किसी न किसी पर दोष
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उजाले की ओर - 12
उजाले की ओर --12 ------------------------ स्नेही मित्रो नमस्कार प्रभातकालीन बेला,पक्षियों का चहचहाना ,पुष्पों का खिलखिलाना फिर भी मानव मन का उदास हो जाना बड़ी कष्टदायक स्थिति ...Read Moreकर देता है | हम यह भूल ही जाते हैं कि प्रकृति हमारे लिए है और हम प्रकृति के लिए |क्या प्रभु प्रतिदिन विभिन्न उपहार लेकर हमें प्रसन्न करने नहीं आते ? कभी सूर्य की उर्जा के रूप में तो कभी प्राणदायी वायु के रूप में ,कभी वर्षा की गुनगुनाती तरन्नुम लेकर तो कभी चंदा,तारों की लुभावनी तस्वीर लेकर| प्रकृति के तत्वों से बना यह शरीर जब अपनी मानसिक
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उजाले की ओर - 13
उजाले की ओर--12 -------------------- प्रिय एवं स्नेही मित्रो आप सबको नमन आज एक कहानी याद आ रही है | सोचा ,आपसे साँझा की जाए |एक ...Read Moreसमृद्ध मनुष्य था जिसने बहुत श्रम से यत्नपूर्वक अपने आपको बहुत बड़े उद्योगपति के रूप में स्थापित किया था |उसका नाम शहर के सर्वश्रेष्ठ अमीरों में गिना जाने लगा |अपने श्रम व बुद्धि से एकत्रित की जाने वाली संपत्ति को वह बहुत सोच समझकर व्यय करता |उसकी इच्छा होती कि वह उन लोगों की सहायता कर सके जो वास्तव में ज़रूरतमंद हैं | लेकिन यह सदा होता आया है कि पिता
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उजाले की ओर - 14
उजाले की ओर --13 --------------------- आ.स्नेही एवं प्रिय मित्रो मन न जाने कहाँ कहाँ पंछी की भांति उड़कर पुन: मन की भीतरी न जाने कौनसी शाख़ ...Read Moreआ बैठता है |शाख़ का ही पता नहीं चलता कौनसी है जिस पर मन जा बैठता है कि उसे पकड़कर तुरत लाया जा सके |मुझे लगता है हमारे मन के वृक्ष में न जाने कितनी अनगिनत शाखाएं हैं जिन पर मन का पंछी उड़-उड़कर जा बैठता है ,उसे पकड़ने का प्रयास करो तो हाथ ही नहीं आता ,वह तो कहीं और जा बिराजता है |खैर छोड़ें ,हम जानते भी तो
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उजाले की ओर - 15
उजाले की ओर --13 --------------------------- आ.स्नेही एवं प्रिय मित्रो सादर,सस्नेह नमन कई बार मन सोचता है कि हम आखिर हैं क्या?जीवन में उगे हुए ऐसे फूल जो शीघ्र ही मुरझा ...Read Moreहैं |किसी छोटी सी विपत्ति के आ जाने पर हम कुम्हला जाते हैं ,टूटने लगते हैं ,बिखर जाते हैं |वास्तव में यदि दृष्टि उठाकर अपने चारों ओर देखें तो पाएंगे कि हमारे चारों ओर लोग कितनी परेशानियों से घिरे हैं|जब हम उनकी परेशानियों को देखते हैं तब हम ऊपर वाले के प्रति कृतज्ञ होते हैं ,उसका धन्यवाद अर्पण करते हैं कि उसने तो हमें कितना कुछ दिया है
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उजाले की ओर --16
----------------------- आ,स्नेही व प्रिय मित्रो ताने-बानों से घिरी ज़िन्दगी में चंद क्षण सुकून के मिल जाएं तो बहुत बड़ी बात होती है वरना आजकल की ज़िंदगी न जाने कितने-कितने ...Read Moreसे घिरी रहती है एक परेशानी का समाधान तो पूरी तरह प्राप्त हुआ नहीं कि दूसरी मुह बाए खड़ी हो जाती है कुछ तो प्राकृतिक आपदाएं ही मनुष्य के जीवन में उसे जीने नहीं देतीं और कुछ वह स्वयं ही आपदाओं को गले लगाता रहता है आज मनुष्य ने पेड़ काट-काटकर अपने लिए एक बड़ी समस्या खड़ी कर ली है इसीलिए शनै:शनै: पूरे संसार का
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उजाले की ओर - 17
------------------------ आ. स्नेही एवं प्रिय मित्रों नमस्कार हम उलझे रहे अच्छे-बुरे में तथा कम-अधिक और भी न जाने कितनी –कितनी आज की समसामयिक समस्याओं को ओढ़े घूमते रहे | किन्तु इन ...Read Moreऊपर आज जब अचानक ही मुझे अपनी एक मित्र का लेख प्राप्त हुआ मैं चौंक गई |हमने आज तक जिस विषय पर सोचा तक न था ,उन्होंने उस विषय पर शोध करके लेख के माध्यम से जहाँ तक हो सके इस गंभीर समस्या को उठाने का प्रयत्न किया था | उनसे बात करने के बाद मुझे लगा था कि महिलाओं
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उजाले की ओर - 18
उजाले की ओर ------------------- स्नेही मित्रों नई सुबह का सुखद नमन इस गत वर्ष को 'बाय' करते हुए मन न जाने कितनी-कितनी बातों में उलझा हुआ है ...Read Moreविश्व में एक अजीब सा भय फैलाने वाले इस बीते वर्ष ने बहुत सी बातें सोचने के लिए मज़बूर कर दिया है ज़रुरी भी है कि हम अपनी कार्य-प्रणाली पर ध्यान दें और यदि कुछ नहीं कर सकते तो कम से कम अपने लिए व अपनों से जुड़ों के लिए एक सुरक्षा-कवच अवश्य बनाने की चेष्टा करें नव-वर्ष बाध्य करता है सोचने के लिए कि गत
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उजाले की ओर - 19
------------------------ आ,स्नेही एवं प्रिय मित्रो सादर ,स्नेह नमस्कार लीजिए आ गया एक और नया दिन ...पता ही नहीं चलता कब सात दिन उडनछू ...Read Moreजाते हैं और ऐसे ही माह,वर्ष और फिर पूरी उम्र ! जैसे पल भर में पवन न जाने कहाँ से कहाँ पहुंच जाती है हम पलक झपकते ही रह जाते हैं और समय ये गया-–--वो गया पीछे मुड़कर एक बार देखता भी नहीं है यह समय!कभी कभी तो लगता है ‘कितना निष्ठुर है न समय !’हम उसके पीछे दौड़ते हैं,पुकारते हैं किन्तु उसे हाथ नहीं आना है सो वह
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उजाले की ओर - 20
----------------------- आ. एवं स्नेही मित्रो नमस्कार हमारी दुनिया में अनन्य प्रकार के जीव हैं जिनका आकार-प्रकार भिन्न है,रहन-सहन भिन्न है किसी भी प्राणी का बिलकुल एक जैसा व्यवहार व ...Read Moreनहीं है कुछ ऎसी मान्यता भी है कि दुनिया में कुछ लोगों की शक्लोसूरत एक सी होती है ,कभी-कभी इसके प्रमाण देखने में भी आते हैं किन्तु उनमें भी कहीं न कहीं,कोई न कोई थोड़ी-बहुत असमानता तो अवश्य होती ही है चाहे वह सूरत में हो अथवा व्यवहार में ! मनुष्य एक सचेत प्राणी है,उसमें चिंतनशीलता का गुण प्रमुख है ,वह अपने कार्यों को सोच-समझकर कर सकता
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उजाले की ओर - 21
उजाले की ओर ------------------- आ.स्नेही एवं प्रिय मित्रो नमस्कार प्रतिदिन घर के मुख्य द्वार पर खटखट होती है कोई निश्चित समय नहीं ,सुबह-सवेरे ,दोपहर अथवा शाम व ...Read Moreकभी रात को भी लगभग दस बजे तक न जाने कोई कुरियर हो,कोई मिलने आया हो अथवा कोई किसी महत्वपूर्ण कार्य से आया हो अत: उठकर तो जाना ही पड़ता है दिन में दो-चार बार तो कम से कम ऐसे लोग होते ही हैं जो मन का पूरा स्वाद कसैला कर जाते हैं वे आपके व हमारे सभी के द्वार पर पहुँच जाते हैं आजकल फ़्लैट बनने लगे
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उजाले की ओर - 22
उजाले की ओर -------------- आ. एवं स्नेही मित्रो नमस्कार आजकल गायों के बारे में बहुत संवेदनशील हो गए हैं लोग ! गाय माता है दूध देकर ...Read Moreपोषण करती है,उनको किस प्रकार बचाया जाय ? अनेकों प्रश्न ,अनेकों चर्चाएँ ,अनेकों बहस !लेकिन परिणाम ?? गाय को कोई आज ही माता का नाम नहीं दिया गया है ,गाय को माता प्रारंभ से ही पुकारा जाता रहा है और इसका कारण भी है कि दूध देकर यह हमारे शिशुओं को बड़ा करती है,गाय से जुड़ी अनेकों पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं , हम भारतीय गाय को पूज्य मानते रहे
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उजाले की ओर - 23
उजाले की ओर --------------------- आ. एवं स्नेही मित्रों ! सादर ,सस्नेह सुप्रभात जीवन की धमाचौकड़ी पूरे जीवन भर चलती रहती है|हम नाचते रहते हैं कठपुतली के समान ...Read Moreसे उधर ,उधर से इधर |जीवन में कुछ न कुछ ऊँचा-नीचा होता ही रहता है |हम कब कुछ ग़लत कर बैठते हैं हमें इसका आभास भी नहीं होता,होता तब है जब हम अपने किए हुए का परिणाम देखते हैं |स्वाभाविक है, बबूल का पेड़ बोने से हमें स्वादिष्ट आम का आनन्द तो प्राप्त हो नहीं सकता किन्तु हमें यह पता ही नहीं चलता कि हमने आखिर यह बबूल का पेड़
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उजाले की ओर - 24
उजाले की ओर ------------------- स्नेही व प्रिय मित्रो प्रणव भारती का सादर ,सस्नेह वन्दन घटना वर्षों पूर्व की है किन्तु कभी-कभी लगता है मानो आज और अभी मेरे नेत्रों के समक्ष चित्रित ...Read Moreहो |मेरे दोनों बच्चे बहुत छोटे थे ,यही कोई चार-पाँच वर्ष के |मैं उन दिनों अपनी एम.ए अंग्रेज़ी की परीक्षा में सम्मिलित होने माँ के पास गई हुई थी |एम.ए का आखिरी ‘सिमेस्टर’ था और विवाह हो जाने के कारण मेरा वह सिमेस्टर छूट गया था |किसी प्रकार विश्वविद्यालय से आज्ञा मिली और मैं अपना एम.ए पूरा करने के लिए पढ़ाई में जुट गई |
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उजाले की ओर - 25
उजाले की ओर ------------------ " समीर ! सॉरी तुम्हें तकलीफ़ दे रही हूँ ,मुझे दूध लेना है ,कोई दुकान दिखाई दे --तो " विभा ने झिझकते हुए समीर से कहा ,बेचारे एक तो ये युवा लड़के ...Read Moreढोकर ले जाते हैं ऊपर से अपने घर के काम भी वह इस तरह रुककर करने लगे तो ---ठीक तो नहीं है न ! बिटिया बड़ी नाराज़ होती है उसकी इस तरह की बातों पर लेकिन उसको कहीं कुछ बुरा नहीं लगता | हाँ,वह यह ज़रूर समझने की कोशिश करती है कि अगले को कोई ऐसा काम तो नहीं कि उसके
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उजाले की ओर - 26
उजाले की ओर ------------------- आ.,स्नेही एवं प्रिय मित्रों आप सबको प्रणव भारती का नमन जीवन अनमोल है लेकिन हमारी कितनी ही क्रियाएँ बस गोलमगोल हैं ...Read Moreहम जानते हैं कि छोटा सा जीवन है,जैसे-जैसे उम्र के दौर गुज़रते रहते हैं हमें यह संवेदना बहुत गहराई से कचोटने लगती है कि हमारा जीवन कम होता जा रहा है हमारे संगी-साथी शनै:शनै: साथ छोड़ने लगते हैं और सदा के लिए गुम हो जाते हैं ऐसे समय में हममें कुछ समय का वैराग्य उत्पन्न होने लगता है किन्तु कुछ समय पश्चात वही ढ़ाक के तीन पात ! कभी-कभी हम जान-बूझकर सही-गलत
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उजाले की ओर - 27
उजाले की ओर ------------------ आ. स्नेही व प्रिय मित्रो ! सस्नेह सुप्रभात शीत का मौसम ! ठंडी पवन के झकोरे ,गर्मागर्म मूँगफलियों का स्वाद ,अचानक ही इस मौसम के साथ ...Read Moreजाता है वैसे जिस प्रदेश में मैं रहती हूँ ‘गुजरात में’ वहाँ इतनी न तो सर्दी पड़ती है और न ही यहाँ ‘मूँगफली ले लो,करारी गर्मागर्म मूँगफली’ का सुमधुर स्वर सुनाई देता है चाहे बेचारे बेचने वाले के स्वर में कितनी ही सर्दी की कंपकंपी क्यों न हो ,उस बेचारे को तो पेट पालने के लिए गर्म बिस्तर में घुसे हुए लोगों के पेटों में अपनी सर्दी
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उजाले की ओर - 28
उजाले की ओर ------------------ स्नेहिल मित्रो सस्नेह नमस्कार दुनिया रंग-बिरंगी भाई ,दुनिया रंग-बिरंगी ! सच है न दुनिया रंग-बिरंगी तो है ही साथ ही एक गुब्बारे सी नहीं लगती ?जैसे अच्छा-ख़ासा मनुष्य अचानक ही चुप हो जाता ...Read More,जैसे अचानक ही कोई तूफ़ान उभरकर कुछ ऐसा सामने आ जाता है कि पता ही नहीं चलता कब ,क्या हो रहा है ? फिर भी हम न जाने किस पशोपेश में रहते हैं,किस गुमान में रहते हैं,हमें लगता है कि हम अमर हैं और सदा ही दुनिया में बसने के लिए आए हैं|यहीं हम गलती कर जाते हैं और आँखें बंद करके
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उजाले की ओर - 29
उजाले की ओर ------------------ आ, एवं स्नेही मित्रो स्नेहिल नमस्कार मुझे भली प्रकार याद है जब हम छोटे थे तब हमारे यहाँ प्रतिदिन ही कोई न ...Read Moreमेहमान आया ही रहता था |माता-पिता ’अतिथि देवो भव’का पाठ पढ़ाते थे | कई बार ये अतिथि यानि मेहमान कोई एक-दो घंटे अथवा एक-दो दिन के नहीं बल्कि हफ़्तों तक रहने वाले होते थे जिनकी खातिरदारी की ज़िम्मेदारी बच्चों पर भी सौंपी जाती थी!इनके अतिरिक्तपास-पड़ौस के गाँव से किसी वर्ष कोई चाचा की लड़की आ रही है तो किसी मौसी की लड़की ने शहर में किसी स्कूल में प्रवेश ले
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उजाले की ओर - 30
उजाले की ओर ------------------- नमस्कार स्नेही मित्रों कई बार हम दुविधा में आ जाते हैं ,कई बार क्या अक्सर ! कभी कोई गंगा से आ रहा है ,हमारे लिए गंगाजल की बोतल ...Read Moreतो कभी कोई जमुना किनारे से आ रहा है हमारे ऊपर जमुना-जल के छींटे डालने और कभी तो कोई हाथी पर चढ़कर सीधा स्वराष्ट्र से आ जाता है ,हमें गजराज के दर्शन कराने ! अब भैया ! ये तो सोचो ज़रा कि सामने वाले बंदे के पास समय भी है दर्शन करने का या नहीं ? अब नहीं है तो --- ? गजराज को सामने
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उजाले की ओर - 31
उजाले की ओर --------------- स्नेही मित्रो प्रणव भारती का नमस्कार मुझे याद आ रहा है अपना बचपन जब मैं उत्तर-प्रदेश के एक शहर में रहती थी | जैसे ही ...Read Moreका मौसम आता गाड़ियाँ भर-भरकर गन्ने (ईख) कोल्हू पर अथवा ‘शुगर मिलों’में जाने लगतीं|कोल्हू तो बाद में कम ही हो गए थे ,मिलें खुलने के बाद ये ईख मिलों में ही जाती जहाँ मशीनों सेगुड़,शक्कर और चीनी बनाई जाती | कभी कभी तो पूरी-पूरी रात भर ये गन्ने की गाड़ियाँ चलती थीं और हम बच्चे रात में भी अपने झज्जे से लटकते हुए गन्ने की गाड़ियाँ लेजाते हुए और
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उजाले की ओर - 32
उजाले की ओर ...Read More ----------------- स्नेही मित्रो सस्नेह नमस्कार हम सब हैं एक ही दुनिया के बाशिंदे किन्तु भिन्न-भिन्न स्थानों में हमने जन्म लिया ,भिन्न-भिन्न परिवेश में हमारी शिक्षा-दीक्षा हुई इसलिए विचारों में भी परिवर्तन आया |किन्तु एक चीज़ जो चाहे किसी भी स्थान की हो ,किसी भी जाति-बिरादरी की हो ,वह सबमें एकसी है ---और वह है हमारी संवेदना ! ये वे संवेदनाएँ हैं जिनसे मनुष्य में इंसानियत की चमक आती है ,वह दूसरों के दुख: दर्द को भी
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उजाले की ओर - 33
उजाले की ओर------------------ स्नेही व आद.मित्रो ! नमस्कार ! ज़िन्दगी कभी उथल-पुथल लगती है ,कभी समाधि लगती ...Read More,कभी रौनक से भरपूर प्यारी लगती है तो कभी काँटों भरी फुलवारी लगती है | किन्तु किसी भी परिस्थिति में ज़िंदगी अपनों के साथ न हो तो सूखी सी लगती है |लगता है, अपने मित्र व संबंधी बहुत दूर हैं उनसे मिलना नहीं हो पाता, कभी पास रहते हुए मित्र व संबंधी से भी मिलना दुष्कर हो जाता है| वास्तव में ज़िंदगी का प्रत्येक लम्हा एक नई कहानी लेकर उपस्थित होता है और हमें
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उजाले की ओर - 34
उजाले की ओर --------------- स्नेही मित्रो नमस्कार हम अपने बच्चों को छोटेपन से ही पढ़ाते रहते हैं ,कोई आए तो उसके सामने तमीज़ से पेश आना,मेहमान के ...Read Moreरखे हुए व्यंजनों में हाथ मत मारना,पहले ही खा लो जितना खाना है | अब उस समय आपके लाड़लों का खाने का दिल नहीं होता या उनका मन करता है कि वे उन अतिथि विशेष के सामने ही खाएं ,वे भी उनमें सम्मिलित हों तो क्या कर लेंगे भला ? हम उन्हें तहज़ीब सिखाते-सिखाते थक जाते हैं और वे हमारे भाषण सुन सुनकर खीजते रहते हैं और उन विशेष मेहमानों
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उजाले की ओर - 35
उजाले की ओर ---श्रद्धांजलि --- -------------------------------- आएँ हैं तो जाएँगे ,राजा-रंक-फकीर --------------------------------- जीवन के इस किनारे पर आकर उपरोक्त पंक्ति का सत्य समझ में आने ...Read Moreहै और मन जीवन की वास्तविकता को स्वीकार करने लगता है मन में आता है जाने-अनजाने हुई त्रुटियों की सबसे क्षमा माँग ली जाए ,न जाने कौनसा क्षण हो जब -- जब मनुष्य के हाथ में ही कुछ नहीं तो कर क्या लेंगे ? केवल इसके कि परिस्थितियों में विवेकी बनकर रह सकें फिर भी आसान नहीं होता कुछ परिस्थितियों को सहज ही ले लेना कहीं न कहीं बेचेनी
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उजाले की ओर - 36
उजाले की ओर -------------- स्नेही मित्रों प्रणव भारती का नमस्कार मनुष्य-जीवन विधाता के द्वारा विशेष प्रयोजन से बनाया गया है जिसमें न जाने कितनी–कितनी संवेदनाएँ भरी हैं जिनके बिना ...Read Moreके टेढ़े-मेढ़े मार्गों से गुज़रना आसान भी नहीं होता | हमारे समक्ष बहुत से मोड़ आते हैं जिनमें से कभी तो हम सहजता से निकल जाते हैं और कभी खो भी जाते हैं | इन मार्गों में जीवन प्रेम के सहारे से ही अपने गंतव्य पर अग्रसर होता है |हम सभी इस तथ्य से परिचित हैं कि स्नेह के बिना जीवन सूखी हुई डाली के समान रूखा रह
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उजाले की ओर - 37
उजाले की ओर ------------------ स्नेही मित्रों नमस्कार मानव-मन बहुत जल्दी दुखी हो जाता है |कोई बात किसीके विपरीत हुई नहीं कि मन उसको अपने ऊपर ढाल लेगा,दुखी हो ...Read Moreदुखी कि कई-कई दिनों तक उस मन:स्थिति से बाहर नहीं निकल पाएगा जिसमें येन-केन वह चला गया है अथवा उसे जाना पड़ा है | एक और बात बहुत ही मनोरंजक बात है ,मन को प्रभावित भी करती है और पीड़ा भी देती है कि हम मनुष्य अपना काफ़ी समय किसी न किसीके बारे में बातें करने में गंवा देते हैं |यदि कुछ सकारात्मक बात हो तब भी
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उजाले की ओर - 38
उजाले की ओर ------------------ स्नेही मित्रो नमस्कार बहुत बार मनुष्य के मन में यह संवेदना उभरती है कि वास्तव में जीवन है क्या? क्या जीवन ...Read Moreस्थिति है जो हम सब हर पल ओढ़ते-बिछाते हैं ?अथवा वे पल हैं जिनमें हम सुख-दुःख के भंवरों में से निकलते हैं ?अथवा जो बीत गया है? या फिर जो आने वाला है ? सच्ची—हम कितनी कितनी अपेक्षाओं,उपेक्षाओं के गहरे सागर से होकर गुज़रते हैं |कभी हँसते हुए ,कभी रोते हुए ,कभी उदास होते हुए या कभी बैचेनियों से भरकर भी | हाथ ही तो नहीं लगती जीवन की परिभाषा ---हम
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उजाले की ओर (संस्मरण )
उजाले की ओर (संस्मरण ) -------------- जीवन का एक शाश्वत सत्य ! आने वाला जाने का समय लिखवाकर ही अपने साथ इस दुनिया में अवतरित होता है | जीवन और मृत्यु के बीच ...Read Moreफ़ासला है ,कोई नहीं जानता लेकिन जाना है यह अवश्य शाश्वत सत्य है | जाने वाला चला जाता है ,छोड़ जाता है अपने पीछे न जाने कितनी-कितनी स्मृतियाँ ! लेकिन उसके जाने के बाद जो दिखावा होता है ,जो व्यवसाय होता है ,वह कभी-कभी बहुत पीड़ा से भर देता है | जिस घर से कोई जाता है ,वह तो वैसे ही अधमरा सा हो जाता
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उजाले की ओर - संस्मरण
उजाले की ओर—संस्मरण -------------------------- स्नेही मित्रों सस्नेह नमस्कार हमारे ज़माने में बच्चे इतनी जल्दी बड़े नहीं हो जाते थे आप कहेंगे ,उम्र तो अपना काम करती है फिर आपके ज़माने में ...Read Moreउम्र थम जाती थी ? नहीं ,उम्र थमती नहीं थी लेकिन वातावरण के अनुरूप सरल रहती थी न तरह-तरह गैजेट्स होते थे ,न टी . वी,यहाँ तक कि रेडियो तक नहीं मुझे अच्छी तरह से याद है जब अपने पिता के पास दिल्ली में पढ़ती थी ,उस समय शायद दसेक वर्ष की रही हूंगी तभी हमारे यहाँ रेडियो आया था छोटा सा
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उजाले की ओर - संस्मरण
उजाले की ओर ---संस्मरण ------------------------ कई बार बहुत से लोग बहुत सुंदर लगते हैं ,आकर्षित करते हैं ,मित्रता भी हो जाती है किन्तु कुछ दिनों बाद ही उनकी बातों से मन उचाट ...Read Moreलगता है |इसका कारण सोचना बहुत आवश्यक है | जिनसे हम इतने अभिभूत हुए कि उन्हें अपना मित्र बना लिया ,जिनसे अपने व्यक्तिगत विचार व समस्याएँ साझा कीं ,उनसे ही मन उचाट क्यों होने लगा आख़िर ! मुझे अपनी दिवंगत नानी की कुछ बातें कई बार याद आने लगती हैं ,वो भी कभी जब कोई स्थिति ऐसी उत्पन्न हो जाए जो हमें असहज करने
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उजाले की ओर - संस्मरण
उजाले की ओर--संस्मरण ----------------------- कुछ बातें ऐसी कि साझा करनी ज़रूरी लगती हैं नहीं तो कहते हैं न कि असहज हो जाता है मनुष्य ! अरे ! मित्रों ,आप भी महसूस करते ...Read Moreन कि अनमना हो उठता है आदमी | सीधे से कहूँ तो नानी के शब्दों में जब तक मन की बात साझा न करो 'पेट में दर्द' होता रहता है | ख़ैर ,यह तो रही मज़ाक की बात जो मुझे अपनी नानी की याद आने से अचानक स्मृति का द्वार खोल घुसपैठ कर बैठी थी | लेकिन सच यह है कि कुछ बातें साझा करनी
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उजाले की ओर - संस्मरण
उजाले की ओर---संस्मरण ------------------------ नमस्कार स्नेही मित्रो ! अब तो बस पुरानी पुरानी बातें ही याद आती हैं | हो सकता है उम्र का तक़ाज़ा हो या फिर दिमाग ...Read Moreकोई खुराफात भी हो सकती है |पता नहीं लेकिन कुछ तो है जो भीतर ही भीतर छलांगें मारता पता नहीं कहाँ पहुँच जाता है | तो आज बात करती हूँ तब की --जब किशोरी थी | कत्थक सीख रही थी ,शास्त्रीय संगीत भी किन्तु गंभीरता कहीं नहीं | लगता जैसे हम बड़े तीसमारखाँ हैं ,अपने जैसा कोई नहीं |पता नहीं लोग भी बड़ी प्रशंस करते रहते
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उजाले की ओर - संस्मरण
उजाले की ओर ---संस्मरण -------------------------- वह हवाई-यात्रा बहुत अजीब थी ,अजीब क्या !कभी सोचा ही न था कि इतने ऊपर आकाश में कोई इस प्रकार की सोच या फ़ीलिंग भी हो सकती है ! ...Read More बात तो कई वर्ष पुरानी है | अगरतल्ला ,आसाम से एक निमंत्रण आया ,कवि-सम्मेलन का ! ख़ुशी इस लिए भी अधिक हुई कि बहुत दिनों से आसाम देखने का मन था | पति अपने काम से जा चुके थे लेकिन इमर्जैंसी में गए थे | वैसे भी काम से जाने पर कभी मैं उनके साथ नहीं गई थी लेकिन जिन मित्रों ने आसाम देखा
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उजाले की ओर - संस्मरण
उजाले की ओर ---संस्मरण -------------------------- मित्रों ! सस्नेह नमस्कार ! पिछली बार मैंने आप सबसे कोलकता की उड़ान में बैठकर मेडिटेशन की बात साझा की थी | ...Read More जीवन में थोड़ा नहीं ,बहुत कुछ ऐसा होता है जो ताउम्र नहीं छूटता | आप वहाँ पर सशरीर उपस्थित न रहते हुए भी उससे जुड़े ही तो रहते हैं | नहीं ,मैंने ऐसा बिलकुल भी नहीं कहा कि हर सामय जुड़े रहते हैं ! मैं कहना चाहती हूँ कि किसी विशेष परिस्थिति में जब भूत का कोई एक भी पृष्ठ खुल जाए तो स्मृतियाँ ऐसे निकलकर मन की
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उजाले की ओर - संस्मरण
उजाले की ओर ---संस्मरण ------------------------- स्नेही मित्रो ! सस्नेह नमस्कार बेतरतीब सी ज़िंदगी को तरतीब में लाने के लिए न जाने कितने -कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं ,फिर ...Read Moreसुखाने पड़ते हैं और फिर सेकने या फिर तलने !तभी तो स्वादिष्ट पापड़ का स्वाद लिया जा सकता है | न--न --दोस्तों मैं आपसे सचमुच इतनी कसरत करने के लिए नहीं कह रही हूँ लेकिन आप सब ही इस बात से भली-भाँति परिचित हैं कि बिना हाथ-पैर,दिमाग हिलाए कुछ नहीं मिलता | यह जीवन का अंदाज़ है यानि शैली !कोई भी मनुष्य --अरे ! मनुष्य ही
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उजाले की ओर---संस्मरण
उजाले की ओर---संस्मरण ------------------------ स्नेही मित्रों ! सस्नेह नमस्कार जीवन कहानियों से भरा पड़ा है --नहीं ,केवल मेरा ही नहीं आपका भी --यानि सबका ! उस दिन की ...Read Moreहै --अरे हाँ, ,आपको कैसे पता भला किस दिन की ? मैं बताती हूँ न ,ध्यान से सुनना ! कॉलेज में पढ़ाने वाली अम्मा की कितनी सारी मित्र थीं ,अम्मा को सब खूब स्नेह करतीं कारण था अम्मा का सरल ,सीधा होना उनके पास जो कुछ भी हो ,पहले सबका है ,बाद में उनका उनकी सहेलियाँ जहाँ उनको प्यार करतीं ,वहीं उनसे दुखी
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उजाले की ओर---संस्मरण
उजाले की ओर---संस्मरण ------------------------ नमस्कार स्नेही मित्रों ! 'नन्ही-नन्ही बूंदियाँ रे ,सावन का मेरा झूलना ---' हम जब छोटे थे ...Read Moreके माह के आते ही उत्तर-प्रदेश के जिस घर में झूले पड़े देखते ,मचल ही तो जाते ,हमारे लिए भी झोला डालो | किसी किसी के घर में तो महीने भर पहले झूले पड़ जाते ,दिन और रात के खाने के बाद परिवार की लड़कियाँ,बहुएँ गीत गाते हुए झूले की पैंग बढ़ातीं | जिस घर के आँगन में या बगीचे में मज़बूत ,विशाल पेड़ होते ,उस घर में उन मज़बूत
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उजाले की ओर ---संस्मरण
स्नेही मित्रों ! नमस्कार बरसात का पानी गिरते देखकर कुछ बातें सहसा याद आने लगती हैं | बचपन की बातें --ज़िद करके नाव बनवाने की फिर उस नाव को बरसात के सहन ...Read Moreगढ़े में भरे पानी में चलाने की और नाव के पिचक जाने के बाद उस गढ़े में छपाछप कूदने की ,कपड़े गंदे करने की फिर भीगे कपड़ों को बदलने के लिए कहे जाने पर उन्हीं गीले कपड़ों में रहकर सड़क पर जाने की ज़िद ! साठ/पैंसठ वर्ष पूर्व लड़कियों को ,वो भी उत्तरप्रदेश की लड़कियों को कहाँ छूट मिलती थी यह सब करने की
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उजाले की ओर---संस्मरण
अनेही मित्रों को स्नेहमय नमस्कार आशा है ,सब स्वस्थ,आनंदित हैं | आज आप सबसे एक अलग बात साझा करती हूँ ,लगता है आप मुस्कुराए बिना नहीं रह पाएँगे | ...Read Moreलगभग 35/38 वर्ष की है | मैं गुजरात विद्यापीठ से पी.एचडी कर रही थी | उन दिनों हम आश्रम-रोड़ पर ही रहते थे | घर से विद्यापीठ लगभग डेढ़-एक कि .मीटर की दूरी पर होगा | युवावस्था थी,इतना चलने में कोई ख़ास परेशानी न होती | ख़ास इसलिए लिखा कि होती तो थी परेशानी लेकिन युवावस्था के कारण बहुत अधिक नहीं क्योंकि परिवार होने के कारण
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उजाले की ओर---संस्मरण
उजाले की ओर ----संस्मरण ------------------------- सस्नेह नमस्कार मित्रों देख रहे हैं कैसा समय है ! आज के युग में एक हाथ दूसरे पर भरोसा नहीं कर पा रहा ...Read Moreआख़िर क्या कारण है? हम सभी इस दुनिया के बाशिंदे हैं ,हमें इसी समाज में रहना है ,हमें इन्हीं परिस्थितियों में भी रहना है ---फिर ? प्रश्न यह है कि हम सहज क्यों नहीं रह पाते ?क्योंकि एक होड़ हमारे भीतर पनपती रहती है | हम भी दूसरे के दृष्टिकोण से देखने लगते हैं| कोई हर्ज़ नहीं ,दूसरे की बात पर ध्यान देना यानि उसका सम्मान करना
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उजाले की ओर ---संस्मरण
उजाले की ओर ---संस्मरण ------------------------ आज़ादी की 75 वीं सालगिरह ! हम सब बड़े ज़ोर-शोर से झंडे लेकर खड़े हो जाते हैं हर चौराहे पर छोटे-छोटे बच्चों के हाथ ...Read Moreझंडे देखकर उन्हें खरीदकर उनके साथ या केवल झंडे के साथ अपनी तस्वीरें सोशल-मीडिया पर अपलोड करके हम देश भक्त बन जाते हैं लेकिन एक दिन ही क्यों ?हमारा भारत ऐसा हो कि हम हर पल ही आज़ादी को महसूस करें ,उसे जीएँ याद कर सकें अपने उन देश के पहरेदारों को जो हमारी सीमा पर चौबीसों घंटे तैनात रहते हैं जीने और
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उजाले की ओर--संस्मरण
उजाले की ओर--संस्मरण ---------------------- नमस्कार स्नेही मित्रों मैं अधिकतर आपसे अपने ज़माने यानि 50 60 वर्ष पूर्व की बातें साझा करती हूँ वैसे मैं आज भी हूँ ...Read Moreये ज़माना भी हमारा ही हुआ न ! हमारी पीढ़ी ने न जाने कितने-कितने बदलाव देखे जिनके लिए कभी-कभी आज भी आश्चर्य होता है क्योंकि हम स्वयं इसके साक्षी हैं तो स्वाभाविक रूप से तुलना भी हो जाती है और हमारे आश्चर्य को स्वीकारोक्ति भी मिल जाती है हमने अपने बालपन में जिन चीज़ों,बातों की कल्पना की ,वे केवल उड़ान भर थीं लेकिन आज हम उन्हें जी
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उजाले की ओर ---संस्मरण
उजाले की ओर ---संस्मरण ------------------------ नमस्कार स्नेही मित्रों ! संदीप का काफी बड़ा परिवार है | सब एक-दूसरे के सुख-दुख में शरीक होते | घर में तीन भाई ,एक ...Read More,माता-पिता ,संदीप के दादा-दादी ! इतने बड़े परिवार का काम करने में उसकी माँ बुरी तरह थक जातीं किन्तु वे सबकी आवश्यकताएँ पूरी करतीं | उन्हें बड़ी तृप्ति मिलती जब सबको संतुष्ट देखतीं | समय की गति के साथ बच्चे बड़े हुए | बहिन बड़ी थीं ,उनकी शादी हो गई | संदीप के बड़े भाई भी नौकरी पर लग गए | पिता की अपनी निजी
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उजाले की ओर----संस्मरण
उजाले की ओर ----संस्मरण ------------------------- नमस्कार स्नेही मित्रों ! ज़िंदगी रूठती,मानती-मनाती चलती है | पर,चलती तो रहती ही है न चले तो ज़िंदगी शब्द का अर्थ ही कहाँ रह जाता है ? सपनों ...Read Moreसी डगर पर चलती ज़िंदगी को ताप की वास्तविकता को झेलने के लिए आ खड़ा होता है इंसान ! होता क्या है ,वह मज़बूर होता है,ताप झेलने के लिए क्योंकि मनुष्य का प्रारब्ध उसके साथ बंधा रहता है | मुझे अपने बचपन की बहुत सी बातें याद आने लगती हैं ,ऐसा लगता है मानो अभी सब-कुछ मेरे सामने चित्र की भाँति चल रहा हो
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उजाले की ओर --संस्मरण
उजाले की ओर --संस्मरण ----------------------- नमस्कार मित्रों ! झरोखों से झाँकता किसका जीवन किस ओर बहा ले जाए पता ही नहीं चलता | सच ही तो ...Read Moreकहाँ जानते हैं किस डगर पर हैं और न जाने किस डगर पर पहुँच जाते हैं ? दरअसल,हम अपने ही मार्ग में खोने लगते हैं | अटकता,भटकता जीवन झरोखे से झाँककर हमें रोशनी की छाजन सी लकीर दिखाता है | किन्तु हम उसे नज़रअंदाज़ कर जाते हैं | अपने ही मार्ग में भटकते रहते हैं और फिर खो जाते हैं | जीवन की यही बात बड़ी मजेदार है
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उजाले की ओर---संस्मरण
उजाले की ओर --संस्मरण ----------------------- नमस्कार मित्रों जीवन हमें बहुत कुछ देता है इसमें कोई संशय नहीं है | लेकिन हर देने के पीछे लेना भी तो ...Read Moreहै | जैसे हम समाज में बात करते हैं कि लेना-देना दोनों साथ होते हैं यानि सामाजिक कार्यों में एक ही व्यक्ति नहीं होता जो केवल देता ही रहता है ,वह लेता भी है | और यही जीवन को जीने का तरीका है | हम कोई खरीदारी करने जाते हैं तो वहाँ हम पैसा देते हैं और अपनी इच्छित अथवा अपनी आवश्यकतानुसार वस्तु खरीद लेते हैं|
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उजाले की ओर----संस्मरण
स्नेही मित्रों नमस्कार इस ज़िंदगी में हम कितनों से मिलते हैं ,कितनों से बिछुड़ते हैं | कभी -कभी ऐसा लगता है कि ज़िंदगी एक रेल जैसी है और हम उसके एक कंपार्ट्मेंट ...Read Moreबैठे हुए मुसाफिर ! स्टेशन पर गाड़ी रुकती है ,कुछ यात्री उतरते हैं ,कुछ नए चढ़ते हैं और आगे की यात्रा आरंभ हो जाती है | इसी यात्रा में न जाने कितने अपने बन जाते हैं ,कभी-कभी तो इतने अपने कि लगता है कि हम उनसे और वे हमसे कभी दूर नहीं होंगे | लेकिन ---जीवन तो यात्रा है ,कभी न कभी उसका अंत होना
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उजाले की ओर-----संस्मरण
उजाले की ओर-----संस्मरण ---------------------------- सस्नेह नमस्कार स्नेही मित्रों कुछ पाने -खोने का नाम है जीवन सिमटने-बिखरने का नाम है जीवन ...Read More इस जीवन में हम कितनी बार कुछ पाते-खोते हैं ,सिमटते-बिखरते हैं --हमें ही पता नहीं चलता | जैसे कोई पवन उड़ाकर ले जाती है और हम किसी पेड़ की टहनी पर किसी कटी पतंग सी लटके रह जाते हैं | या फिर कोई कॉपी के फटे पन्ने की तरह से अचानक आई आँधी सी पवन सुदूर किसी इलाक़े में उड़ाकर ले जाती है | जहाँ हमें अपना पता ही नहीं लगता
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उजाले की ओर --संस्मरण
उजाले की ओर ----संस्मरण ------------------------- नमस्कार स्नेही मित्रों कैसे हैं आप सब ? बहुत अच्छे होंगे | कभी-कभी लगता है कि आप सबसे परिचित हूँ मैं | जैसे किसी अदृश्य रिश्तों ...Read Moreडोरी से जुड़ जाना और महसूस करना कि कहीं न कहीं हम सब जुड़े हुए हैं | शायद यह प्र्कृति का ही संकेत होता है कि हमें जोड़कर रखती है | दुनिया के एक कोने में कोई होता है ,दूसरे में कोई लेकिन हम जुड़ ऐसे जाते हैं जैसे एक ही पिता की संतानें हों | कहीं न कहीं यह सही भी है ,यदि हम
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उजाले की ओर ---संस्मरण
उजाले की ओर ---संस्मरण ------------------------ सस्नेह नमस्कार मित्रों जैसे-जैसे नई-नई चीज़ें ईज़ाद हो रही हैं हम बहुत कुछ नया ...Read Moreरहे हैं लेकिन पशोपेश में भी पड़ते जा रहे हैं | हम जैसी उम्र के लोग ताउम्र कलम हाथ में लिए रहे या यों कह लें कि माँ शारदा ने हमारे हाथों में कलम पकड़ाए रखी व आशीष दिया | अब लिखा किस स्तर का ,वह तो जो पढ़ता है ,वही बता सकता है |यानि पाठक वर्ग ही न्याय कर सकता है | हर माँ को अपना बच्चा प्यारा लगता है
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उजाले की ओर-----संस्मरण
उजाले की ओर --संस्मरण ----------------------- नमस्कार मेरे सभी स्नेही मित्रों को पता है ,जब कभी युवाओं से मुखातिब होते हैं तो हमें लगता है हम फिर से युवा ...Read Moreगए हैं | किसी भी परिस्थिति में आपके बुज़ुर्गों को आपके साथ की ज़रूरत होती है | चाहे वह सुख हो अथवा दुख ! बुज़ुर्ग अपने युवाओं से कोई भी बात साझा करके बड़े आनंदित होते हैं | उन्हें लगता है कि वे अपने अनुभवों से अपने बाद की पीढ़ी को कुछ दे रहे हैं | साथ ही युवा पीढ़ी से वे बहुत कुछ सीखते हैं और
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उजाले की ओर----संस्मरण
उजाले की ओर----संस्मरण ------------------------ नमस्कार स्नेही मित्रों ज़िंदगी की गलियों के अनुभव कुछ खट्टे,कुछ मीठे तो कुछ कड़वे भी ! लेकिन हर दिन नए अनुभव होते हैं और ...Read Moreहमें कुछ न कुछ तो देकर जाते ही हैं | ये अनुभव केवल मेरी ही थाती थोड़े ही हैं ,ये हम सबको मिलते हैं | एक नए दिन के उजाले से दिन की रोशनी धरती से लेकर मन के कोने-कोने में पसरती है और साँझ होते-होते न जाने कितनी घटनाएँ और उनमें छिपे कितने अनुभवों से हमें सराबोर कर जाती है| बात बड़ी
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उजाले की ओर ---संस्मरण
उजाले की ओर --संस्मरण ------------------------ स्नेही साथियों सस्नेह नमस्कार मैंने आपसे चर्चा की थी कि अपनी युवावस्था में मैं एक बार अपने ममेरे मामा जी के यहाँ अलीगढ़ ...Read Moreगई थी | जहाँ बच्चे हर रोज़ गाँव में जाकर प्रकृति के सानिध्य में खेलते-कूदते | वे पेड़ों पर चढ़कर खूब मस्ती करते और पूरा आनंद लेते | मैं घर पर ही रहती लेकिन एक दिन ऐसा आया जिसको मैं आजीवन नहीं भुला सकूँगी | अलीगढ़ के पास ही कोई स्थान है 'किन्नौर' जहाँ पर गंगा बहती हैं | एक दिन सिंचाई-विभाग में एक्ज़ीक्यूटिव इंजीनियर के पद पर
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उजाले की ओर ---संस्मरण
उजाले की ओर ---संस्मरण ----------------------- न जाने क्यों मुझे सदा यही लगता रहा है कि हमारा जीवन कहीं न कहीं एक-दूसरे से ऐसे जुड़ा है जैसे नींद व स्वप्न ,बूदें व माटी की ...Read More! चिड़ियों की चहक ---या कुछ भी वो ,जो एक दूसरे से ऐसे संबंधित है जिनके बिना कोई कल्पना नहीं हो पाती | यूँ ही कोई मिल गया था ,सरे राह चलते-चलते --- बहुत अच्छा गीत है किन्तु इसमें संसारी मुहब्बत है ,प्रीत है |इसमें भी कोई हर्ज़ नहीं ,यह भी जीवन के लिए आवश्यक है | मैं बात कर रही
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उजाले की ओर--संस्मरण
उजाले की ओर ---संस्मरण -------------------------- समय अपनी धुरी पर चलता रहता है बिना हमसे कुछ पूछे ,बिना बताए ---अब सोचने की बात है कि हम कितनी चीज़ो पर अपना अधिकार समझते हैं ...Read Moreभाई ! हक है हमारा ,समझना भी चाहिए फिर समय भी तो हमारा है और हमें कुछ भी बिना बताए ,आगे चलता ही रहता है | न जाने कहाँ कहाँ पहुँचा देता है |हम समय के मोड़ों को पहचान कहाँ पाते हैं ? बस,एक फिरकनी बनकर उसके पहिए में चक्कर काटते रह जाते हैं | मित्रों ! सच -सच बताइएगा ,कभी ऐसा
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उजाले की ओर----संस्मरण
उजाले की ओर ----संस्मरण ----------------------- नमस्कार मित्रों ! हमारी पीढ़ी वह पीढ़ी है जिसने न जाने कितने बदलाव देखे हैं |हमारे घरों में ...Read Moreभी तब आई थी जब हमारा जन्म हुआ था |पानी के टैप लगे थे ,इससे पहले तो पानी खींचकर पीना पड़ता था |हमारे बचपन में जब टैप लगने शुरू हुए तब भी हाथ के नल लगे ही रहे जिनसे थोड़ा खींचने पर इतना ठंडा और मीठा पानी निकलता था कि वास्तव में प्यासा तृप्त हो जाता था जितनी रेफ्रीजेरेटर के पानी से तृप्ति नहीं होती | मेरे जन्म
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उजाले की ओर ----संस्मरण
उजाले की ओर ---संस्मरण ----------------------- नमस्कार स्नेही साथियों चार रास्ते पर खड़े हुल्लड़ मचाते लड़कों से एक बुज़ुर्ग ने पूछा ; "बेटा ! ये एड्रेस बता पाओगे ?" ...Read More कुछ अधिक ही सुसंस्कृत ,सभ्य थे वे शायद ,चुपचाप सिगरेट का धुआँ उड़ाते रहे | बुज़ुर्ग ओटोरिक्षा में थे ,रिक्षा वाला भाई भी खासी उम्र का ,बेचारा जगह -जगह अपनी सवारी को घुमा रहा था | मालूम ही नहीं चल रहा था रास्ता ,वह कई स्थानों पर रुककर पूछ रहा था | एक फल बेचने वाला वहाँ से गुज़र रहा था ,वह रुका और पते का
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उजाले की ओर ---संस्मरण
उजाले की ओर ---संस्मरण ------------------------- स्नेही साथियों सस्नेह नमस्कार हमारी दुनिया इतने भिन्न प्रकार ले लोगों से भरी पड़ी है | कोई पैसे से अमीर है तो ...Read Moreसे गरीब ! कोई दिल से अमीर है तो पैसे से मार खा जाता है | मित्रों ! आप सब यह भली प्रकार जानते हैं ,अनुभव करते हैं कि पेट से बड़ी कोई समस्या नहीं | हाँ जी ,ठीक पढ़ रहे हैं आप मैं पेट ही कह रही हूँ जिसमें दाना यानि अन्न न पड़े तो शरीर काम ही नहीं करता | बताइए,कैसी मुसीबत है कि पेट में
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उजाले की ओर ---संस्मरण
प्रिय साथियों स्नेह वंदन कुछ यादें परछाईं सी साथ ही लगी रहती हैं चाहे उनसे कितना भी पीछा छुड़ाने का प्रयास करो ,नहीं छुट पातीं | मन में जैसे आलथी-पालथी मारकर बैठ ...Read Moreहैं और कभी भी सिर उठाकर खड़ी हो जाती हैं |कुछ यादें प्रसन्नता देती हैं तो मुख पर मुस्कान चिपक जाती है लेकिन वे यादें जो आँखों में पानी भर लाती हैं ,बड़ी सताती हैं | कभी-कभी तो लगता है दम ही घुट जाएगा | स्मृतियों के सिरहाने खड़े दिनों की सिहरन कुछ ऐसी होती है जैसे सर्दी से चढ़कर आया बुखार !
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उजाले की ओर--संस्मरण
नमस्कार स्नेही मित्रों जीवन की गाड़ी अद्भुत --कभी भागे ,कभी खिचर-खिचर चले | कभी बिलकुल बंद होकर अड़ जाए | फिर उसे चलाने के लिए मशक्कत करनी पड़ती है और फिर ...Read Moreवह थोड़ी दूर जाकर ठिठक जाए तो आखिर क्या करे इंसान ! जी,सभी की गाड़ी रुकती,थमती ,ठिठकती चलती है | कभी उसे धक्का मारना पड़ता है फिर गैराज में भेजना पड़ता है | हमारे चिंतन का भाग एक गैराज ही तो है जो हमारे जीवन की ठिठकी हुई गाड़ी को चिंतन से सफ़ाई करके आगे बढ़ने में मदद करता है | कभी कभी जब
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उजाले की ओर ----संस्मरण
उजाले की ओर ---संस्मरण ------------------------ नमस्कार स्नेही साथियों इस जीवन -संग्राम में डूबते-उतरते हुए हम कभी निराश होकर टूटने की कगार पर ...Read Moreजाते हैं | यह जीवन हमें न जाने कितनी बार इस कगार पर ला खड़ा करता है और फिर वहाँ से उठाकर फिर से जूझने के लिए छोड़ देता है | मनुष्य का स्वभाव है ,वह मुड़-मुड़कर देखता है जितना वह पीछे मुड़कर देखता है ,उतना ही अधिक कमज़ोर पड़ता जाता है | कभी परिस्थितियाँ उसे कमज़ोर बना देती हैं और वह अपने सही निर्णय नहीं ले पाता | इसका
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उजाले की ओर -----संस्मरण
उजाले की ओर ---संस्मरण ------------------------ नमस्कार स्नेही मित्रों हर दिन एकसा नहीं बीतता ,कोई न कोई बदलाव ,कोई न कोई समस्या जीवन में न आए ,यह संभव ही नहीं है | इन ऊँचे-नीचे ...Read Moreपर जीवन की गाड़ी चलती ही रहती है | युवावस्था में फिर भी किसी न किसी प्रकार मनुष्य अपने दिन गुज़ार लेता है लेकिन उम्र के एक कगार पर आकर वह किसी सहारे की तलाश करता ही है | एक बड़ी उम्र में किसी न किसी का सहारा उसे लेना ही पड़ जाता है | वह मन के साथ तन से भी शिथिल होता
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उजाले की ओर----संस्मरण
उजाले की ओर ----संस्मरण ------------------------ स्नेही मित्रों नमस्कार 'जीवन एक पहेली सजनी,जितना सुलझाओ वह उलझे ,है रहस्यमय कितनी !!' इन पंक्तियों की रचयिता हैं -- 'स्व. श्रीमती दयावती शास्त्री' ...Read More मेरी माँ का नाम है | जब छोटी थी तब उनकी लिखी हुई बातें या तो समझ नहीं आती थीं अथवा ध्यान भी नहीं देती हूंगी | दरअसल ,जब तक हमारे पास कोई होता है तब तक उसका मूल्य हमें पता ही नहीं चलता | हाँ,जब वह नहीं रहता तब उसकी बातें स्मृति खंगालती भी हैं और हमें याद भी आती हैं | हम उनकी कही गई
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उजाले की ओर ---संस्मरण
उजाले की ओर ---संस्मरण ------------------------ कोई भी बात जब यादों में घुल-मिल जाती है तो संस्मरण बन जाती है और हमें झकझोरती रहती है | मन करता है ,इसे मित्रों के साथ साझा ...Read Moreजाए | बहुत दिनों की बात है ,याद नहीं कितने --लेकिन काफ़ी वर्ष हो गए | हम लोग एक बार बैंक में किसी काम के लिए गए थे | वहाँ एक वृद्ध सज्जन भी आए थे | वे काफ़ी कठिनाई से चल रहे थे| उनके हाथ-पैर भी काँप रहे थे |हाथ में छ्ड़ी थी जिसके सहारे वे बड़ी मुश्किल से सीएचएल पा रहे थे
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उजाले की ओर---संस्मरण
उजाले की ओर --संस्मरण -------------------------- नमस्कार स्नेही मित्रों ज़िंदगी झौंका हवा का प्यार का संगीत है ज़िंदगी खुशियों की महफ़िल,गा सकें तो गीत है | ...Read More हर रोज़ बदलती हुई ज़िंदगी को किस कोण से देखा जाए ,यह तय नहीं किया जा सकता | हर रोज़ ही क्या ,हर पल ही बदलाव होता है ज़िंदगी में ! क्या कभी हममें से ही कुछ मित्र महसूस नहीं करते कि ज़िंदगी एक दौड़ है ,एक ऐसी दौड़ जिसमें हम सब ही आगे निकलना चाहते हैं | जो पीछे रह गया ,वो गया काम से !
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उजाले की ओर---संस्मरण
उजाले की ओर --संस्मरण ------------------------ जीवन में एक समय होता है जब हम बच्चे होते हैं ,अपनी अठखेलियों से अपने परिवार का ,अपने माता-पिता का ध्यान आकर्षित करते हैं ...Read Moreप्यार,दुलार पाते है और फिर बड़े होने की प्रक्रिया में सहजता से आगे बढ़ते जाते हैं |दरअसल ,इसमें हमारा कोई हाथ नहीं होता ,ये सब चीज़ें प्राकृतिक हैं जो प्रत्येक मनुष्य के साथ बड़ी ही सहजता से घटित होती हैं | जीवन की प्रत्येक डगर हमें आगे बढ़ाती है ,नए संदेश देती है ,नए मार्गों की ओर प्रेरित करती है | हमें लगता है ,हम सब कुछ करते
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उजाले की ओर---संस्मरण
उजाले की ओर ---संस्मरण ------------------------ नमस्कार स्नेही मित्रों ! नहीं जानती कि मेरे मित्र कहाँ रहते हैं ,यह भी नहीं जानती कि वे मेरी बातों से कितना इत्तेफ़ाक रखते हैं | ...Read Moreभी नहीं मालूम कि वे मेरे लेखन को कितनी रुचि से पढ़ पाते हैं लेकिन एक बात ज़रूर है कि मुझे महसूस होता है कि वे सब मेरे अपने परिवार का हिस्सा हो गए हैं | जीवन में बहुत सी बातों का हमें कोई ज्ञान नहीं होता ,न ही पता चलता है कि हम किससे कितने बाबस्ता हैं किन्तु धरती पर जन्म लेते ही
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उजाले की ओर --संस्मरण
उजाले की ओर --संस्मरण --------------------------- मित्रों को बसंत की स्नेहिल शुभकामनाएँ ------------------------------------ बसंत ऋतु आई ,मन भाई फूल रहीं फुलवारियाँ टेसू फूले ,अंबुआ मौले ,चंपा,चमेली सरसों फूले फूट रही कचनारियाँ---- भँवरे की गुंजन मन भाए ,ऋतु बासन्ती मन ...Read Moreआओ सब मिल शीष नवा लें,स्वर की साधना कर हर्षा लें पुष्पित हैं अमराइयाँ ---- (माँ) स्व.दयावती शास्त्री माँ मन में हैं ,वो ही मार्ग-दर्शन करती हैं| आँसुओं की लड़ी को अनदेखे ही अपने आँचल में छिपा मुख पर मुस्कान बिखरा देती हैं | माँ को विशेष रूप से मैं शायद ही कभी याद कर पाती हूँ
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उजाले की ओर ---संस्मरण
उजाले की ओर --संस्मरण ---------------------- नमस्कार स्नेही मित्रो ! धूप-छांह सी खिलती मुस्कुराती ज़िंदगी में बहुत से क्षण प्यार -दुलार भरे आते हैं तो बहुत से कड़वे-कसैले भी | ...Read Moreकभी हम इनकी वास्तविकता को समझ पाते हैं तो कभी इनके इर्द-गिर्द घूमते रह जाते हैं | समझ ही नहीं पाते कि हम किन उलझनों में हैं ? हमारे आगे का मार्ग किस ओर है ? हम ज़िंदगी की सुबह को शाम समझकर कभी बियाबानों में खोने लगते हैं तो ज़िंदगी की शाम को ही रात बनाकर काल्पनिक सितारों के साथ बतियाने लगते हैं | होते कहाँ
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उजाले की ओर---संस्मरण
उजाले की ओर --संस्मरण ------------------------ नमस्कार स्नेही मित्रों ! बहुत ज़रूरी लगता है इस जीवन में प्रेम बाँटकर जाना | प्रेम ,स्नेह वह संवेदना है जिसके बिना जीवन कुछ है ही नहीं | ...Read More इस तथ्य से सब वाकिफ़ हैं कि प्रेम के अतिरिक्त केवल किसी और भावना से जीवन की गाड़ी नहीं चल पाती | प्रेम के दो मीठे बोलों में सामने वाले के प्रति ईमानदार परवाह हो तो मनुष्य सूखी रोटी खाकर भी मस्ती से जी सकता है | यदि सोने के थाल में सौ व्यंजन भी क्यों न हों और परोसने वाला या खिलाने वाला
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उजाले की ओर --संस्मरण
उजाले की ओर ---संस्मरण ----------------------- नमस्कार स्नेही मित्रो बहुत सी चीज़ें होती हैं रसभरी यानि रस से भरी और बहुत सी बातें भी तो होती हैं ऐसी रस से भरी जो भूले नहीं भूलतीं और यदि इन दोनों का ...Read Moreहो जाए तो क्या ही कहने ! वैसे भी बामन कुल में जन्म लेकर रसभरी की आदत से सराबोर हम जैसे लोग किसी भी उम्र में इस रसभरी को ढूँढने के लिए ऐसे लपकते हैं कि क्या बताएँ और जब नहीं मिलती तो ऐसे बौखला उठते हैं जैसे मृग अपनी क्स्तूरी को तलाशता हुआ इधर-उधर लपकता है और जब कस्तूरी
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उजाले की ओर --संस्मरण
उजाले की ओर --संस्मरण ------------------------- नमस्कार स्नेही मित्रो बहुत जूझना पड़ता है अक्सर जीवन से लेकिन उसके लिए कोई शॉर्ट कट नहीं है | जो करना होता है ,उसके लिए झूझना ही है ,बिना अपने जीवन का युद्ध स्वयं ...Read Moreबिना कुछ हाथ में आता ही नहीं | और जीवन है कि आगे बढ़ता ही रहता है ,ज़रा सा भी तो नहीं रुकता | साँस लेने की फुर्सत ही नहीं देता |कारण यही है कि यह जीवन है --- जीवन न हो तो कुछ भी कहाँ है ? न लड़ाई ,न झगड़े ,न ही ईर्ष्या ,न ही क्रोध और न
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उजाले की ओर ---संस्मरण
उजाले की ओर ---संस्मरण ----------------------- नमस्कार मित्रों जीवन के सफर मे राही मिलते हैं बिछुड़ जाने को ---लेकिन ज़रूरी नहीं कि वे आहें और आँसू ही लेकर बिदा हों | आए हैं तो जाएँगे राजा ,रॅंक ,फकीर ---क्या सच्ची ...Read Moreकह गए कबीर ! एक ऐसा जुलाहा जो जीवन की चादर बुनते -बुनते इतनी बड़ी-बड़ी बातें कह गया कि सच में उन्हें हर पल नमन बनता है | हम तो शिक्षित हैं ,अपने आपको आधुनिक भी कहते है और अपने गानों के ढ़ोल भी खुद पीटते हैं किन्तु ज़रा सी परेशानी होने पर हम अपनी वास्तविकता पर आ जाते हैं
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उजाले की ओर--संस्मरण
उजाले की ओर ---संस्मरण ------------------------- नमस्कार स्नेही मित्रो कुछ बातें अचानक ऐसे याद आ जाती हैं कि हँसी रोकनी मुश्किल हो जाती है | वैसे कहा तो यह जाता है कि बेबात हँसने वाले मूर्ख होते हैं | यदि ...Read Moreहै तो रोते हुए ,गमगीन चेहरों के लिए 'लाफ़िंग-क्लब'क्यों बनाए जाते हैं ? इसीलिए तो कि भई हँस लें और अपने चेहरों को लटकाकर बिना बात ही खुद को और अपने से जुड़े हुओं की नाक में दम न करते रहें | मित्रों ! क्या कभी महसूस किया है कि हमारा गुस्सा इतनी जल्दी सिर पर चढ़कर बोलने लगता है
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उजाले की ओर --संस्मरण
स्नेही मित्रों नमस्कार 'मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया ' बड़ा खूबसूरत गीत है , साथ निभाना तो पड़ेगा ही | जाएँगे कहाँ ? सुबह की निकलती लालिमा से लेकर शाम की डूबती किरणों तक ,ज़िंदगी का साथ ...Read Moreही होता है | कितनी-कितनी चिंताएँ ,कठिनाइयाँ ,परेशानियाँ आती हैं लेकिन चल,चलाचल --- बेशकीमती लम्हों का खजाना है ये ज़िंदगी ,आना और जाना है ये ज़िंदगी | सब जानते हैं ,मैं कुछ खास तो बता नहीं रही हूँ |लेकिन बात करने का मन होता है ऐसी बातों पर जो हमें एक अनुभव देकर जाती हैं | ज़िंदगी की सदा एक
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उजाले की ओर ---संस्मरण
उजाले की ओर --संस्मरण ------------------------ नमस्कार मेरे स्नेही मित्रो एक पल हवा के झौंके सी ज़िंदगी ,हर पल अहं का बोध करती ज़िंदगी | कभी हरे-भरे पत्तों से कुनमुनी धूप सी छनकर आती ज़िंदगी ! कभी सौंधी सुगंध सी ...Read More,बल खाती ज़िंदगी ----अरे भई ! हज़ारों रूप हैं इस एक ज़िंदगी नामक मज़ाक के ! हाँ जी कभी मज़ाक भी तो लगती है ज़िंदगी ,कभी हास लगती है और कभी परिहास भी ! समय दिखाई नहीं देता लेकिन दिखा बहुत कुछ देता है ,ज़िंदगी ही तो है जो सपने सी दिखती है ,बनती - बिगड़ती है फिर ग्राफ़ न
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उजाले की ओर --संस्मरण
स्नेही मित्रो नमस्कार आशा है सब प्रसन्न ,मंगलमय हैं | कभी-कभी हम जैसे नौसीखियों से बड़ी गड़बड़ी हो जाती है | एक तो टाइप करना तक नहीं आता था ,आता क्या नहीं था ,हमारे ज़माने में सिखाया ही नहीं ...Read Moreथा | तो बताइए ,क्या करते भला ? एक और भी बात थी ,बड़ी अंतरंग ---- पढ़ाई का शौक किसे था ! वो बात और है कि माँ वीणापाणि को हमारे नाम के आगे डॉ.सजवाना था| वैसे ,आज का जो माहौल है उसे देख-जानकर तो ऐसा लगता है ,बेकार ही मज़दूर बनकर हम जैसों ने घर -बाहर,बच्चे -गृहस्थी संभालते हुए
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उजाले की ओर ---संस्मरण
उजाले की ओर ---संस्मरण ----------------------- नमस्कार मित्रो ज़िंदगी के सफ़र में गुज़र जाते हैं जो मकाम ,वे फिर कभी वापिस लौटकर नहीं आते | बात तो यह सभी जानते हैं लेकिन सम्झना नहीं चाहते | किसी की खुशी या ...Read Moreमें शामिल होने पर हम उस पर अहसान नहीं करते बल्कि यह हमारी खुशी होती है जिसे हम बांटते हैं | अभी पिछले दिनों एक बात से मेरा मन बहुत दुखी हुआ | वर्षों से पहचान है ।मैं पति-पत्नी दोनों की दीदी हूँ | कोई भी बात होती है ,समाया होती है वे मुझसे सलाह लेते हैं | स्वाभाविक होता
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उजाले की ओर ---संस्मरण
उजाले की ओर---संस्मरण ----------------------- सभी मित्रों को स्नेहिल नमस्कार कई बार बड़े अजीब से सवाल हमारे सामने आ खड़े होते हैं और हमें आश्चर्य के साथ पीड़ा भी देते हैं | सबसे पहला प्रश्न तो यह उठता है कि ...Read Moreमनुष्य मनुष्य में कैसे इतना भेदभाव कर सकते हैं ? कोई सुंदर है अथवा असुंदर मनुष्य तो है ,उसको भी तन और मन से उतनी ही पीड़ा होती है जितनी कि हमें | हम भूल ही जाते हैं और हमें केवल अपनी ही पीड़ा दिखाई देती है | मित्रों ! कुछ बातें तो हमें सोचनी ही होंगी | मेरे मन
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उजाले की ओर--संस्मरण
उजाले की ओर --संस्मरण ------------------------- सुभोर स्नेही मित्रों ज़िंदगी हर किसी के लिए कुछ न कुछ ऐसा लेकर आती है जिससे हम बहुत कुछ सीख लेते हैं | आज का ट्रेंड देखते हुए ऐसा लगता है कि भाई ! ...Read Moreकिया जाय जब हमें सहूलियत ही नहीं मिली | यह एक कारण हो सकता है किन्तु इसके अतिरिक्त और कारण यह भी हो सकते हैं कि सहूलियत न मिल पाने पर भी लोग कितनी प्रगति करते हैं और समाज के सामने प्रेरणा बन जाते हैं | अब इस उम्र में हम अपने भूत में पीछे तो लौट नहीं सकते किन्तु
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उजाले की ओर--संस्मरण
एक अविस्मरणीय पर्यावरण दिवस ---------------------------------------- नमस्कार स्नेही मित्रों आज आप सबसे अपने जीवन का हाल का ही एक ऐसा दिन साझा करना चाहती हूँ जो मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण रहा | आशा है, अप सब भी मेरे ...Read Moreइसको जानकार, पढ़कर आनंदित होंगे | यह रिपोर्ट है, स्नेही मित्र इसे पढ़कर आनंद लें | पुस्तक विमोचन के कार्यक्रम हर दिन होते हैं लेकिन दिनांक 5 जून का एक ऐसा दिन था जो सदा अविस्मरणीय रहेगा | कार्यक्रम था 75 वर्ष अपनी आज़ादी का महोत्सव, विश्व पर्यावरण दिवस, प्रख्यात साहित्यकार डॉ.प्रणव भारती के 75वें दिवस
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उजाले की ओर--संस्मरण
------------------ मित्रों ! सस्नेह नमस्कार ! हम सब जानते और मानते हैं कि जीवन चंद दिनों का फिर भी ऐसे जीते हैं जैसे हम अमर हैं | सच्ची बात तो यह है कि हम अमर हो सकते ...Read Moreलेकिन शरीर से तो नहीं ---हाँ, अपने व्यवहार से, प्यार से, स्नेह से, सरोकार से ! और कुछ है ही कहाँ इंसान के बस में | कई लोगों को देखकर दुख होता है, जो पास में है उसे जीने के स्थान पर जब हम उसकी याद में घुले जाते हैं जो पास नहीं है अथवा जिसके पास होने
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उजाले की ओर –संस्मरण
उजाले की ओर –संस्मरण -------------------------- मित्रों ! सस्नेह नमस्कार ! हम सब जानते और मानते हैं कि जीवन चंद दिनों का फिर भी ऐसे जीते हैं जैसे हम अमर हैं | सच्ची बात तो यह है कि हम ...Read Moreहो सकते हैं लेकिन शरीर से तो नहीं ---हाँ,अपने व्यवहार से ,प्यार से ,स्नेह से ,सरोकार से ! और कुछ है ही कहाँ इंसान के बस में | कई लोगों को देखकर दुख होता है ,जो पास में है उसे जीने के स्थान पर जब हम उसकी याद में घुले जाते हैं जो पास नहीं है अथवा जिसके पास
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उजाले की ओर –संस्मरण
मित्रों सस्नेह नमस्कार 'उजाले की ओर' में आज किसी के द्वारा सुनाई गई एक कहानी प्रस्तुत कर रही हूँ | आशा है ,आप लोग पसंद करेंगे | एक बार जब अकबर ने एक ब्राह्मण को दयनीय हालत में भिक्षाटन ...Read Moreदेखा तो बीरबल की ओर व्यंग्य कसकर बोला - 'बीरबल! ये हैं तुम्हारे ब्राह्मण! जिन्हें ब्रह्म देवता के रुप में जाना जाता है। ये तो भिखारी है'। बीरबल ने उस समय तो कुछ नहीं कहा। लेकिन जब अकबर महल में चला गया तो बीरबल वापिस आये और ब्राह्मण से पूछा कि वह भिक्षाटन क्यों करता है' ? ब्राह्मण ने कहा
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उजाले की ओर –संस्मरण
इस संसार का हर इंसान इस ‘क्यू’ में खड़ा साँसें ले रहा है | वह जग रहा है, वह सो रहा है |वह भाग रहा है, वह रूक रहा है, वह थम रहा है-जम रहा है---- लेकिन जिजीविषा की ...Read Moreसबके भीतर है | इसीलिए वह ज़िंदाहै | साँसें कुछ सवाल पूछती हैं, वह कभी उत्तर दे पाता है, कभी नहीं लेकिन उसका हृदय ज़रूर धड़कता है | वह कुछ बातें आत्मसात करता है, उन्हें अपने सलीके से कहने की कोशिश करता है | हाँ, वह ज़िंदा रहता है, यह विभिन्न प्रकार की जिजीविषा ही उसे ज़िंदा रखती है |
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उजाले की ओर ---संस्मरण
स्नेही साथियों नमस्कार कैसी-कैसी राहों पर होकर गुजरता है जीवन ! जब हम क्भू सोचते हैं कि अरे ! ऐसा हुआ ? तब कभी विश्वास होता भी है तब भी कभी हम विचलित हो जाते हैं | ...Read Moreचाहे खुद के साथ हो अथवा अपने किसी परिचित के साथ ,सब पर ही उसका प्रभाव पड़ता है | यह बड़ा स्वाभाविकहै| दोस्तों !प्रश्न यह है कि क्या विचलित होने से कुछ होगता है ? क्या हम पिछले दिनों में जाकर फिर से कुछ कर सकते हैं ? क्या हम पैनिक होकर कुछ सकारात्मक हो सकते हैं ? नहीं
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उजाले की ओर ---संस्मरण
-------------------------------- नमस्कार स्नेही मित्रो हमारे जीवन में बहुत से ऐसे मोड़ आते हैं जो हमें सिखाकर जाते हैं | उस समय हमें वह घटना बहुत खराब लगती है | हमें महसूस होता है कि हम किसी ऎसी परिस्थिति में ...Read Moreगए हैं जो हमारा जीवन पलट देगी | कई बार हो भी जाता है ऐसा लेकिन यदि हम थोड़े से विवेक से काम लें तो परिस्थिति में बदलाव भी आ सकता है और हम उस परिस्थिति से निकल भी सकते हैं जिसने हमारे सामने परेशानी पैदा कर दी हो | यहाँ मुझे एक लेडी-कॉन्स्टेबल की कहानी याद आ रही है
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उजाले की ओर –संस्मरण
नमस्कार स्नेही मित्रो इस जीवन में ब्रह्मांड ने सबके लिए खाने-पीने की व्यवस्था की है पर इसके लिए हमें मेहनत करने की ज़रुरत होती है | हम मेहनत भी करते हैं तो कई बार हमें इतना नहीं मिल पता ...Read Moreहम बहुत अच्छी प्रकार अपना व परिवार का पेट भर सकें | मनुष्य के हाथ-पैरों के साथ, मस्तिष्क का वरदान बहुत बड़ी व कीमती बात है जिससे यदि हम अपने बारे में तो सोचें ही अपने समाज के बारे में। दूसरे लोगों के बारे में भी सोचें तो हम मानव कहलाएंगे | इसी बात का उदाहरण देते हुए मैं आपके
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उजाले की ओर –संस्मरण
नमस्कार स्नेही साथियों मनुष्य, चाहे वह पुरुष हो अथवा महिला, सबके मन में भावनाएँ, संवेदनाएँ होती हैं | सब किसी न किसी प्रकार अपने आपको प्रसन्न रखना चाहते हैं जो ज़रूरी भी है किंतु अपना अथवा अपनों का दुःख ...Read Moreयह बड़ा स्वाभाविक है कि कोई भी क्यों न हो, उसकी आँखें भर आती हैं | हमारे समाज में पुरुष को हमेशा से 'स्ट्रॉंग' कहकर उसके आँसुओं को नकारा गया है जबकि वह भी हाड़-माँस से बना है, उसके मन में भी करुणा, संवेदनशीलता होना स्वाभाविक है | उसको भी अपने आँसू बहकर खुद को सहज करने का अधिकार है
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उजाले की ओर –संस्मरण
मित्रों सस्नेह नमस्कार हमारे जीवन में अक्सर ऎसी बातें होती हैं जिनसे हम तकलीफ़ में आ जाते हैं | मध्यम वर्गीय आदमी के लिए आज जीवन चलाना कठिन है, यह बात सौ प्रतिशत सही है | हम सभी इस ...Read Moreसे परेशान हैं फिर भी प्रयास करते हैं कि हम जितना बेहतर अपने बच्चों को दे सकें, दें | मध्यम वर्गीय परिवार अपना पेट काटकर ही बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ा सकता है | मतलब कहीं न कहीं तो माँ-बाप को अपने ऊपर कोताही करनी पड़ती है | एक घर बना लेने से, एक गाड़ी खरीदने से, घर के
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उजाले की ओर –संस्मरण
मित्रो ! सस्नेह नमस्कार कई बार जीवन में ऐसी बातें हो जाती हैं जो हम सोच भी नहीं पाते लेकिन जब वे बातें, घटनाएँ जीवन में घटित होती हैं तब मन पीड़ित होता है और हम सोचने के लिए ...Read Moreहो जाते हैं कि आखिर समाज में इस प्रकार की घटनाएँ, विसंगतियाँ क्यों होती हैं ? छोटी सी ज़िंदगी में हम न जाने कितने-कितने व्यवधान ले आते हैं | कुछ दिन पहले एक घटना के बारे में पढ़कर चित्त बहुत अशांत हुआ और सोचने के लिए बाध्य होना पड़ा कि हम कहाँ जा रहे हैं ? संबंधों की कीमत हमारे
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उजाले की ओर –संस्मरण
------------------------------ नमस्कारस्नेही मित्रों जीवन एक पहेली सजनी ,जितना सुलझाओ ये उलझे ,है रहस्यमय कितनी !मित्रों सोचें तो वृत्त में घूमते ही रह जाते हैं हम और ज़िंदगी का पटाक्षेप हो जाता है |हम सब देखते हैं कि ...Read Moreकी युवावस्था तो जैसे-तैसे कट ही जाती है किंतु जब कभी एक ऐसा समय आता है जब हमें अकेलापन भोगना पड़ता है तब हम कितना अकेलापन महसूस करने लगते हैं | ऐसा नहीं है कि युवावस्था में हम अकेलापन महसूस नहीं करते लेकिन अनुपात में यह कम ही होता है | मनुष्य का अकेलापन इस संसार में उसके लिए
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उजाले की ओर –संस्मरण
--------------- नमस्कार मेरे स्नेही मित्रो एक पल हवा के झौंके सी ज़िंदगी, हर पल अहं का बोध करती ज़िंदगी | कभी हरे-भरे पत्तों से कुनमुनी धूप सी छनकर आती ज़िंदगी ! कभी सौंधी सुगंध सी मुस्काती, बल खाती ज़िंदगी ...Read Moreभई ! हज़ारों रूप हैं इस एक ज़िंदगी नामक मज़ाक के ! हाँ जी कभी मज़ाक भी तो लगती है ज़िंदगी, कभी हास लगती है और कभी परिहास भी ! समय दिखाई नहीं देता लेकिन दिखा बहुत कुछ देता है, ज़िंदगी ही तो है जो सपने सी दिखती है, बनती - बिगड़ती है फिर ग्राफ़ न जाने कहाँ ले जाती
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उजाले की ओर –संस्मरण
स्नेही मित्रो नमस्कार आज का युग तकनीकी युग है, हमें इस तकनीक ने बहुत कुछ दिया है, इसमें कोई संशय नहीं है लेकिन यह भी उतना ही सच है कि हम जितने इसके आदी होते जा रहे हैं उतने ...Read Moreखुद से दूर होते जा रहे हैं | कम में ख़ुश रहना अब बिलकुल बंद हो गया है | सबको अपनी-अपनी चीज़ें चाहिएँ --चाहे स्कूटर, बाइक, गाड़ी हो, कम्प्यूटर हो, या कमरे ! सब अपने-अपने, हमारा कोई नहीं, कुछ नहीं --- हमने अपने ज़माने में देखा है कि हमारे रसोईघरों में माएँ अधिकतर बैठकर खाना बनातीं, नीचे बैठकर, कुछ न
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उजाले की ओर –संस्मरण
स्नेही मित्रो नमस्कार आज हम एक ऐसे युग में जी रहे हैं जहाँ मूल्यों में इतना भयंकर बदलाव आ गया है कि राजनीति शब्द से ही नकारात्मकता का आभास होने लगता है | जैसे राजनीति न हो गई कोई ...Read Moreगंदी चीज़ हो गई कि उधर आँख उठाकर देखना भी जैसे कीचड़ में पड़ने की बात हो | इतने गंदे तरीके से दूरदर्शन के भिन्न भिन्न चैनलों पर ऐसे चीख़ने चिल्लाने वाले कार्यक्रम दिखाए जाते हैं कि एक सीधा-सादा आम आदमी सचमुच बाध्य हो जाता है सोचने के लिए कि भई राजनीति जैसा खराब विषय कोई हो ही नहीं सकता
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उजाले की ओर –संस्मरण
स्नेहिल नमस्कार मित्रों कैसे हैं आप सब? आज हम बात करते हैं मुस्कान की। आप ही सोचें सुबह सुबह आपको कोई मुस्कुराता चेहरा दिखाई देता है तो मन कैसा प्रफुल्लित हो जाता है। बस यही बात है जब हम ...Read Moreप्यारी सी चीज को देखते हैं जैसे आसमान की लालिमा.. सूर्य की किरणें.. खिले हुए फूल.. ताजे पत्ते.. बारिश की कुछ बूंदे और सामने मुस्कुराता चेहरा तो जान लीजिए कि आपका सारा दिन खूबसूरत बन गया। मुस्कान बाधाओं को दूर करती है, तनावपूर्ण परिस्थितियों को आरामदायक बनाती है,हम आकर्षक दिखते हैं, हममें ऊर्जा का संचार होता है,लोग हमारे आस पास
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उजाले की ओर –संस्मरण
उजाले की ओर - - - - संस्मरण ------------------ स्नेही एवं प्रिय मित्रो नमस्कार जीवन की भूलभुलैया बड़ी ही जकड़ने वाली है, जीवन में चलते हुए हम किन्ही ऐसे मार्गों में खो जाते हैं जिनसे निकास का मार्ग ही ...Read Moreमिलता | वास्तव में यह हमारी मानसिक स्थिति पर निर्भर करता है कि ऐसे समय हम उलझन में से किस प्रकार सही मार्ग निकाल पाते हैं | बहुधा देखा यह गया है कि हम किसीके कहने में अथवा किसीकी देखा-देखी किसी ऐसे मार्ग पर चल पड़ते हैं जो हमें और भी विकट स्थिति में लाकर पटक देता है| हम भुला
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उजाले की ओर –संस्मरण
नमस्कार स्नेही मित्रों अक्सर ऐसा होता है कि हम अनावश्यक रूप में ऐसी परेशानियों में फंस जाते हैं जो हमने नहीं की होतीं लेकिन फिर भी उसमें किसी पल अविवेकी होने के कारण हम बिना बात की उस स्थिति ...Read Moreअपने ऊपर ओढ़ लेते हैं। इससे होता यह है कि हम ना चाहते हुए भी ऐसी कठिनाई में पड़ जाते हैं कि हम फँस तो जाते हैं लेकिन उसका कोई हल दिखाई नहीं देता। इसलिए हम बिना बात ही परेशान हो जाते हैं। हम सब इस बात से वाकिफ़ हैं कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है इसलिए समाज में रहकर
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उजाले की ओर –संस्मरण
उजाले की ओर------- संस्मरण --------------------- नमस्कार स्नेही मित्रों हम सब चाहते हैं कि हमारा जीवन खूब सुख में हो' हम खूब ऐश्वर्य में रहें लेकिन इससे पहले क्या हमें कुछ बातों के ऊपर ध्यान देना ज़रूरी नहीं होगा? चलिए, ...Read Moreबारे में कुछ चर्चा करते हैं। जीवन को सुखमय बनाने के लिए रिश्तों को सँभालना अति आवश्यक है। रिश्तों में विश्वास बनाए रखना इतना ही आवश्यक है जितनी अपने सिर पर छत का होना। रिश्तों का आधार प्रेम है। यह ढाई अक्षर का अक्षर इतना भारी है कि इसके पलडे़ ताउम्र यदि झुके रहें तब ज़िंदगी सदा एक खूबसूरत उत्सव
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उजाले की ओर –संस्मरण
नमस्कार स्नेही मित्रो पता ही नहीं चला जीवन कब इस कगार पर आकर खड़ा हो गया और न जाने कितने-कितने प्रश्न पूछने लगा ; "बताओ, क्या किया, ताउम्र ? पूरी उम्र ऐसे ही भटकते रहे ? खोजते रहे किसी ...Read Moreकिसी को, कभी ईश्वर को, अल्ला को ? कौन मिला ? हाँ, बस खुद को नहीं देखा, न ही जाना-पहचाना ? एक ऐसी डगर पर चलते रहे जिसका पता ही नहीं था कि किधर जाती है ? मुड़ती भी है या सीधे नाक की सीध में चलना होता है ! बस, घूमते रहे वृत्त में, यादों के दरीचों में --याद
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उजाले की ओर –संस्मरण
---------------- नमस्कार स्नेही मित्रों कहा गया है कि जिस दिन हम इस धरती पर जन्म लेते हैं, अपने लौटने का दिन निश्चित करवाकर आते हैं। वैसे तो आजकल की ज़िंदगी के बारे में कुछ पता नहीं चलता। कभी कुछ ...Read Moreहो जाता है। लेकिन यदि हमने जीवन के 50/60/70 वर्ष पार कर लिए है तो अब लौटने की तैयारी प्रारंभ करें....इससे पहले कि देर हो जाये...इससे पहले कि सब किया धरा निरर्थक हो जाये.....। लौटना क्यों है?, लौटना कहाँ है? लौटना कैसे है? इसे जानने, समझने एवं लौटने का निर्णय लेने के लिए आइये टॉलस्टाय की मशहूर कहानी आज आपके
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उजाले की ओर –संस्मरण
--- नमस्कार स्नेही मित्रो मेरे जीवन में कई लोग ऐसे हैं जिनको मैं कोशिश करके बताते हुए थक गई लेकिन प्रयासों के बावजूद भी यह नहीं सिखा पाई कि समय पर कोई भी काम करना कितना जरूरी है। हर ...Read Moreकी एक व्यवस्था होती है, हर चीज़ का एक समय होता है यदि वह उस समय में ना हो या ना की जा सके तब वह कई बार व्यर्थ हो जाती है। इसमें हमारा समय तो जाता ही है उर्जा भी नष्ट हो जाती है और हम शून्य पर खड़े हो जाते हैं। सोचते रह जाते हैं यह हमारे साथ
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उजाले की ओर –संस्मरण
स्नेही मित्रों नमस्कार जीवन के हर क्षण में कोई ना कोई बाधा या परेशानी आनी स्वाभाविक है। हम कभी भी सीधे सपाट रास्तों पर तो चल नहीं पाते। सीधी सी बात है जब हर जगह बदलाव है ...Read Moreहैं, घुमाव है तब जीवन की पटरी कैसे केवल सीधी हो सकती है? उसमें भी मोड़ आएंगे घुमाव आएंगे। बस हमें केवल अपने ऊपर ध्यान देना जरूरी है। हमें देखना है कि हमारा विश्वास कहीं मोड़ों और घुमावों के साथ कमजो़र ना पड़ जाए। जीवन एक लम्हे का नाम है या फिर एक बुलबुले का या फिर गुब्बारे का वह
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उजाले की ओर –संस्मरण
---------- मित्रों ! स्नेहपूर्ण नमस्कार जीवन की गति न्यारी मितरा ---सच, मन कितनी बार झूमता है-झूलता है, चहकता है -महकता है, रोता है-सुबकता है और फिर शिथिल होकर बैठ जाता है | यानि पूरे जीवन भर इसी ग्राफ़ में ...Read Moreहोता रहता है | कोई एक मन नहीं, इस दुनिया में जन्म लेकर अंतिम क्षण तक जीने वाले सभी मन जो पाँच तत्वों से निर्मित इस शरीर में कुलबुलाते रहते हैं | अधिक तो ज्ञान नहीं है किन्तु मन की परिभाषा कुछ ऎसी समझ में आती है कि मन अर्थात मस्तिष्क की वह क्षमता जो मनुष्य को चिंतन, स्मरण, निर्णय,
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उजाले की ओर –संस्मरण
----------------------------------- स्नेहिल नमस्कार मित्रों को आज आप सबसे एक कहानी साझा करना चाहती हूँ। आप सब महाकवि कालिदास से परिचित हैं। कालिदास बोले :- माते! पानी पिला दीजिए बड़ा पुण्य होगा। स्त्री बोली :- बेटा! मैं ...Read Moreजानती नहीं. अपना परिचय दो।मैं अवश्य पानी पिला दूंगी। कालिदास ने कहा :- मैं पथिक हूँ, कृपया पानी पिला दें। स्त्री बोली :- तुम पथिक कैसे हो सकते हो? पथिक तो केवल दो ही हैं सूर्य व चन्द्रमा, जो कभी रुकते नहीं हमेशा चलते रहते हैं। तुम इनमें से कौन हो? सत्य बताओ। कालिदास ने कहा :- मैं मेहमान हूँ, कृपया पानी पिला
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उजाले की ओर –संस्मरण
मित्रो स्नेहिल नमस्कार हम सब जानते हैं परिस्थितियाँ कभी एक सी नहीं रहतीं। उनमें बदलाव आना स्वाभाविक है, न आए तब आश्चर्य की बात है। और कभी कभी तो दोस्तों ऐसा अचानक बदलाव आ जाता है कि हम हकबक ...Read Moreजाते हैं। यानि अलग-अलग समय पर अलग-अलग बदलाव आते हैं और मज़े की बात यह कि एक ही बात का प्रभाव सब पर अलग प्रकार से पड़ता है। हम कभी एक तरीके से टूटते हैं तो कभी वैसी ही परिस्थिति से आराम से निकल जाते हैं। फिर कभी बिना किसी गलत प्रभाव के खड़े भी हो जाते हैं या नहीं
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उजाले की ओर –संस्मरण
सभी स्नेही मित्रो को नमस्कार जीवन की गति न्यारी मितरा, गुप-चुप करते बीते जीवन, मन होता है भारी मितरा। निकलना पड़ता है उस भारीपन से मित्रों क्योंकि हमें जीवन जीना है, घिसटना नहीं है। जीवन को परीक्षाओं के बिना ...Read Moreके लिए नहीं बनाया गया है और किसी भी प्रकार के दर्द से बचने के लिए अपनी जिम्मेदारियों को त्यागना, चाहे वह मानसिक हों या शारीरिक, जीने का अच्छा तरीका नहीं है। हर बार जब हम किसी समस्या का सामना करते हैं, उसके सामने युद्ध करना ज़रूरी है। हम बचपन से सुनते आते हैं कि जीवन युद्धक्षेत्र है, जब हमने
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उजाले की ओर –संस्मरण
------------------ स्नेही मित्रों आप सबको प्रणव भारती का नमन जीवन अनमोल है लेकिन हमारी कितनी ही क्रियाएँ बस गोलमगोल हैं | हम जानते हैं कि छोटा सा जीवन है, जैसे-जैसे उम्र के दौर गुज़रते रहते हैं हमें यह संवेदना ...Read Moreगहराई से कचोटने लगती है कि हमारा जीवन कम होता जा रहा है | हमारे संगी-साथी शनै:शनै: साथ छोड़ने लगते हैं और सदा के लिए गुम हो जाते हैं | ऐसे समय में हममें कुछ समय का वैराग्य उत्पन्न होने लगता है किन्तु कुछ समय पश्चात वही ढ़ाक के तीन पात !? कभी-कभी हम जान-बूझकर सही-गलत का निर्णय नहीं ले
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उजाले की ओर –संस्मरण
---------------------------------- स्नेही एवं प्रिय मित्रों नमस्कार, प्रणाम, नमन जीवन की इस गोधूलि में कितनी ही बातें लौट-फिरकर धूल भरे पृष्ठों को झाड़ती-पोंछती सी मन के द्वार खोलकर झाँकने लगती हैं । आपके मन के द्वार की झिर्रियों से भी ...Read Moreझाँकती ही होंगी, यह मानव-स्वभाव है । इसमें कुछ न तो नया है और न ही असंभव ! हमारे मन में न जाने कितने कोने हैं और किसी न किसी कोने में कुछ न कुछ दबा-पड़ा रहता है, वह कभी भी किसी ज़रा सी ठसक से हमारे समक्ष आ खड़ा होता है और हमें यह सीखना पड़ता है बल्कि यह
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उजाले की ओर –संस्मरण
सुप्रभात आ. एवं स्नेहिल मित्रो ! आप सबको प्रणव भारती का नमन एक बार एक पिता अपने सत्रह वर्षीय बेटे को किसी संत के पास लेकर गया |उसने संत से प्रार्थना की ; “महाराज ! मेरे बेटे को ज्ञान ...Read More,कृपया इसे बताइए कि यह जब तक शिक्षा में अपना मन नहीं लगाएगा,अच्छी बातें नहीं सीखेगा,सबसे प्रेम पूर्वक व्यवहार नहीं करेगा तब तक इसका जीवन उत्कृष्ट कैसे हो सकेगा ?” संत ने कुछ विचार किया फिर पूछा ; “आपके घर का वातावरण कैसा है ?” “अर्थात्---” बच्चे का पिता असमंजस में पड़ गया,आखिर संत उससे क्या पूछना चाहते हैं ?
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उजाले की ओर –संस्मरण
स्नेही मित्रों को स्नेहमय नमस्कार नववर्ष में नव कामना, नव अर्चना, नव साधना नाव चिंतन, नव आलोकन, नव आलोड़न ---?? हर बार आता है, साल जाता है, बताएँ तो क्या बदल पाता है ? नहीं दोस्तों, मैं कोई नकारात्मक ...Read Moreनहीं कर रही हूँ मैं तो अपने आपको आईना दिखाने की एक छोटी सी कोशिश भर कर रही हूँ भई, कहते हैं न किसी भी बात की शुरुआत खुद से करो, बस --वही तो -- मुझे तो लगता है ये गाना, बजाना, मस्ती केवल एक ही दिन क्यों ? वो भी नए साल की प्रतीक्षा में ! रात
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उजाले की ओर –संस्मरण
स्नेही मित्रों ! सादर, सस्नेह सुप्रभात जीवन की धमाचौकड़ी पूरे जीवन भर चलती रहती है हम नाचते रहते हैं कठपुतली के समान इधर से उधर, उधर से इधर जीवन में कुछ न कुछ ऊँचा-नीचा होता ...Read Moreरहता है हम कब कुछ ग़लत कर बैठते हैं हमें इसका आभास भी नहीं होता, होता तब है जब हम अपने किए हुए का परिणाम देखते हैं स्वाभाविक है, बबूल का पेड़ बोने से हमें स्वादिष्ट आम का आनन्द तो प्राप्त हो नहीं सकता किन्तु हमें यह पता ही नहीं चलता कि हमने आखिर यह बबूल का पेड़ कब बो
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उजाले की ओर –संस्मरण
मित्रोंसस्नेह नमस्कार आशा है आप सब प्रसन्न वह आनंदित होंगे। जीवन एक बहुत बड़ी भूल भुलैया है। कभी-कभी यह हमें इतनी सफ़लता की ओर ले जाता है जो हमने कभी सोचा ही नहीं होता, कभी यह हमें इतना नीचे ...Read Moreदेता है जो भी हमने सोचा नहीं होता। सवाल इस बात का है कि आखिर यह सब होता कैसे है? सीधी सी बात है यह सब हमारे अपने करने से होता है। कभी-कभी हम आनंद में इतने अच्छे काम कर जाते हैं जिसके परिणाम बहुत अच्छे होते हैं यानि हमें यह याद भी नहीं होता कि हमने यह कब किया
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