UJALE KI OR by Pranava Bharti | Read Hindi Best Novels and Download PDF Home Novels Hindi Novels उजाले की ओर - Novels Novels उजाले की ओर - Novels by Pranava Bharti in Hindi Motivational Stories (127) 14.4k 40.1k 18 मित्रों ! प्रणाम जीवन की गति बहुत अदभुत है | कोई नहीं जानता कब? कहाँ?क्यों? हमारा जीवन अचानक ही बदल जाता है ,कुछ खो जाता है ,कुछ तिरोहित हो जाता है |हम एक आशा की प्रतीक्षा में खड़े रह ...Read Moreहैं और हाथ मलते रह जाते हैं | ईश्वर प्रत्येक मन में विराजता है ,उसने सबको एक सी ही संवेदनाएँ प्रदान की हैं |प्रत्येक प्राणी के मन में प्रेम,ईर्ष्या,अहंकार करुणा जैसी संवेदनाओं को प्रतिष्ठित किया है |वह चाहे कोई भी जीव-जन्तु हो अथवा मनुष्य ईश्वर ने तो सबको एक समान ही निर्मित किया है | उसने Read Full Story Download on Mobile New Episodes : Every Sunday उजाले की ओर (16) 4k 5.5k 1-उजाले की ओर ----------------- मित्रों ! प्रणाम जीवन की गति बहुत अदभुत है | कोई नहीं जानता कब? कहाँ?क्यों? हमारा जीवन अचानक ही बदल जाता है ,कुछ खो जाता है ,कुछ तिरोहित हो जाता है |हम एक आशा की ...Read Moreमें खड़े रह जाते हैं और हाथ मलते रह जाते हैं | ईश्वर प्रत्येक मन में विराजता है ,उसने सबको एक सी ही संवेदनाएँ प्रदान की हैं |प्रत्येक प्राणी के मन में प्रेम,ईर्ष्या,अहंकार करुणा जैसी संवेदनाओं को प्रतिष्ठित किया है |वह चाहे कोई भी जीव-जन्तु हो अथवा मनुष्य ईश्वर ने तो सबको एक समान ही निर्मित किया है | उसने Read उजाले की ओर - 2 1.8k 3k उजाले की ओर-2 ----------------- बात शुरू करती हूँ इस अजीबोग़रीबसमय से जिसे न किसी ने आज तक देखा ,न सुना ,न जाना ,न पहचाना --बस ,एक साथ ही जैसे प्रकृति का आक्रोश पूरे विश्व पर आ ...Read More| गाज गिर गई जैसे --- आज प्रकृति ने सोचने को विवश कर दिया कि भाई ,मत इतराओ,मत एक-दूसरेपर लांछन लगाओ| मैं पूरी सृष्टि की माँ हूँ ,यदि सम्मान नहीं करोगे तो कभी न कभी ,किसी न किसी रूप में मैं तुम्हें सिखाऊंगी तो हूँ ही कि सम्मान किसे कहते हैं ? और यह कितना ज़रूरी है | Read उजाले की ओर - 3 1k 2k उजाले की ओर -- 3 ------------------ स्नेही एवं प्रिय मित्रों सभीको मेरा नमन यह संसार एक बहती नदिया है जिसमें सभीको हिचकोले खाने हैं ,कोई तैर जाता है तो कोई लहरों से टकराता रहता है ,कोई ...Read Moreभी जाता है |किन्तु डूबने के भय से हम तैरना तो नहीं छोड़ सकते ! हमें अपने –अपने कर्मों के अनुसार कार्यरत रहना ही होता है,जीवन के समुद्र में तैरना ही होता है | जीवन की इस यात्रा में न जाने कितने ऊबड़-खाबड़ मार्ग आते हैं ,सदा सीधा ही मार्ग हो ऐसा जीवन में कहाँ होता है? जब हम Read उजाले की ओर - 4 768 2.1k उजाले की ओर--4 ------------------ आ. स्नेही व प्रिय मित्रों नमस्कार हम मनुष्य हैं ,एक समाज में रहने वाले वे चिन्तनशील प्राणी जिनको ईश्वर ने न जाने कितने-कितने शुभाशीषों से नवाज़ा है ! इस विशाल विश्व ...Read Moreन जाने कितने समाज हैं जिनकी अपनी-अपनी परंपराएँ,रीति-रिवाज़,बोलियाँ,वे श-भूषा हैं किन्तु फिर भी एक चीज़ ऎसी है जिससे सभी एक-दूसरे से जुड़े हैं और वह है संवेदना ! कभी-कभी हम न एक-दूसरे से परिचित होते हैं ,न ही हमने एक–दूसरे को कभी देखा होता है किन्तु ऐसा लगता है कि हम एक-दूसरे से वर्षों से परिचित हैं|यही संवेदनशीलता हमें मनुष्य Read उजाले की ओर - 5 567 1.9k उजाले की ओर-5 ---------------- आ.व स्नेही मित्रो नमस्कार बहुत सी बार लोगों को लगता है कि अधिक बहस न करने वाला तथा बात को चुप्पी में दबाकर रखने वाला मनुष्य सरल,सहज नहीं मूर्ख होता है ...Read Moreमित्रो !यह बात सही है क्या?मुझे लगता है कि वह सरल,सहज होता है किन्तु संवेदनशील होने के कारण किसीको ग़लत बातों से नहीं नवाज़ता| वह सब समझते हुए भी चुप्पी को ही ढाल बना लेता है | वह सोचता है कि यदि मूर्ख बने रहना शांति बनाए रखने में सहायक होता है तो मूर्ख बने रहने में ही सबका लाभ Read उजाले की ओर - 6 501 1.4k उजाले की ओर--6 ----------------- प्रिय एवं स्नेही मित्रों सस्नेह नमस्कार मनुष्य के स्वभाव में अन्य अनेक शक्तियों के साथ ही एक भरोसा करने की शक्ति भी निहित है |वह कई बार अपने से जुड़े हुओं पर बहुत अधिक ...Read Moreकर बैठता है ,विश्वास कर बैठता है किन्तु जब कभी उसके विश्वास को ठेस लगती है तब वह बिखरने की स्थिति में हो जाता है और इसीलिए जब कभी उसे काँटा चुभता है और वह बेदम होने लगता है तब दूसरी बार वह भरोसा करने से भयभीत होने लगता है ,हिचकिचाने लगता है |जब मनुष्य किसी व्यक्ति अथवा वस्तु को Read उजाले की ओर - 7 432 1.5k उजाले की ओर--7 --------------- आ. स्नेही व प्रिय मित्रों नमस्कार इस छोटी सी ज़िंदगी में न जाने कितने किरदार ऐसे मिल जाते हैं जो हमारी ज़िंदगी का भाग बन जाते हैं| कुछ ऐसे लोग ...Read Moreहैं जो अपने गुणों के कारण हमारे मनो-मस्तिष्क पर एक सकारात्मक गहरी छाप छोड़ जाते हैं तो कुछ ऐसे भी होते हैं जो अपने ग़लत व्यवहार के कारण एक नकारात्मक छाप छोड़कर जाते हैं और हमारे जीवन में सदा के लिए एक नकारात्मकता को जन्म दे जाते हैं | यह बिलकुल सत्य है कि मनुष्य के ऊपर अच्छी चीजों Read उजाले की ओर - 8 360 1k उजाले की ओर--8 --------------------- आ. स्नेही एवं प्रिय मित्रों नमन ज़िंदगी की राहों में अनगिनत फूल खिलते हैं,साथ ही काँटे भी|हम मनुष्य बहुधा इस गफलत में फँस जाते हैं | हम फूल तो चुन लेते ...Read Moreकिन्तु काँटों की चुभन को सह पाना हमारे लिए कठिन हो जाता है|जिस प्रकार से रात-दिन,अँधियारा-उजियारा है उसी प्रकार से यह प्रसन्नता व पीड़ा भी है|इससे कोई भी नहीं बच सका है|किसी भी मनुष्य का जीवन एक सपाट मार्ग पर नहीं चल सकता,उसे सपाट मार्ग के साथ ऊबड़-खाबड़ मार्ग पर भी चलना ही होता है| प्रश्न यह उठता Read उजाले की ओर - 9 363 1.1k उजाले की ओर--9 ------------------ स्नेही मित्रो भाषण देना जितना सरल है उसका निर्वाह करना उतना ही कठिन ! ज़िन्दगी हिचकोलों में डूबती-उतरती हुई हमें अपनी ही सोच पर चिंतन करने के लिए बाध्य करती है | वास्तव ...Read Moreज़िंदगी है क्या? चार दिन की चाँदनी ? सत्य है न ?लेकिन इसी चाँदनी को पीना पड़ता है,इसीमें नहाना पड़ता है ,इसीके साथ जीना पड़ता है |फिर चाँदनी सूर्य के तेज़ में परिवर्तित हो जाती है इसमें भी मनुष्य को रहना पड़ता है,जीना पड़ता है |तात्पर्य है कि कोई भी परिस्थिति क्यों न हो ,दिन हो अथवा रात हो ,मनुष्य Read उजाले की ओर - 10 333 1.2k उजाले की ओर --10 ------------------------ आ.एवं स्नेही मित्रो नमस्कार एक नवीन दिवस का आरंभ ,एक नवीन चिंतन का उदय हमें परमपिता को प्रत्येक पल धन्यवाद अर्पित करने का अवसर प्रदान करता है |हम करते भी हैं ,कितना ...Read Moreप्रदान किया है उसने जिसने ज़िन्दगी जैसी अनमोल यात्रा का अनुभव कराया है |लेकिन हम कहीं न कहीं चूक जाते हैं ,हम अपने वर्तमान में रहकर भी वर्तमान में नहीं रह पाते |हम वर्तमान में रहकर भी न जाने कहाँ कहाँ भटकते रहते हैं |यह मस्तिष्क का स्वभाव है ,वह कभी शांत तथा स्थिर नहीं रह पाता | जीवन में Read उजाले की ओर - 11 285 1.1k उजाले की ओर--11 --------------------------- स्नेही मित्रो आप सबको नमन जीवन की आपाधापी कभी कभी हमें इतना निराश कर देती है कि हम उसमें उलझकर रह जाते हैं हम ईश्वर के द्वारा प्रदत्त ...Read Moreशुभाशीषों को भी अनुभव नहीं कर पाते त्रुटियाँ मनुष्य से होना स्वाभाविक है जिनके लिए ईश्वर हमें अवसर भी प्रदान करता है कि हम उनमें सुधार कर सकें किन्तु हम उन्हें सुधारने की अपेक्षा उन्हें और भी अधिक जटिल बना देते हैं एवं अनेकों उतार-चढावों में भटकते रह जाते हैं जीवन के ये उतार-चढ़ाव हमें किसी न किसी पर दोष Read उजाले की ओर - 12 318 1.1k उजाले की ओर --12 ------------------------ स्नेही मित्रो नमस्कार प्रभातकालीन बेला,पक्षियों का चहचहाना ,पुष्पों का खिलखिलाना फिर भी मानव मन का उदास हो जाना बड़ी कष्टदायक स्थिति उपस्थित कर देता है | हम यह भूल ही जाते ...Read Moreकि प्रकृति हमारे लिए है और हम प्रकृति के लिए |क्या प्रभु प्रतिदिन विभिन्न उपहार लेकर हमें प्रसन्न करने नहीं आते ? कभी सूर्य की उर्जा के रूप में तो कभी प्राणदायी वायु के रूप में ,कभी वर्षा की गुनगुनाती तरन्नुम लेकर तो कभी चंदा,तारों की लुभावनी तस्वीर लेकर| प्रकृति के तत्वों से बना यह शरीर जब अपनी मानसिक Read उजाले की ओर - 13 258 966 उजाले की ओर--12 -------------------- प्रिय एवं स्नेही मित्रो आप सबको नमन आज एक कहानी याद आ रही है | सोचा ,आपसे साँझा की जाए |एक बहुत समृद्ध मनुष्य था जिसने बहुत श्रम से यत्नपूर्वक अपने आपको बहुत ...Read Moreउद्योगपति के रूप में स्थापित किया था |उसका नाम शहर के सर्वश्रेष्ठ अमीरों में गिना जाने लगा |अपने श्रम व बुद्धि से एकत्रित की जाने वाली संपत्ति को वह बहुत सोच समझकर व्यय करता |उसकी इच्छा होती कि वह उन लोगों की सहायता कर सके जो वास्तव में ज़रूरतमंद हैं | लेकिन यह सदा होता आया है कि पिता Read उजाले की ओर - 14 291 1.1k उजाले की ओर --13 --------------------- आ.स्नेही एवं प्रिय मित्रो मन न जाने कहाँ कहाँ पंछी की भांति उड़कर पुन: मन की भीतरी न जाने कौनसी शाख़ पर आ बैठता है |शाख़ का ही पता नहीं चलता ...Read Moreहै जिस पर मन जा बैठता है कि उसे पकड़कर तुरत लाया जा सके |मुझे लगता है हमारे मन के वृक्ष में न जाने कितनी अनगिनत शाखाएं हैं जिन पर मन का पंछी उड़-उड़कर जा बैठता है ,उसे पकड़ने का प्रयास करो तो हाथ ही नहीं आता ,वह तो कहीं और जा बिराजता है |खैर छोड़ें ,हम जानते भी तो Read उजाले की ओर - 15 291 1.1k उजाले की ओर --13 --------------------------- आ.स्नेही एवं प्रिय मित्रो सादर,सस्नेह नमन कई बार मन सोचता है कि हम आखिर हैं क्या?जीवन में उगे हुए ऐसे फूल जो शीघ्र ही मुरझा जाते हैं |किसी छोटी सी विपत्ति के आ ...Read Moreपर हम कुम्हला जाते हैं ,टूटने लगते हैं ,बिखर जाते हैं |वास्तव में यदि दृष्टि उठाकर अपने चारों ओर देखें तो पाएंगे कि हमारे चारों ओर लोग कितनी परेशानियों से घिरे हैं|जब हम उनकी परेशानियों को देखते हैं तब हम ऊपर वाले के प्रति कृतज्ञ होते हैं ,उसका धन्यवाद अर्पण करते हैं कि उसने तो हमें कितना कुछ दिया है Read उजाले की ओर --16 195 555 ----------------------- आ,स्नेही व प्रिय मित्रो ताने-बानों से घिरी ज़िन्दगी में चंद क्षण सुकून के मिल जाएं तो बहुत बड़ी बात होती है |वरना आजकल की ज़िंदगी न जाने कितने-कितने झंझावातों से घिरी रहती है |एक ...Read Moreका समाधान तो पूरी तरह प्राप्त हुआ नहीं कि दूसरी मुह बाए खड़ी हो जाती है |कुछ तो प्राकृतिक आपदाएं ही मनुष्य के जीवन में उसे जीने नहीं देतीं और कुछ वह स्वयं ही आपदाओं को गले लगाता रहता है |आज मनुष्य ने पेड़ काट-काटकर अपने लिए एक बड़ी समस्या खड़ी कर ली है |इसीलिए शनै:शनै: पूरे संसार का Read उजाले की ओर - 17 204 930 ------------------------ आ. स्नेही एवं प्रिय मित्रों नमस्कार हम उलझे रहे अच्छे-बुरे में तथा कम-अधिक और भी न जाने कितनी –कितनी आज की समसामयिक समस्याओं को ओढ़े घूमते रहे | किन्तु इन ...Read Moreऊपर आज जब अचानक ही मुझे अपनी एक मित्र का लेख प्राप्त हुआ मैं चौंक गई |हमने आज तक जिस विषय पर सोचा तक न था ,उन्होंने उस विषय पर शोध करके लेख के माध्यम से जहाँ तक हो सके इस गंभीर समस्या को उठाने का प्रयत्न किया था | उनसे बात करने के बाद मुझे लगा था कि महिलाओं Read उजाले की ओर - 19 321 1.5k ------------------------ आ,स्नेही एवं प्रिय मित्रो सादर ,स्नेह नमस्कार लीजिए आ गया एक और नया दिन ...पता ही नहीं चलता कब सात दिन उडनछू हो जाते हैं और ऐसे ही माह,वर्ष और फिर पूरी ...Read More! जैसे पल भर में पवन न जाने कहाँ से कहाँ पहुंच जाती है हम पलक झपकते ही रह जाते हैं और समय ये गया-–--वो गया पीछे मुड़कर एक बार देखता भी नहीं है यह समय!कभी कभी तो लगता है ‘कितना निष्ठुर है न समय !’हम उसके पीछे दौड़ते हैं,पुकारते हैं किन्तु उसे हाथ नहीं आना है सो वह Read उजाले की ओर - 20 156 735 ----------------------- आ. एवं स्नेही मित्रो नमस्कार हमारी दुनिया में अनन्य प्रकार के जीव हैं जिनका आकार-प्रकार भिन्न है,रहन-सहन भिन्न है किसी भी प्राणी का बिलकुल एक जैसा व्यवहार व शक्लोसूरत नहीं है कुछ ऎसी मान्यता भी है ...Read Moreदुनिया में कुछ लोगों की शक्लोसूरत एक सी होती है ,कभी-कभी इसके प्रमाण देखने में भी आते हैं किन्तु उनमें भी कहीं न कहीं,कोई न कोई थोड़ी-बहुत असमानता तो अवश्य होती ही है चाहे वह सूरत में हो अथवा व्यवहार में ! मनुष्य एक सचेत प्राणी है,उसमें चिंतनशीलता का गुण प्रमुख है ,वह अपने कार्यों को सोच-समझकर कर सकता Read उजाले की ओर - 21 189 849 उजाले की ओर ------------------- आ.स्नेही एवं प्रिय मित्रो नमस्कार प्रतिदिन घर के मुख्य द्वार पर खटखट होती है कोई निश्चित समय नहीं ,सुबह-सवेरे ,दोपहर अथवा शाम व कभी कभी रात को भी लगभग दस बजे ...Read More न जाने कोई कुरियर हो,कोई मिलने आया हो अथवा कोई किसी महत्वपूर्ण कार्य से आया हो अत: उठकर तो जाना ही पड़ता है दिन में दो-चार बार तो कम से कम ऐसे लोग होते ही हैं जो मन का पूरा स्वाद कसैला कर जाते हैं वे आपके व हमारे सभी के द्वार पर पहुँच जाते हैं आजकल फ़्लैट बनने लगे Read उजाले की ओर - 22 147 1.2k उजाले की ओर -------------- आ. एवं स्नेही मित्रो नमस्कार आजकल गायों के बारे में बहुत संवेदनशील हो गए हैं लोग ! गाय माता है दूध देकर हमारा पोषण करती है,उनको किस प्रकार बचाया जाय ? अनेकों ...Read More,अनेकों चर्चाएँ ,अनेकों बहस !लेकिन परिणाम ?? गाय को कोई आज ही माता का नाम नहीं दिया गया है ,गाय को माता प्रारंभ से ही पुकारा जाता रहा है और इसका कारण भी है कि दूध देकर यह हमारे शिशुओं को बड़ा करती है,गाय से जुड़ी अनेकों पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं , हम भारतीय गाय को पूज्य मानते रहे Read उजाले की ओर - 18 240 984 उजाले की ओर ------------------- स्नेही मित्रों नई सुबह का सुखद नमन इस गतवर्ष को 'बाय' करते हुए मन न जाने कितनी-कितनी बातों में उलझा हुआ है पूरे विश्व में एक अजीब सा भय फैलाने ...Read Moreइस बीते वर्ष ने बहुत सी बातें सोचने के लिए मज़बूर कर दिया है ज़रुरी भी है कि हम अपनी कार्य-प्रणाली पर ध्यान दें और यदि कुछ नहीं कर सकते तो कम से कम अपने लिए व अपनों से जुड़ों के लिए एक सुरक्षा-कवच अवश्य बनाने की चेष्टा करें नव-वर्ष बाध्य करता है सोचने के लिए कि गत Read उजाले की ओर - 23 180 1.3k उजाले की ओर --------------------- आ. एवं स्नेही मित्रों ! सादर ,सस्नेह सुप्रभात जीवन की धमाचौकड़ी पूरे जीवन भर चलती रहती है|हम नाचते रहते हैं कठपुतली के समान इधर से उधर ,उधर से इधर |जीवन में कुछ न ...Read Moreऊँचा-नीचा होता ही रहता है |हम कब कुछ ग़लत कर बैठते हैं हमें इसका आभास भी नहीं होता,होता तब है जब हम अपने किए हुए का परिणाम देखते हैं |स्वाभाविक है, बबूल का पेड़ बोने से हमें स्वादिष्ट आम का आनन्द तो प्राप्त हो नहीं सकता किन्तु हमें यह पता ही नहीं चलता कि हमने आखिर यह बबूल का पेड़ Read उजाले की ओर - 24 132 774 उजाले की ओर ------------------- स्नेही व प्रिय मित्रो प्रणव भारती का सादर ,सस्नेह वन्दन घटना वर्षों पूर्व की है किन्तु कभी-कभी लगता है मानो आज और अभी मेरे नेत्रों के समक्ष चित्रित हुई हो |मेरे दोनों बच्चे ...Read Moreछोटे थे ,यही कोई चार-पाँच वर्ष के |मैं उन दिनों अपनी एम.ए अंग्रेज़ी की परीक्षा में सम्मिलित होने माँ के पास गई हुई थी |एम.ए का आखिरी ‘सिमेस्टर’ था और विवाह हो जाने के कारण मेरा वह सिमेस्टर छूट गया था |किसी प्रकार विश्वविद्यालय से आज्ञा मिली और मैं अपना एम.ए पूरा करने के लिए पढ़ाई में जुट गई | Read उजाले की ओर - 25 141 624 उजाले की ओर ------------------ " समीर ! सॉरी तुम्हें तकलीफ़ दे रही हूँ ,मुझे दूध लेना है ,कोई दुकान दिखाई दे --तो " विभा ने झिझकते हुए समीर से कहा ,बेचारे एक तो ये युवा लड़के उसे ढोकर ...Read Moreजाते हैं ऊपर से अपने घर के काम भी वह इस तरह रुककर करने लगे तो ---ठीक तो नहीं है न ! बिटिया बड़ी नाराज़ होती है उसकी इस तरह की बातों पर लेकिन उसको कहीं कुछ बुरा नहीं लगता | हाँ,वह यह ज़रूर समझने की कोशिश करती है कि अगले को कोई ऐसा काम तो नहीं कि उसके Read उजाले की ओर - 26 123 552 उजाले की ओर ------------------- आ.,स्नेही एवं प्रिय मित्रों आप सबको प्रणव भारती का नमन जीवन अनमोल है लेकिन हमारी कितनी ही क्रियाएँ बस गोलमगोल हैं |हम जानते हैं कि छोटा सा जीवन है,जैसे-जैसे उम्र के दौर गुज़रते ...Read Moreहैं हमें यह संवेदना बहुत गहराई से कचोटने लगती है कि हमारा जीवन कम होता जा रहा है |हमारे संगी-साथी शनै:शनै: साथ छोड़ने लगते हैं और सदा के लिए गुम हो जाते हैं |ऐसे समय में हममें कुछ समय का वैराग्य उत्पन्न होने लगता है किन्तु कुछ समय पश्चात वही ढ़ाक के तीन पात ! कभी-कभी हम जान-बूझकर सही-गलत Read उजाले की ओर - 27 168 843 उजाले की ओर ------------------ आ. स्नेही व प्रिय मित्रो ! सस्नेह सुप्रभात शीत का मौसम ! ठंडी पवन के झकोरे ,गर्मागर्म मूँगफलियों का स्वाद ,अचानक ही इस मौसम के साथ जुड़ जाता है |वैसे जिस प्रदेश में ...Read Moreरहती हूँ ‘गुजरात में’ वहाँ इतनी न तो सर्दी पड़ती है और न ही यहाँ ‘मूँगफली ले लो,करारी गर्मागर्म मूँगफली’ का सुमधुर स्वर सुनाई देता है चाहे बेचारे बेचने वाले के स्वर में कितनी ही सर्दी की कंपकंपी क्यों न हो ,उस बेचारे को तो पेट पालने के लिए गर्म बिस्तर में घुसे हुए लोगों के पेटों में अपनी सर्दी Read उजाले की ओर - 28 99 579 उजाले की ओर ------------------ स्नेहिल मित्रो सस्नेह नमस्कार दुनिया रंग-बिरंगी भाई ,दुनिया रंग-बिरंगी ! सच है न दुनिया रंग-बिरंगी तो है ही साथ ही एक गुब्बारे सी नहीं लगती ?जैसे अच्छा-ख़ासा मनुष्य अचानक ही चुप हो जाता है ,जैसे ...Read Moreही कोई तूफ़ान उभरकर कुछ ऐसा सामने आ जाता है कि पता ही नहीं चलता कब ,क्या हो रहा है ? फिर भी हम न जाने किस पशोपेश में रहते हैं,किस गुमान में रहते हैं,हमें लगता है कि हम अमर हैं और सदा ही दुनिया में बसने के लिए आए हैं|यहीं हम गलती कर जाते हैं और आँखें बंद करके Read उजाले की ओर - 29 144 705 उजाले की ओर ------------------ आ, एवं स्नेही मित्रो स्नेहिल नमस्कार मुझे भली प्रकार याद है जब हम छोटे थे तब हमारे यहाँ प्रतिदिन ही कोई न कोई मेहमान आया ही रहता था |माता-पिता ’अतिथि देवो भव’का ...Read Moreपढ़ाते थे | कई बार ये अतिथि यानि मेहमान कोई एक-दो घंटे अथवा एक-दो दिन के नहीं बल्कि हफ़्तों तक रहने वाले होते थे जिनकी खातिरदारी की ज़िम्मेदारी बच्चों पर भी सौंपी जाती थी!इनके अतिरिक्तपास-पड़ौस के गाँव से किसी वर्ष कोई चाचा की लड़की आ रही है तो किसी मौसी की लड़की ने शहर में किसी स्कूल में प्रवेश ले Read उजाले की ओर - 30 75 477 उजाले की ओर ------------------- नमस्कार स्नेही मित्रों कई बार हम दुविधा मेंआ जाते हैं ,कई बार क्या अक्सर ! कभी कोई गंगासे आ रहा है ,हमारे लिए गंगाजल की बोतल लेकर तो कभी कोई जमुना किनारे से ...Read Moreरहा है हमारे ऊपर जमुना-जल के छींटे डालने और कभी तो कोई हाथी पर चढ़कर सीधा स्वराष्ट्र से आ जाता है ,हमें गजराज के दर्शन कराने ! अब भैया ! ये तो सोचो ज़रा कि सामने वाले बंदे केपास समय भी है दर्शन करने का या नहीं ? अब नहीं है तो --- ? गजराज को सामने Read उजाले की ओर - 31 105 507 उजाले की ओर --------------- स्नेही मित्रो प्रणव भारती का नमस्कार मुझे याद आ रहा है अपना बचपन जब मैं उत्तर-प्रदेश के एक शहर में रहती थी | जैसे ही जाड़ों का मौसम आता गाड़ियाँ भर-भरकर गन्ने (ईख) कोल्हू ...Read Moreअथवा ‘शुगर मिलों’में जाने लगतीं|कोल्हू तो बाद में कम ही हो गए थे ,मिलें खुलने के बाद ये ईख मिलों में ही जाती जहाँ मशीनों सेगुड़,शक्कर और चीनी बनाई जाती | कभी कभी तो पूरी-पूरी रात भर ये गन्ने की गाड़ियाँ चलती थीं और हम बच्चे रात में भी अपने झज्जे से लटकते हुए गन्ने की गाड़ियाँ लेजाते हुए और Read उजाले की ओर - 32 126 516 उजाले की ओर ----------------- स्नेही मित्रो सस्नेह नमस्कार हम सब हैं एक ही दुनिया के बाशिंदे किन्तु भिन्न-भिन्न ...Read Moreमें हमने जन्म लिया ,भिन्न-भिन्न परिवेश में हमारी शिक्षा-दीक्षा हुई इसलिए विचारों में भी परिवर्तन आया |किन्तु एक चीज़ जो चाहे किसी भी स्थान की हो ,किसी भी जाति-बिरादरी की हो ,वह सबमें एकसी है ---और वह है हमारी संवेदना ! ये वे संवेदनाएँ हैं जिनसे मनुष्य में इंसानियत की चमक आती है ,वह दूसरों के दुख: दर्द को भी Read उजाले की ओर - 33 69 306 उजाले की ओर------------------ स्नेही व आद.मित्रो ! नमस्कार ! ज़िन्दगी कभी उथल-पुथल लगती है ,कभी समाधि लगती है ,कभी रौनक से भरपूर प्यारी लगती है तो कभी काँटों भरी फुलवारी लगती ...Read More| किन्तु किसी भी परिस्थिति में ज़िंदगी अपनों के साथ न हो तो सूखी सी लगती है |लगता है, अपने मित्र व संबंधी बहुत दूर हैं उनसे मिलना नहीं हो पाता, कभी पास रहते हुए मित्र व संबंधी से भी मिलना दुष्कर हो जाता है| वास्तव में ज़िंदगी का प्रत्येक लम्हा एक नई कहानी लेकर उपस्थित होता है और हमें Read More Interesting Options Hindi Short Stories Hindi Spiritual Stories Hindi Novel Episodes Hindi Motivational Stories Hindi Classic Stories Hindi Children Stories Hindi Humour stories Hindi Magazine Hindi Poems Hindi Travel stories Hindi Women Focused Hindi Drama Hindi Love Stories Hindi Detective stories Hindi Social Stories Hindi Adventure Stories Hindi Human Science Hindi Philosophy Hindi Health Hindi Biography Hindi Cooking Recipe Hindi Letter Hindi Horror Stories Hindi Film Reviews Hindi Mythological Stories Hindi Book Reviews Hindi Thriller Hindi Science-Fiction Hindi Business Hindi Sports Hindi Animals Hindi Astrology Hindi Science Hindi Anything Pranava Bharti Follow